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Friday, March 31, 2023

अलविदा

आजकल आसुओने भी
मना कर दिया बहने से
क्योंकी हमने भी
अलविदा कर दिया ख्वाइशों से
- रानमोती / Ranmoti

फूल

तुम बगीचे के वो माली हो
जो फूल सींचते और तोड़ते भी है
सींचने का तो पता नहीं
हम तुम्हारे हाथो तोड़े जरूर गए है 
- रानमोती / Ranmoti

आंगन


झिलमिल करता आंगन मेरा 
रात के बदल में एक सवेरा 

- रानमोती / Ranmoti

Tuesday, March 28, 2023

ईश्वर


ईश्वर, आप हमेशा पहेली बनकर रहे हमारे बिच,
ताकि हमारे जीवन की उत्सुकता बरक़रार रहे
आप हमारे पास हवा बनकर लहराए हरपल,
ताकि हमारी नसों नसों में जीवन का राग भर सके
हम सोये तो आप ह्रदय की धड़कन बन जागे भीतर,
ताकि सुबह की पहली किरण हमें एहसास दे पाए
आप खुदको भुला देते हो हमारे जहन से,
ताकि हम मशगूल रहे जीवन की रंगीन यादों में
आपने अनंत उपकारों का हमपर लगा दिया घेरा,
और कभी कहा भी नहीं की नाम लो मेरा
आप हर वो रास्ता बनाने में व्यस्त रहते हो हरदम ,
जिसकी भी हमें तहे दिलसे से तलाश हो
हे प्रभु समंदर के बीचोबीच खड़ा जीवन है,
जहा से कोई किनारा दिखना असंभव है
हमें तो यह भी पता नहीं की हम जिस महासागर में है,
उसकी कोई सिमा या फिर कोई किनारा भी है
हमने इस विशाल जलाशय का तट सोचा नहीं,
पर कोई नौका सवार है जो रास्ता दिखा रहा है
उसने कहा यहाँ किनारे एक दो या तीन नहीं अनंत है,
तुम तैरते रहो किनारा खुदबखुद मिल ही जायेगा
हमें पता है शायद हम उस तक कभी पोहच ही न पाए,
पर उसकी आस से किसी एक दिशा में तैरना होगा
क्या पता ईश्वर मेहरबान हो और किनारा दिख जाये,
और समंदर का पानी पीछे हटकर किनारा समीप आ जाये

- रानमोती / Ranmoti

Friday, March 10, 2023

ब्रम्हांड


भक्त ने पूछा, हे ईश्वर आप कोण है।
ईश्वर बोले,
मै पत्थर हूँ,
तुम तराशो तो मै मूरत बन जाऊँगा।
मै हवा हूँ,
तुम अंदर लोगे तो प्राण बन जाऊँगा।
मै राजा हूँ,
तुम चाहो तो मै दास बन जाऊँगा।
मै स्वप्न हूँ,
तुम चाहो तो मै यथार्थ बन जाऊँगा।
मै असंभव हूँ,
तुम चाहो तो मै संभव बन जाऊँगा।
मै कण हूँ,
तुम चाहो तो मै ब्रम्हांड बन जाऊँगा।

#रानमोती

Saturday, January 28, 2023

भारत की धरोहर को समर्पित "जड़ोंतक" हिंदी कवितासंग्रह प्रकाशित

भारत अध्यात्म और आधुनिकता एक सजग उदाहरण बन कर पूरी दुनिया में अपना परचम लहरा रहा है। इसी अध्यात्म और आधुनिकता का अनोखा संयोग अपने कविताओं के अंदाज में बांधकर मुंबई में स्थित वाशिम की मूलनिवासी साहित्यिका रानी अमोल मोरे (उलेमाले) जी का भारत की धरोहर को समर्पित "जड़ोंतक" हिंदी कवितासंग्रह गणतंत्र दिवस के अवसर पर प्रकाशित हुआ। विदर्भ पर्यटन पर आधारित "वऱ्हाड वारं" और साहित्य भूषण पुरस्कार प्राप्त "रानमोती" कवितासंग्रह के बाद रानी मोरे का यह हिंदी का पहला प्रयास है। फिर भी दिलचस्प बात यह है कि इस कविता संग्रह को सुप्रसिद्ध शास्त्रीय संगीत गायिका पद्मश्री पद्मजा फेनानी जोगलेकर जी ने अपनी प्रस्तावना से नवाजा है और 'नोशन प्रेस' प्रकाशन ने प्रकाशित किया है। इस कविता संग्रह में कुल नउ खंड और इक्यासी कविताओं का समावेश है। जिनमे आराधना, जीवनकल्प, धरोहर, आख्यान, अभिप्रेरणा, मलाल, नित्यरथ, कुदरत और बालरत्न खंड है। हर खंड की कविताये अपने विभाजन के अनुरूप विषयपर गहराई से भाष्य करती है।


अपनी कवितासंग्रह के बारे में कहते हुए रानी जी कहती है, ‘जड़ोंतक’ एक प्रयास है सच को सच के नजरीये से देखने का। जिसमें पढ़नेवाला भगवान श्रीकृष्ण से लेकर आधुनिक भारत की सत्तासंघर्ष तक हर वो विषय का आनंद ले सकता है और उसे ‘जड़ोंतक’ सोचने के लिए मजबूर हो सकता है। अगर पढ़नेवाले सच्चे मन से कविताओं में रूची रखते है तो 'जड़ोंतक' उनके लिये एक जंगल की सैर जैसा है, जहाँ शिकार भी है और शिकारी भी, जहाँ पाणी भी है और आग भी, जहाँ तितलियाँ भी है तो जहरीले नाग भी, कुछ काटे भी चुभेंगे तो कुछ खुबसूरत खिलते फूल मन को मोहित भी करेंगे। यहाँ साधना, ईश्वर, वैराग्य, यथार्थ, सत्य, जीवन, पुरुषार्थ हर वो गुण समाविष्ट करने का प्रयास किया गया है, जहाँ से पढ़नेवाला पूरा हो गुजरे और अपने जीवन को जटीलता भरे धागो से छुड़ाकर सरल करे। विभिन्न विषयों पर टिप्पणी करते हुए रानी मोरे का यह कवितासंग्रह युवाओं से लेकर वरिष्ठ नागरिकों तक सभी का मन मोह रह है। उक्त कवितासंग्रह सभी प्रमुख पुस्तक विक्रेताओं के पास उपलब्ध होने के साथ साथ सभी ऑनलाइन वेबसाइटों पर भी उपलब्ध है।



भारताच्या परंपरेला समर्पित ‘जडोंतक’ हिंदी कवितासंग्रह प्रकाशित

अध्यात्म आणि आधुनिकतेचे ज्वलंत उदाहरण म्हणून भारत संपूर्ण जगात आपला रुतबा अधिक बळकट करीत आहे. अध्यात्म आणि आधुनिकतेचा हाच अनोखा संगम आपल्या कवितांच्या शैलीत बांधून, मूळच्या वाशीम येथील, मुंबई मध्ये स्थायी असलेल्या राणी अमोल मोरे यांनी भारताच्या परंपरेला समर्पित केलेल्या ‘जडोंतक’ या हिंदी कवितासंग्रहाचे प्रजासत्ताक दिनाचे औचित्य साधून मुंबई येथे प्रकाशन करण्यात आले. विदर्भ पर्यटनावर आधारित 'वऱ्हाड वारं' आणि साहित्य भूषण पुरस्कार प्राप्त 'रानमोती’ या मराठी काव्यसंग्रहा नंतर राणी मोरे यांचा हा तसा हिंदीतील पहिलाच प्रयत्न. तरीही महत्वाची गोष्ट म्हणजे या कवितासंग्रहाला प्रसिद्ध शास्त्रीय संगीत गायिका पद्मश्री पद्मजा फेणाणी जोगळेकर यांनी प्रस्तावना दिलेली आहे आणि 'नोशन प्रेस' या प्रकाशनाने प्रकाशित केला आहे. या काव्यसंग्रहात एकूण नऊ विभाग आणि एक्यांशी कवितांचा समावेश आहे. ज्यामध्ये आराधना, जीवनकल्प, धरोहर, आख्यान, प्रेरणा, मलाल, नित्यरथ, कुदरत आणि बालरत्न विभाग आहेत. प्रत्येक विभागातील कविता त्या-त्या विभागणीनुसार विषयावर खोलवर भाष्य करतात.


आपल्या कवितासंग्रहाबद्दल बोलताना राणी मोरे म्हणतात, ‘जडोंतक’ हा सत्याकडे सत्याच्या दृष्टिकोनातून पाहण्याचा एक प्रयत्न आहे. ज्यामध्ये वाचकाला भगवान श्री कृष्णापासून आधुनिक भारताच्या सत्तासंघर्षा पर्यंतच्या प्रत्येक विषयाचा आस्वाद घेता येईल आणि त्याच्या 'मुळांपर्यंत' जाऊन विचार करायला भाग पडेल. वाचकांना जर खरोखरच कवितांमध्ये रस असेल, तर ‘जडोंतक’ त्यांच्यासाठी जंगलात मनसोक्त फिरण्यासारखे आहे, जिथे शिकार आहे तर शिकारी पण, जिथे पाणी आहे तर आग पण, जिथे फुलपाखरे आहेत तर विषारी साप पण, कधी सुंदर बहरलेली फुले मन मोहून टाकतील तर कधी काटे हि रुततील. इथे साधना, ईश्वर, वैराग्य, वास्तव, सत्य, जीवन, पुरुषार्थ या सर्व गुणांचा अंतर्भाव करण्याचा प्रयत्न दिसेल, ज्यातून वाचकाला जीवनाच्या क्लिष्ट धाग्यांपासून सुटका करून आपले जीवन साधे करण्यात मदत होईल. विविध विषयांवर भाष्य करणारा राणी मोरे यांचा हा कवितासंग्रह तरुणांपासून ज्येष्ठ नागरिकांपर्यंत सर्वांनाच भुरळ घालणारा आहे. सदर कविता संग्रह सर्व प्रमुख पुस्तक विक्रेत्यांकडे तसेच सर्व ऑनलाइन वेबसाइटवर उपलब्ध आहे.





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