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Wednesday, August 23, 2023

चीऊताई आणि छोटा मुलगा

चीऊताई आणि छोटा मुलगा

हि गोष्ट आणि संवाद आहे एका चीऊताई आणि एका छोट्या मुलाची सारंगची. सारंग रोज सकाळी उठून जेव्हा घराच्या बालकनीत बसतो तो बघतो एक चीऊताई सतत काही तरी शोधत असते. ती आपल्या घरटयासाठी काडया एकत्रीत करत असते. तेव्हा सारंग च्या मनात येते की जर चीऊताई माझ्याशी बोलू शकली असती तर...

            दुस-या दिवशी तो चीऊताईला बोलण्यासाठी तिच्या जवळ जाऊन उभा राहतो.

चिऊताई  :- (गाने गुनगुनत) मला वाटते, बसुनी विमानी, अफाट गगनी हिंडावे किंवा सुंदर नौके मधुन..........काय मेल ते आठवत पण नाही या कामाच्या गोंधळात ....

सारंग :-           अगं अगं चीऊताई मी गाऊ पुढची ओवी.

चीऊताई :-      तुला येते ? हो गा बर बाळा.

सारंग :-           हो हो येते.

चीऊताई :-      मग गौण दाखव बर बाळा.

सारंग :-           मला वाटते, बसुनी विमानी अफाट गगनी हिंडावे किंवा सुंदर नौकेमधुनी समुद्रातूनी भटकावे..

चिऊताई :-      वा ! वा ! अगदी बरोबर हुशार आहेस तू. मला सांग तुझ नाव काय ?

सारंग :-           माझ नांव सारंग आहे. चीऊताई तु माझ्याबरोबर खेळशिल का ? आपण खुप मज्जा करु

चिऊताई :-      नाही रे बाळा मला अजीबात वेळ नाही बघ ! आत्ताच कुठे काडया जमा करतेय मला एक नवीन घरट बनवायचय, मी नंतर कधी तुझ्याबरोबर खेळेन.....  (आणि चिऊताई भुरकुन  उडून जाते.)

सारंग :-            काळजी घे चीऊताई स्वत:ची, म्हणत तोही नीघुन जातो.

(खुप दिवसानंतर जेव्हा चीऊताईचे घरटे बनते आणि त्यात तीचे पील्ले सुरक्षीत असतात तेव्हा सारंग परत येतो  चीऊताईला हळूचकन आवाज देतो.)

सारंग :-           चीऊताई ये चीऊताई

चिऊताई :-      घाबरुन अचानक दचकेत अरे काय सारंग मी केवढे दचकले बघ ना माझे पिल्ल ही घाबरले बोल काय म्हणतोस

सारंग :-           अग चिऊताई मला की नाही तुला एक गम्मत सांगायची आहे.

चिऊताई :-      पीलान्ना भरवत काय बर ती सांग लवकर

सारंग :-           चिऊताई मी ना काल जवळच्या शेतात गेलो होतो आणि तेथे हिरवगार शेत आहे आणि छान टपोरे ताजे हिरवीगार दाने आहेत, तुझ्या आवडीचे तु माझ्याबरोबर चल मी तुला शेतात घेऊन जातो आपण खुप खेळू.

चिऊताई :-      अरे बाबा नको, माझी पील्ल इथे एकटी राहतील . त्यांना कोणी खाऊन टाकेल मी नाही येऊ शकणार, तुझ्याबरोबर मला माफ कर.

सारंग :-           ठीक आहे चिऊताई मी नंतर कधी येईल तु काळजी घे तुझ्या पीलांची आणि स्वत:ची सुध्दा.

(काही दीवसानंतर चीमणीचे पील्ल मोठी होतात पंख फैलवतात आणि  उडून जातात.)

चिऊताई :-      एकटी उदास एका झाडाच्या फांदीवर बसुन गाने गात या पिलांनो परत फिरा रे .....

            (तेवढयात सारंग येतो आणि तो चिऊताईला बघुन दु:खी होतो..)

सारंग :-           चिऊताई, तुला एक गोष्ट सांगू

चिऊताई :-      सांग बाळा मी ऐकतेय

सारंग :-           चिऊताई तु ना आम्हा माणसाच्या आयांसारखी आहे. उडायचं आणि आनंदाच्या खुप संधी येतात पण आपल्या घरटयासाठी, आपल्या मुलांसाठी सा-या आनंदाचा त्याग करतात आणि मुल मोठी झाली की उडून जातात आणि मग ती आई सुद्धा दु:खी आपल्या मुलाच्या आठवणीत तुझ्यासारखे गाने गुनगुनते.

                         या मुलांनो परत फिरा रे.........

धन्यवाद...............

*****

- रानमोती / Ranmoti

Friday, March 31, 2023

अलविदा

आजकल आसुओने भी
मना कर दिया बहने से
क्योंकी हमने भी
अलविदा कर दिया ख्वाइशों से
- रानमोती / Ranmoti

फूल

तुम बगीचे के वो माली हो
जो फूल सींचते और तोड़ते भी है
सींचने का तो पता नहीं
हम तुम्हारे हाथो तोड़े जरूर गए है 
- रानमोती / Ranmoti

आंगन


झिलमिल करता आंगन मेरा 
रात के बदल में एक सवेरा 

- रानमोती / Ranmoti

Tuesday, March 28, 2023

ईश्वर


ईश्वर, आप हमेशा पहेली बनकर रहे हमारे बिच,
ताकि हमारे जीवन की उत्सुकता बरक़रार रहे
आप हमारे पास हवा बनकर लहराए हरपल,
ताकि हमारी नसों नसों में जीवन का राग भर सके
हम सोये तो आप ह्रदय की धड़कन बन जागे भीतर,
ताकि सुबह की पहली किरण हमें एहसास दे पाए
आप खुदको भुला देते हो हमारे जहन से,
ताकि हम मशगूल रहे जीवन की रंगीन यादों में
आपने अनंत उपकारों का हमपर लगा दिया घेरा,
और कभी कहा भी नहीं की नाम लो मेरा
आप हर वो रास्ता बनाने में व्यस्त रहते हो हरदम ,
जिसकी भी हमें तहे दिलसे से तलाश हो
हे प्रभु समंदर के बीचोबीच खड़ा जीवन है,
जहा से कोई किनारा दिखना असंभव है
हमें तो यह भी पता नहीं की हम जिस महासागर में है,
उसकी कोई सिमा या फिर कोई किनारा भी है
हमने इस विशाल जलाशय का तट सोचा नहीं,
पर कोई नौका सवार है जो रास्ता दिखा रहा है
उसने कहा यहाँ किनारे एक दो या तीन नहीं अनंत है,
तुम तैरते रहो किनारा खुदबखुद मिल ही जायेगा
हमें पता है शायद हम उस तक कभी पोहच ही न पाए,
पर उसकी आस से किसी एक दिशा में तैरना होगा
क्या पता ईश्वर मेहरबान हो और किनारा दिख जाये,
और समंदर का पानी पीछे हटकर किनारा समीप आ जाये

- रानमोती / Ranmoti

Friday, March 10, 2023

ब्रम्हांड


भक्त ने पूछा, हे ईश्वर आप कोण है।
ईश्वर बोले,
मै पत्थर हूँ,
तुम तराशो तो मै मूरत बन जाऊँगा।
मै हवा हूँ,
तुम अंदर लोगे तो प्राण बन जाऊँगा।
मै राजा हूँ,
तुम चाहो तो मै दास बन जाऊँगा।
मै स्वप्न हूँ,
तुम चाहो तो मै यथार्थ बन जाऊँगा।
मै असंभव हूँ,
तुम चाहो तो मै संभव बन जाऊँगा।
मै कण हूँ,
तुम चाहो तो मै ब्रम्हांड बन जाऊँगा।

#रानमोती

Saturday, January 28, 2023

भारत की धरोहर को समर्पित "जड़ोंतक" हिंदी कवितासंग्रह प्रकाशित

भारत अध्यात्म और आधुनिकता एक सजग उदाहरण बन कर पूरी दुनिया में अपना परचम लहरा रहा है। इसी अध्यात्म और आधुनिकता का अनोखा संयोग अपने कविताओं के अंदाज में बांधकर मुंबई में स्थित वाशिम की मूलनिवासी साहित्यिका रानी अमोल मोरे (उलेमाले) जी का भारत की धरोहर को समर्पित "जड़ोंतक" हिंदी कवितासंग्रह गणतंत्र दिवस के अवसर पर प्रकाशित हुआ। विदर्भ पर्यटन पर आधारित "वऱ्हाड वारं" और साहित्य भूषण पुरस्कार प्राप्त "रानमोती" कवितासंग्रह के बाद रानी मोरे का यह हिंदी का पहला प्रयास है। फिर भी दिलचस्प बात यह है कि इस कविता संग्रह को सुप्रसिद्ध शास्त्रीय संगीत गायिका पद्मश्री पद्मजा फेनानी जोगलेकर जी ने अपनी प्रस्तावना से नवाजा है और 'नोशन प्रेस' प्रकाशन ने प्रकाशित किया है। इस कविता संग्रह में कुल नउ खंड और इक्यासी कविताओं का समावेश है। जिनमे आराधना, जीवनकल्प, धरोहर, आख्यान, अभिप्रेरणा, मलाल, नित्यरथ, कुदरत और बालरत्न खंड है। हर खंड की कविताये अपने विभाजन के अनुरूप विषयपर गहराई से भाष्य करती है।


अपनी कवितासंग्रह के बारे में कहते हुए रानी जी कहती है, ‘जड़ोंतक’ एक प्रयास है सच को सच के नजरीये से देखने का। जिसमें पढ़नेवाला भगवान श्रीकृष्ण से लेकर आधुनिक भारत की सत्तासंघर्ष तक हर वो विषय का आनंद ले सकता है और उसे ‘जड़ोंतक’ सोचने के लिए मजबूर हो सकता है। अगर पढ़नेवाले सच्चे मन से कविताओं में रूची रखते है तो 'जड़ोंतक' उनके लिये एक जंगल की सैर जैसा है, जहाँ शिकार भी है और शिकारी भी, जहाँ पाणी भी है और आग भी, जहाँ तितलियाँ भी है तो जहरीले नाग भी, कुछ काटे भी चुभेंगे तो कुछ खुबसूरत खिलते फूल मन को मोहित भी करेंगे। यहाँ साधना, ईश्वर, वैराग्य, यथार्थ, सत्य, जीवन, पुरुषार्थ हर वो गुण समाविष्ट करने का प्रयास किया गया है, जहाँ से पढ़नेवाला पूरा हो गुजरे और अपने जीवन को जटीलता भरे धागो से छुड़ाकर सरल करे। विभिन्न विषयों पर टिप्पणी करते हुए रानी मोरे का यह कवितासंग्रह युवाओं से लेकर वरिष्ठ नागरिकों तक सभी का मन मोह रह है। उक्त कवितासंग्रह सभी प्रमुख पुस्तक विक्रेताओं के पास उपलब्ध होने के साथ साथ सभी ऑनलाइन वेबसाइटों पर भी उपलब्ध है।



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