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Wednesday, December 8, 2021
धूसर वाटा
कधीतरी ह्या धूसर वाटा
अलगद मोडून जातील
आजच्या ओल्या पाऊल खुणा
उद्याच्या उन्हात सुकून जातील
कालच्या जगण्याच्या आठवणी
मनाच्या खळग्यात कुजून जातील
जगण्याला अर्थ मिळो ना मिळो
माणसे मात्र अशीच जगून जातील
झेप महत्वकांक्षी इतकी मोठी
पार क्षितिजेही संपून जातील
टणक डांबरी रस्ते
वाड्या पाड्या पिंजून जातील
म्हातारी मायबाप दोन पैश्यांसाठी
पाय घासत संपून जातील
उनाड तरुणाई शान शोकापायी
सुसाट गाड्या उडवित जातील
भिन्न दोन मतांचा अलिप्त ओघळ
शांत स्वरात वाहत जाईल
सुख दुःखाच्या सुंदर दालनात
जीवन निरंतर श्वास घेत जाईल
कधीतरी ह्या धूसर वाटा
अलगद मोडून जातील
जगण्याचा अर्थ कळो ना कळो
हे निराकार
हे निराकार ले आकार हो साकार
तु मित्र बन चित्र देख सखे मेरे नेत्र
तु सुप्त तु गुप्त मै तृप्त कर मुक्त
तु निवास तु आवास तु विकास
तु प्रार्थना तु साधना तु आराधना
तु कर्म तु मर्म तु धर्म
तु श्वास तु ध्यास तु उपवास
तु शांती तु भ्रांती तु विश्रांती
तु भव्य तु काव्य तु दिव्य
तु समाधान तु वरदान तु गुप्तदान
तु सम्मान तु अरमान तु प्रमाण
तु आधार तु उदार तु साक्षात्कार
तु धैर्य तु शौर्य तु सुर्य
तु युध्द तु शुध्द तु बुद्ध
तु क्षण तु कण तु मन
तु आरंभ तु स्तंभ तु जगदंब
तु अभिलाषा तु विलाषा तु आशा
तु फल तु निर्मल तु कमल
तु स्थापना तु कामना तु सामना
हे निराकार ले आकार हो साकार
- रानमोती / Ranmoti
Monday, December 6, 2021
ज्ञानमोती
ज्ञान सागरातुनी ज्ञानमोती फुलला
करण्या सार्थ जीवा दिनरात झटला
सांगुनी सत्यपथ सारा विश्व फिरला
भारतरत्नाने तो विश्वरत्न नटला
ज्ञान सागरातुनी ज्ञानमोती फुलला
अंधारल्या वाटेला प्रकाशुनी निघाला
उच्चनिचतेच्या सरीने नजाणे कितीक भिजला
होण्या समान सारे पेटुनी तो उठला
झाला सुखी जन न्यायास जो मुकला
ज्ञान सागरातुनी ज्ञानमोती फुलला
शोधण्या सत्य पथाला फुले शिष्य बनला
धुडकावूनी रूढी परंपरा मनुस्मृतीशी नडला
गणतंत्र दाऊनी जना महायोगी गणला
त्यागुनी स्वधर्म बुद्ध पायी नमला
ज्ञान सागरातुनी ज्ञानमोती फुलला
उठ रे जना तू सरसावण्या स्वत:ला
लढण्याआधीच भल्या असा का दमला
चालुनी नव वाटेला अज्ञानाने का हेरला
विसर का पडला तुजसाठी संविधान रचला
ज्ञान सागरातुनी ज्ञानमोती फुलला
- रानमोती / Ranmoti
Wednesday, November 24, 2021
रानमोती काव्यसंग्रह को “साहित्य भूषण” पुरस्कार
अखिल भारतीय मराठी साहित्य आंदोलन के प्रमुख केंद्र मराठी साहित्य मंडल की ओरसे इस वर्ष का साहित्य क्षेत्र का महत्वपूर्ण साहित्य भूषण पुरस्कार महाराष्ट्र के वाशिम जिल्हे की मिट्टी से जुड़ी मुंबई की युवा साहित्यकार रानी अमोल मोरे - उलेमाले के रानमोती काव्यसंग्रह को सातारा में हालही में सम्पन्न हुए तृतीय डा. बाबासाहेब आंबेडकर साहित्य सम्मेलन में प्रदान किया गया ।
इस साहित्य सम्मेलन का उध्दाटन वरिष्ठ विचारवंत राजरत्न आंबेडकर ने किया तथा सम्मेलन अध्यक्ष के रुप में सिक्कीम के पूर्व राज्यपाल तथा महान विचारक डा. श्रीनिवास पाटिल व स्वागताध्यक्ष वरिष्ठ विचारक एड. गौतम सरतापे उपस्थित थे तथा मुख्य अतिथि के रुप में पूर्व न्यायाधीश व वरिष्ठ विचारक रावसाहेब झोडगे, वरिष्ठ साहित्यिकार डा. जयप्रकाश घुमटकर, कवयित्री ललिता गवांदे, कवयित्री नीलीमा जोशी, लेखक विनायकराव जाधव उपस्थित थे ।
रानमोती वैसे तो वऱ्हाड वार विदर्भ पर्यटन पर आधारित काव्यसंग्रह के बाद आया रानी मोरे का दूसरा ही काव्य संग्रह है फिरभी जीवनावश्यक विषय पर बेहद गंभीर और निरागस रुप से भाष्य करनेवाला, अनावश्यक रुढ़ी प्रथाओं पर आघात करनेवाला, आधुनिक काल के मराठी काव्य क्षेत्र में विभाग निहाय प्रस्तुति करनेवाला, प्रिंट तथा डिजिटल प्लेटफार्म पर उपलब्ध पहला ही काव्य संग्रह होने से साहित्य भूषण पुरस्कार के लिए चुने जाने का प्रतिपादन वरिष्ठ साहित्यिकार तथा चयन समिति अध्यक्ष डा. जयप्रकाश घुमटकर ने स्पष्ट किया ।
पुरस्कार स्वीकारते समय रानी अमोल मोरे - उलेमाले ने मराठी साहित्य मंडल का आभार व्यक्त करते हुए दैनदिन मानवी जीवन के लिए उपयोगी और प्रगति के लिए जिम्मेदार साबित होनेवाली जीवन उपयोगी बातों पर लेख को मराठी साहित्य में भारी तादाद होने की बात स्पष्ट की । साथही महाराष्ट्र के साहित्य क्षेत्र को देशस्तर पर पुनर्जीवित करने के लिए प्रयास करने की बात भी कही
Friday, November 19, 2021
'रानमोती' काव्यसंग्रहास मराठी साहित्य मंडळाचा “साहित्य भूषण” पुरस्कार
अखिल भारतीय मराठी साहित्य चळवळीचे प्रमुख केंद्र असलेल्या मराठी साहित्य मंडळाच्या वतीने यावर्षीचा साहित्य क्षेत्रातील मानाचा समजला जाणारा "साहित्य भूषण" पुरस्कार विदर्भातील वाशिमच्या मातीशी नाळ असलेल्या मुंबईच्या युवा साहित्यिका राणी अमोल मोरे - उलेमाले यांच्या "रानमोती" काव्यसंग्रहास म्हसवड जिल्हा सातारा येथे शुक्रवार, दिनांक १९ नोव्हेम्बर २०२१ रोजी आयोजित तिसऱ्या डॉ. बाबासाहेब आंबेडकर साहित्य संमेलनात प्रदान करण्यात आला.
सदर, साहित्य संमेलनाचे उद्घाटन ज्येष्ठ विचारवंत मा. राजरत्न आंबेडकर यांनी केले तर संमेलनाध्यक्ष म्हणून सिक्कीमचे माजी राज्यपाल व थोर विचारवंत डॉ. श्रीनिवास पाटील व स्वागताध्यक्ष ज्येष्ठ विचारवंत ऍड. गौतम सरतापे यांनी भूमिका बजावली. सदर साहित्य संमेलनास मुख्य अतिथी माजी न्यायाधीश व ज्येष्ठ विचारवंत रावसाहेब झोडगे, ज्येष्ठ साहित्यिक डॉ. जयप्रकाश घुमटकर, कवियत्री ललिता गवांदे, कवियत्री नीलिमा जोशी, लेखक विनायकराव जाधव यांची उपस्थिती होती.
“रानमोती” हा तसा “वऱ्हाड वारं” या विदर्भ पर्यटनावर आधारित काव्यसंग्रहानंतर आलेला राणी मोरे यांचा दुसराच काव्यसंग्रह असून देखील जीवन आवश्यक विषयावर अतिशय गंभीर व निरागसपणे भाष्य करणारा, अनाठाई रूढी प्रथांचा नकळत चिमटा काढणारा, आधुनिक काळातील मराठी काव्य क्षेत्रात विभागनिहाय मांडणी केलेला, प्रिंट तसेच डिजिटल प्लॅटफॉर्मवर उपलब्ध असलेला पहिलाच काव्यसंग्रह असल्याने "साहित्य भूषण" पुरस्कारासाठी निवडला गेला असल्याचे मत ज्येष्ठ साहित्यिक तथा निवड समितीचे अध्यक्ष डॉ. जयप्रकाश घुमटकर यांनी स्पष्ट केले.
पुरस्कार स्वीकारल्यानंतर बोलतांना राणी अमोल मोरे-उलेमाले यांनी मराठी साहित्य मंडळाचे आभार व्यक्त करीत दैनदिन मानवी जीवनास उपयोगी व प्रगतीस कारणीभूत ठरणाऱ्या जीवन उपयोगी बाबींवर लिखाणास मराठी साहित्यात प्रचंड वाव असल्याचे स्पष्ट केले. तसेच विदर्भातील साहित्य क्षेत्राला राज्य व देश पातळीवर पुनर्जीवित करण्यासाठी आपण प्रयत्न करणार असल्याचे सांगितले. साहित्य क्षेत्रा व्यतिरिक्त राणी ह्या विदर्भातील गरजू लोकांना मुंबईत राहण्याची व्यवस्था करणाऱ्या विदर्भ वैभव मंदिर न्यासाच्या विश्वस्त असून कृषी व्यवसाय क्षेत्रात कार्यरत आहेत. कोरोना काळात त्यांनी मुंबईत तथा राज्याबाहेर अडकलेल्या बऱ्याच गरजू विदर्भियांना परत प्रवासासाठी मदत केली. तसेच सर्व सामन्यांच्या प्रश्नावर त्यांच्या लेखणीतून त्या परखड मत मांडत असतात. त्यांच्या साहित्य, सामाजिक व सांस्कुतिक अशा अष्टपैलू व्यक्तिमत्वामुळे सर्वच स्तरातून त्यांच्यावर शुभेच्छांचा वर्षाव होत आहे.
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Tuesday, November 2, 2021
मैं भारत
मैं भारत आज कहता हूँ आपसे इस गगन से
मैं भारत वो नही जिसे दिखाया जा रहा है
मैं भारत वो हूँ जिसे छुपाया जा रहा है
धरती के उपर मुझे सजाया नही जाता है
दफन जो मुझे सदियोंसे किया जा रहा है
मैं भारत आज कहता हूँ आपसे इस गगन से
मैं भारत जिसे सदियोंसे दुश्मनोने लुटा
मैं भारत जिसकी जमीन को टुकड़ो में काटा
मैं भारत जिसकी निशानियों को गैरो ने बांटा
मैं भारत जिसका धैर्य कठोर कभी नहीं टुटा
मैं भारत आज पूंछता हूँ आपसे इस गगन से
मैं अखंड था उसे खंडित किसने किया
समानता रक्त मेरा विषम किसने किया
धन का पिटारा मेरा निर्धन किसने किया
श्रमणता पथ मेरा विचलित किसने किया
मैं भारत आज पूंछता हूँ आपसे इस गगन से
मैं आदि अनादि मुझे पिछडा किसने किया
मैं पवित्र निर्मल गंगा मुझे अछूत किसने किया
मैं विद्या का उगम मुझे अनाडी किसने किया
मैं सर्वजन सुखाय मुझे धर्मस्य द्रष्टा किसने किया
मैं भारत आज पूंछता हूँ आपसे इस गगन से
क्यों शत्रुओंने मेरी अस्मिता को मुझसे छिना
क्यों दुश्मनोने मेरी धरती को अपना माना
क्यों पाखंडियोंने मेरे सत्यधर्म को किया निशाना
क्यों मैं आज जात पंथ कपट का बना ठिकाना
मैं भारत आज कहता हूँ आपसे इस गगन से
मैं शांत दयालु हूँ क्रूर विचलीत नहीं
मैं ध्यानमग्न हुँ अधीन किसीके कदापि नहीं
मैं पार्थ निःस्वार्थी हूँ स्वार्थी अभिमानी नहीं
मैं वीर पराक्रमी हूँ कायर परास्त नहीं
मैं भारत आज कहता हूँ आपसे इस गगन से
मैं धरोहर हूँ विश्वास की अविश्वास का पात्र नहीं
मैं चेतना हूँ जीवन की चिंता की चकोरी नहीं
मैं मिसाल हूँ इंसानियत की क्रूरता की विकृति नहीं
मैं सत्य की ज्योत हूँ असत्य से कलंकित नहीं
मैं भारत आज प्रण लेता हूँ खुदसे इस पल से
मैं भारत मुझे अब ढूंढ़ना मेरा अस्तित्व है
मैं भारत मुझे अब सवांरना मेरा कर्तुत्व है
मैं भारत मुझे अब सत्य का डंका बजाना है
मैं भारत मुझे अब सर्वोपरि आगे बढ़ना है
मैं भारत वो नही जिसे दिखाया जा रहा है
मैं भारत वो हूँ जिसे छुपाया जा रहा है
धरती के उपर मुझे सजाया नही जाता है
दफन जो मुझे सदियोंसे किया जा रहा है
मैं भारत आज कहता हूँ आपसे इस गगन से
मैं भारत जिसे सदियोंसे दुश्मनोने लुटा
मैं भारत जिसकी जमीन को टुकड़ो में काटा
मैं भारत जिसकी निशानियों को गैरो ने बांटा
मैं भारत जिसका धैर्य कठोर कभी नहीं टुटा
मैं भारत आज पूंछता हूँ आपसे इस गगन से
मैं अखंड था उसे खंडित किसने किया
समानता रक्त मेरा विषम किसने किया
धन का पिटारा मेरा निर्धन किसने किया
श्रमणता पथ मेरा विचलित किसने किया
मैं भारत आज पूंछता हूँ आपसे इस गगन से
मैं आदि अनादि मुझे पिछडा किसने किया
मैं पवित्र निर्मल गंगा मुझे अछूत किसने किया
मैं विद्या का उगम मुझे अनाडी किसने किया
मैं सर्वजन सुखाय मुझे धर्मस्य द्रष्टा किसने किया
मैं भारत आज पूंछता हूँ आपसे इस गगन से
क्यों शत्रुओंने मेरी अस्मिता को मुझसे छिना
क्यों दुश्मनोने मेरी धरती को अपना माना
क्यों पाखंडियोंने मेरे सत्यधर्म को किया निशाना
क्यों मैं आज जात पंथ कपट का बना ठिकाना
मैं भारत आज कहता हूँ आपसे इस गगन से
मैं शांत दयालु हूँ क्रूर विचलीत नहीं
मैं ध्यानमग्न हुँ अधीन किसीके कदापि नहीं
मैं पार्थ निःस्वार्थी हूँ स्वार्थी अभिमानी नहीं
मैं वीर पराक्रमी हूँ कायर परास्त नहीं
मैं भारत आज कहता हूँ आपसे इस गगन से
मैं धरोहर हूँ विश्वास की अविश्वास का पात्र नहीं
मैं चेतना हूँ जीवन की चिंता की चकोरी नहीं
मैं मिसाल हूँ इंसानियत की क्रूरता की विकृति नहीं
मैं सत्य की ज्योत हूँ असत्य से कलंकित नहीं
मैं भारत आज प्रण लेता हूँ खुदसे इस पल से
मैं भारत मुझे अब ढूंढ़ना मेरा अस्तित्व है
मैं भारत मुझे अब सवांरना मेरा कर्तुत्व है
मैं भारत मुझे अब सत्य का डंका बजाना है
मैं भारत मुझे अब सर्वोपरि आगे बढ़ना है
Tuesday, October 26, 2021
राजन्य
खुदको नवाजा हिरे मोती से
तू चिंगारी है जीवन शांती की
नमन है राजन्य तेजोमय धरती से
अनंत प्रफुल्लित विशालता
शायद कोई ना माप सका
तुही सच्चा ईश्वर धरतीपर
इन्सान ना कोई जान सका
तेरे हर बात का प्रत्यय है
शंका की कोई जगह नही
तुने जो बताया वो सत्य है
कुछ और सोचने की वज़ह नही
तु निरंतर स्थिर कृतीशील है
सर्व समायोजित तेरे पंचशील है
श्रद्धा स्थान पर तुही प्रस्थापित है
बदले नाम पर मूर्तिस्वरूप तुही है
त्रिदेव बन तुही अवतरीत होता है
ज्ञान तेरा हर काल मे भाता है
तु जमीन के अंदर सुरक्षित है
तुही भारत था ये अब सुनिश्चित है
राजीवपद से धरती तीर्थरुप है
तु एक ही है जिसे खोजा जा सकता है
बाकियो को तो बस चिरकाल
कल्पना मे सोचा जा सकता है
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