भारत अध्यात्म और आधुनिकता एक सजग उदाहरण बन कर पूरी दुनिया में अपना परचम लहरा रहा है। इसी अध्यात्म और आधुनिकता का अनोखा संयोग अपने कविताओं के अंदाज में बांधकर मुंबई में स्थित वाशिम की मूलनिवासी साहित्यिका रानी अमोल मोरे (उलेमाले) जी का भारत की धरोहर को समर्पित "जड़ोंतक" हिंदी कवितासंग्रह गणतंत्र दिवस के अवसर पर प्रकाशित हुआ। विदर्भ पर्यटन पर आधारित "वऱ्हाड वारं" और साहित्य भूषण पुरस्कार प्राप्त "रानमोती" कवितासंग्रह के बाद रानी मोरे का यह हिंदी का पहला प्रयास है। फिर भी दिलचस्प बात यह है कि इस कविता संग्रह को सुप्रसिद्ध शास्त्रीय संगीत गायिका पद्मश्री पद्मजा फेनानी जोगलेकर जी ने अपनी प्रस्तावना से नवाजा है और 'नोशन प्रेस' प्रकाशन ने प्रकाशित किया है। इस कविता संग्रह में कुल नउ खंड और इक्यासी कविताओं का समावेश है। जिनमे आराधना, जीवनकल्प, धरोहर, आख्यान, अभिप्रेरणा, मलाल, नित्यरथ, कुदरत और बालरत्न खंड है। हर खंड की कविताये अपने विभाजन के अनुरूप विषयपर गहराई से भाष्य करती है।
अपनी कवितासंग्रह के बारे में कहते हुए रानी जी कहती है, ‘जड़ोंतक’ एक प्रयास है सच को सच के नजरीये से देखने का। जिसमें पढ़नेवाला भगवान श्रीकृष्ण से लेकर आधुनिक भारत की सत्तासंघर्ष तक हर वो विषय का आनंद ले सकता है और उसे ‘जड़ोंतक’ सोचने के लिए मजबूर हो सकता है। अगर पढ़नेवाले सच्चे मन से कविताओं में रूची रखते है तो 'जड़ोंतक' उनके लिये एक जंगल की सैर जैसा है, जहाँ शिकार भी है और शिकारी भी, जहाँ पाणी भी है और आग भी, जहाँ तितलियाँ भी है तो जहरीले नाग भी, कुछ काटे भी चुभेंगे तो कुछ खुबसूरत खिलते फूल मन को मोहित भी करेंगे। यहाँ साधना, ईश्वर, वैराग्य, यथार्थ, सत्य, जीवन, पुरुषार्थ हर वो गुण समाविष्ट करने का प्रयास किया गया है, जहाँ से पढ़नेवाला पूरा हो गुजरे और अपने जीवन को जटीलता भरे धागो से छुड़ाकर सरल करे। विभिन्न विषयों पर टिप्पणी करते हुए रानी मोरे का यह कवितासंग्रह युवाओं से लेकर वरिष्ठ नागरिकों तक सभी का मन मोह रह है। उक्त कवितासंग्रह सभी प्रमुख पुस्तक विक्रेताओं के पास उपलब्ध होने के साथ साथ सभी ऑनलाइन वेबसाइटों पर भी उपलब्ध है।