Search This Blog

Wednesday, December 28, 2022

हे नदी माँ



नदी के अनोखे रूप देखकर
पूंछा मैंने कुछ इस कदर

हे नदी माँ
तुम इतनी निराली क्यों हो
जब खूब वर्षा होती है
सैलाब बन डराती हो
अकाल जब पड़ता है
बून्द बून्द को तरसाती हो

नदी बोली
मै कहाँ कुछ करती हूँ
दोनों भी प्रकृति के वरदान है
मै तो बस कर्त्तव्य निभाती हूँ
मेरा अस्तित्व नियति का खेल है
मै खुद से ना बढ़ा सकती हूँ
ना कभी घटा सकती हूँ
सब अपने आप होता है
मै बस एक आकार हूँ

हे नदी माँ
समुद्र से छोटी होकर भी
समुद्र को जल से भरती हो
बदले में कुछ कभी
लेती भी नहीं हो
जवाब दो माँ
बड़ी तुम या सागर

नदी बोली
सागर को मेरा देना
दिख जाता है
सबको विलीन करना
उसका छुप जाता है
सागर का तो गुप्तदान है
किसी एक को नहीं
सबको समाना नेक काम है
खुद किसी में घुलना
हर किसी को संभव है
सबको विलीन कर
खुद वैसे ही रहना अद्भुद है
सागर तो मेरा उद्देश्य है
राह में मिले उनको बाँटना
छोटासा मिला दायित्व है

हे नदी माँ
मै समझ गई इस बात को
आपके इस कर्तव्य को
निरंतर निभा रहे दायित्व को
आखिर होना कही विलीन है
दायित्व निभाना अनिवार्य है
-  रानमोती / Ranmoti

बेवजह


कभी कभी ज्यादा ज्ञान
डर पैदा करता है
अज्ञानी का ज्ञान ही उसे
निडर दिखलाता है

शोर में हर कोई
चीखता चिल्लाता है
ख़ामोशी में चुप्पी साध
विनम्र दिखलाता है

वजह ढूंढ़कर कई
निर्णय जन्म लेते है
बेवजह तो हम यूँही
खुदको भूल जाते है

बेवजह मन में अगर
कोई विचार पनपता है
तो उसे घटने की संभावना
शत प्रतिशत होती है

कुछ पाने के लिए
सोच तो तभी पाएंगे
जब करने के लिए
कटिबद्ध हो जायेंगे

हमें ज्यादा की
जरुरत तो नहीं
पर जरूरतों से मुँह
फेरना भी नहीं

जिंदगी के अंत तक
कुछ ना कुछ अच्छा हो हमसे
जब हिसाब करने बैठे
बेवजह ना लगे जीवन खुदसे

Monday, December 26, 2022

त्रिलोक सुंदरी

त्रिलोक सुंदरी
मन मोहन पे हारी
जिद पे अड़ी
आई मिलन की घडी
लेके श्याम सी हँसी
ओठों पे रुख्मिणी
तू सज धज के चली
द्वारका आँगन की गली
भाव विभोर
ह्रदय व्याकुल तेरा
बसता संसार
तेरे श्याम में सारा

खनकार सुन पायल की
कान्हा आये प्रेमरथ लेकर
क्या खोया क्या पाया
तूने कुछ न जाना
एक ही लक्ष
कृष्ण अपना माना
लेके श्याम की हँसी
ओठों पे रुख्मिणी
तू सज धज के चली
द्वारका आँगन की गली

मोहन के संग
तू ऐसे चली
जैसे सरिता
सागर से मिली
सूरज की रौशनी
सफर तय कर
धरती को छूने चली
त्रिलोक सुंदरी
मन मोहन पे हारी
जिद पे अड़ी
आई मिलन की घडी

- रानमोती / Ranmoti

Monday, December 5, 2022

सभ्यता


वो पौधा कल खिला था
कुछ दिन प्रकृति से लढा था
फिर एक दिन हार गया
शायद किसीने कुचल दिया

वो वृक्ष भी गहरा होता पीपल तक
अगर किसीने सींचा होता जड़ोंतक
उसकी रगो में भी हौंसला भरा होता
उसका सामर्थ्य अगर पहचाना होता

न जाने देश के कितने घरों में
मुरझा गये वो कोमल फूल
जो अनदेखे रहे इस जहाँ में
किसीकी नजर के इंतजार में

वो भी बन जाते देश की शान
अगर किसीकी एक आवाज
पोहचती उनकी जड़ोंतक
कहती उठो पोहचो मंजिल तक

इस नोटंकी भरे जीवन में
देश की पीढ़ी कभी ना फसती
अगर पुरातन सभ्यता बताई जाती
शान से हरतरफ लहराई जाती

अगर हम समझकर पोहचते
भारतीय सभ्यता की जड़ोंतक
हर जीवन खिलता पनपता
किसी के अन्याय से कभी ना डरता

- रानमोती / Ranmoti

Sunday, December 4, 2022

कुपोषित आँखों से


कुपोषित आँखों से
जग देखने चला मै
कमजोर पैरों से
रेंगने चला मै

दबे कंधो से
लड़ने चला मै
भीगी आँखों से
रोने चला मै

भूख के दर्द से
बोलने चला मै
खाली थाली से
खाने चला मै

फैले हाँथो से
क्या मांगू मै
गिरने के डर से
कैसे उठु मै

सब गिर जाएगा
सँभालने से पहले
हौंसला टूट जायेगा
बढ़ने से पहले

चमकते तारो से
अक्सर शिकायत है
जो मेरी किस्मत से
मुझे चिढ़ाते है

भूख का काजल
झलकता आँखों में
सदियों की भूख
संचित मेरे हृदय में

कैसे लगेगी नज़र
माँ तेरे बछड़े को
जिंदगी खपा जिसपर
खुद तैयार हँसने को

कुपोषित आँखों से
जग देखने चला मै
कमजोर पैरों से
रेंगने चला मै

- रानमोती / Ranmoti

Thursday, November 17, 2022

स्वयंवर



जीत और हार दो सिरा पर
खड़ी थी वरमाला संग
स्वयंवर रचाया पिता कर्त्तव्य ने
देखे सबके गुणों के रंग
अधिकार था दोनो को
चुने अपना वर
अनिवार्य था कर्म उसमें
हो सबसे ऊपर
जीत के मन को भाता
वही वर हौसलों के गीत गाता
इच्छा जिसकी प्रबल हो
कर्म विजय से प्रभवित हो
बस वही मेरा वर हो
जीत की वरमालाये
पड़ेगी उसके गले में
जो दौड़े के स्वयं
मशगूल रहे मंजिलो में
हार का तो बस हा हा कार था
उसका ही स्वीकार सर्वोतोपरी था
जिसके हौसले थे टुटे
जिसकी आँखो में स्वप्न थे फूटे
मन ही जिसके कर्मो को लुटे
वही वर से हार का इंतजार मिटे
अब आप के प्रदर्शन पे निर्भर है
कोन बनेगा हार का मीत
कोन बनेगा जीत का मीत
जीत और हार का चुनाव ही
है हर इंसान के जीवन की रीत

- रानमोती / Ranmoti

Friday, November 11, 2022

द्विप अंडमान

स्थलखंड का एक अंग
जल से घिरा चारो छोर
अलग-थलग मातृभूमि से
सागर में नर्तक मोर

शांति सुकून से संपन्न
क्रान्तिशूरों से भूमि पावन
गहरे वनों की गुफावों में
प्रकृती की आस राहों में

पेड, पौधे, पशु, पक्षी
आद्य सुंदरी कला नक्षी
जरावा, ओंगेस संग नेग्रि
नीलम तट और आग्नेयगिरि

गहरे पुष्प फल श्रीफल
प्रकृति की गोद निर्मल
सुंदरता की श्रेष्ठ पहल
अंडमान द्वीप एक चहल
- रानमोती / Ranmoti

Recent Posts

तू राजा मी सेवक (Vol-2)

- रानमोती / Ranmoti

Most Popular Posts