जीत और हार दो सिरा पर
खड़ी थी वरमाला संग
स्वयंवर रचाया पिता कर्त्तव्य ने
देखे सबके गुणों के रंग
अधिकार था दोनो को
चुने अपना वर
अनिवार्य था कर्म उसमें
हो सबसे ऊपर
जीत के मन को भाता
वही वर हौसलों के गीत गाता
इच्छा जिसकी प्रबल हो
कर्म विजय से प्रभवित हो
बस वही मेरा वर हो
जीत की वरमालाये
पड़ेगी उसके गले में
जो दौड़े के स्वयं
मशगूल रहे मंजिलो में
हार का तो बस हा हा कार था
उसका ही स्वीकार सर्वोतोपरी था
जिसके हौसले थे टुटे
जिसकी आँखो में स्वप्न थे फूटे
मन ही जिसके कर्मो को लुटे
वही वर से हार का इंतजार मिटे
अब आप के प्रदर्शन पे निर्भर है
कोन बनेगा हार का मीत
कोन बनेगा जीत का मीत
जीत और हार का चुनाव ही
है हर इंसान के जीवन की रीत
- रानमोती / Ranmoti