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Sunday, July 31, 2022

अंबर का तारा

अंबर का तारा
अँधेरे के द्वार खड़ा 
अँधेरे ने पूछा 
क्योँ मेरे ही पीछे पड़ा
मेरा जीवन जैसे 
काली रात का घड़ा
सुनकर मासूम तारा
मन ही मन मुस्कुरा पड़ा 
जवाब में उसने 
अपना खाता खोला 
प्रकृति के खेल में 
बना मैं चमकीला 
नहीं काम का मेरे 
सूर्य का उजियाला 
अँधेरा ही बना देता मुझे
जहाँ में सबसे निराला
जिसकी आँखों ने देखा 
खेल तेरा अँधियारा 
वही देख पाता है 
यह अंबर का तारा 

- रानमोती / Ranmoti

Saturday, July 30, 2022

मनमौजी


मनमौजी चाहता है कुछ खोजा जाये
चाँद के उस पार जमीं के गर्भतक
परंपरा को तोड़कर नए रहस्य जोड़कर
कबीर के दोहो में सिद्धार्थ के मार्गपर
मीरा की सरगम में मोहन को सोचा जाये
मनमौजी चाहता है कुछ खोजा जाये

समंदर की लहरें चाहती है कुछ कहना
पेड़ों पत्थरों को कुछ अपना है जताना
लहरों की प्रलेखपर उनकी जुबाँ लिखी जाये
वसुधा की क़ोख छोड़ समंदर में घोला जाये
मनमौजी चाहता है कुछ खोजा जाये

आशा निराशा मान अपमान गठरी में बांधकर
कुछ नासमझी सी मंजिलों को लाँधकर
सीमाओं को असीमित रूप से स्वीकारकर
अघटित को यथार्थ का मौका दिया जाये
मनमौजी चाहता है कुछ खोजा जाये

जीवन नया है हम भी नये हो
ज्ञान का विनिमय गुरु शिष्य से परे हो
रहस्यों का छलावा बस पारदर्शी हो जाये
जीवन को जीने का नया मौका दिया जाये
मनमौजी चाहता है कुछ खोजा जाये

- रानमोती / Ranmoti

Thursday, July 28, 2022

अपरिहार्य

नित्य, नैमित्य, निष्काम संचित
रूपों में विभाजित हूँ मै कर्म
प्रारब्ध में अवतरित होकर
अंततः संस्थापित हूँ मै कर्म

मर्त्य की पराकाष्ठा उद्यम कर
नतीजतन निष्कर्ष हूँ मै कर्म
अभ्युदय: निःश्रेय प्राप्ति का
स्वयंरचित योग हूँ मै कर्म

भुत भविष्य वर्तमान का
सृजन मिलाप हूँ मै कर्म
गीता से सयंभु प्रकट
समूचा तात्पर्य हूँ मै कर्म

धर्म से भी बड़ा ईश्वरीय
अपरिहार्य पथ हूँ मै कर्म
सुख दुःख प्राप्ति का संयोग
मनुष्य को अपरिहार्य हूँ मै कर्म
- रानमोती / Ranmoti


Monday, July 25, 2022

अनुपम

तू हाथ उठा दे अनुपम
वनराज के भाती
नजर भिडादे अनुपम
वनराज के भाती
अगर हो
अहन पर आघात
खड्ग उठाके
तू कर प्रहार
तू हाथ उठा दे अनुपम
वनराज के भाती

तेरे वित्त की ना हो चोरी
कल की भोर भी हो तेरी
अवनि जित ना ले बैरी
यज्ञांगी मोहित और सुनहरी
उससे पहले
तू हाथ उठा दे अनुपम
वनराज के भाती

भवसागर विजय लिखित
मस्तिष्क दिव्य तेरा
घन से घना
कष्ट में उजियारा
विजयपथ की
एकमात्र अभिलाषा
ना कल हो
दिवाकर की निराशा
उससे पहले
तू हाथ उठा दे अनुपम
वनराज के भाती
नजर भिडादे अनुपम
वनराज के भाती

- रानमोती / Ranmoti




Saturday, July 23, 2022

बुद्धि को ग्रहण या आच्छादन


हिंदी भाषा में ग्रहण शब्द का अर्थ होता है धारण करना, स्वीकार करना या फिर किसी चीज को खा जाना। अगर यह अर्थ सही है, तो सूर्य ग्रहण या चंद्र ग्रहण का मतलब सूर्य या चंद्र को खा जाना या धारण करना इस तरह निकाला जा सकता है। सदियों पहले जब मनुष्य को सूर्य और चंद्र ग्रहण के वैज्ञानिक कारन पता नहीं थे, तबतक यह कहना ठीक था की सूर्य या चंद्र को सृष्टि की कोई और चीज निगल लेती है फिर खा जाती है। लेकिन अब जब इंसान को वैज्ञानिक सफलताओ के चलते, यह पूरी तरह पता है की सूर्य और चंद्र ग्रहण एक प्राकृतिक घटना है, और यह घटना पृथ्वी और चंद्र के एक दूसरे के बिच में आ जाने से उत्पन्न होती है। संक्षिप्त में हम इसे आच्छादन कह सकते है। ग्रहण शब्द का यहाँ पर कोई भी अर्थ या मतलब न होकर आच्छादन यह अर्थपूर्ण शब्द कहा जा सकता है।

पुराने कालखंड के अनुसार ग्रहण यह शब्द कुछ बनावटी कहानियों के चलते 'नकारात्मकता' से उभरा हुआ प्रतीत होता है । लेकिन वास्तविकता में ग्रहण यह शब्द एक स्वीकृति दर्शाकर 'सकारात्मकता' प्रस्तुत करता है। हम आज भी बोलते समय किसी नकारात्मक चीज को दर्शाने के लिए 'ग्रहण लग गया' इस उपमा का इस्तेमाल कर लेते है। जबकि इसका सही अर्थ या मतलब 'किसीको स्वीकृति लगना' होता है। इसी भाषा या उपमा को समझकर बोले तो हम यह कह सकते है की मनुष्य की 'बुद्धि को ग्रहण' लग गया, की वे आजतक बिना मतलब ग्रहण शब्द का इस्तेमाल किये जा रहा है। मेरी समझ से कहूँ तो 'मनुष्य बुद्धिपर आच्छादन है' जैसे की 'चंद्र आच्छादन', 'सूर्य आच्छादन' होते है।

- रानमोती / Ranmoti

लापता

तू समन्दरसा खिलखिलाता है 
फिर भी अनदेखा सा कही 
मै तुझमे समाई हूँ पूरी 
तू लापता है मुझमें कही 

- रानमोती / Ranmoti

Friday, July 22, 2022

हे मातृभूमि

सागर से मोती चुन के लाएँगे
हे मातृभूमि
हम फिर से तुम्हें सजाएँगे

आए आँधी फ़िकर कहाँ है
आए तूफ़ान फ़िकर कहाँ है
तेरे प्यार में जीते जो यहाँ है
सैलाब से भी लड़के आएँगे
हे मातृभूमि
हम फिर से तुम्हें सजाएँगे

फ़क़ीर होने की पर्वा नही है
मरमिटने की पर्वा नही है
तेरे नाम के नारे लगाते जो यहाँ है
देशभक्ति से अमिर हो जाएँगे
हे मातृभूमि
हम फिर से तुम्हें सजाएँगे

नंदनवन हो तेरी ज़मीन
सारे जहाँ को हो तुझपे यक़ीन
तेरे मिट्टी से तिलक लगाता जो यहाँ है
उस तिलक की कसम सबको जगाएँगे
हे मातृभूमि
हम फिर से तुम्हें सजाएँगे

सुंदर तेरी मूरत सजे
तू नई नवेली दुल्हन लगे
तेरे आँचल से बंधे जो यहाँ है
मिलके विश्व मे तिरंगा लहराएँगे
हे मातृभूमि
हम फिर से तुम्हें सजाएँगे
सागर से मोती चुन के लाएँगे
- रानमोती / Ranmoti

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