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Monday, February 22, 2021

देव जाणला ..!


एक संत जणू भगवंत
हाती झाडू असे कीर्तिवंत
करी सदैव राष्ट्र निर्मळ
मानुनी मानवता धर्म केवळ

पटविले महत्त्व शिक्षणाचे
घेऊन नाव भंगवंताचे
अंधश्रद्धेवर करून घणाघात
भांडू नका म्हणे आपसात

ठिगळे जरी होती वस्त्राला
दिनदुबळ्या धर्मशाळा बांधी आश्रयाला
सांगत असे पवित्र मंत्र जगाला
गोपाला गोपाला देवकीनंदन गोपाला

न मिळविता कुठला मेवा
रंजल्या गांजल्याची केली सेवा
तोची साधू मी मानला 
गाडगे बाबातच देव जाणला

Saturday, January 9, 2021

शादी एक डील..!

मॅट्रिमोनी हो या शादी डॉट कॉम
प्रेजेंटेशन ही यहाँ आता है काम
बायोडेटा भरा है मोटे पैकेज से
गैलरी फुल है सेल्फी के लगेज से

लड़कियों की ख्वाइशें हो रही मोअर
लड़के दीखने लगे है खुदसे लोअर
लड़कों के नए नए हेयर स्टाईल
फिर भी रिजेक्टेड उनकी फाईल

पापाजी रहते हमेशा परेशान
बच्चों का चाहते पूरा समाधान
समाज में उनका बड़ा दिग्गज नाम
फिर भी शादी जुड़ाना नहीं आसान काम

हर लड़का चाहता अच्छी डील
लड़की के साथ पैसा भी थोड़ा मिल
दौड़ने लगते है शादी की रेस में
लड़किया देखते हुए विभिन्न भेस में

शादी की इस रंगीनवाली डील में
कोई फायदे में रहे तो कोई घाटे में
कठनाई होते हुए भी बड़ी मजेदार है
हर कोई इस डील में तैरने को तैयार है
 
- रानमोती / Ranmoti

बाज़ार.....?


बाज़ार की लाली और हरयाली
कही खरेदी तो कही बिकवाली
मौका दशहरा तो कभी दिवाली
कही नुकसान तो कही मुनाफ़ा वसूली

चढ़ता उतरता बाजार का भाव
कही खरोंच तो कही भरदे घाव
कभी धीमी तो कभी दौड़ती नाव
शांत बैठे बाज़ एकसाथ मारते ताव

नये शिकार समझते है आसान रास्ता
बाजार की चाल से ना होते हुए वास्ता
पोपट पंछियों की बातों में उलझकर
मानो निकल पड़ते है मशगूल होकर

लगाते है अपने पसीने की पूंजी
सपनों में बस मुनाफे की खोजी
कभी कभी होती सौदो की नैया पार
तो कभी कभी बाजार की पड़ती मार

कुछ लोंगो को लगे ये पैसो की दुकान
कोई ख़रीदे गाड़ी तो कोई नया मकान
किसीको मुश्किल तो किसीको लगे आसान
सतर्कता ही होगी सफलता का निशान

- रानमोती / Ranmoti

Sunday, January 3, 2021

उगवली ज्योती..!


लखलखण्या चांदण्या 
उगवली ज्योती 
दाह करुनी जीवाचा 
वाटिले ज्ञानाचे मोती 

मते नव्हती अनुकूल परी 
माता चालली निष्ठेने 
जग गाजविती चांदण्या 
आपुल्या ज्ञान प्रतिष्ठेने 

केले श्रद्धेने प्रबोधन 
घेऊन सत्याला ओठी 
ज्ञानपथ खोलण्या लेकींना 
जगली माय ती मोठी 

प्रकाशुनी हे भारतवर्ष 
मग मावळली ज्योती 
पुण्य स्मरणात मातेच्या 
बोला जय जोती ! जय क्रांती !!

Friday, January 1, 2021

ख़्वाबों का परचम


इस नए सूरज के साथ आगे बढ़ना है
अपने ख़्वाबों का परचम लहराना है
उसके केशरिया रंग में घुल जाना है
अपनी सुनहरी ज़िंदगी को तराशना है

इस नई सुबह की किरणों को अपनाना है
अपनी सोच का कोहरा फैलाना है
उसकी आग़ाज़ को समझ कर लड़ना है
अपनी ज़िंदगी को सच्चाई से संवारना है

इस दिन के दायरे में कर्मों को बिछाना है
अपने हौंसलो को और बुलंद बनाना है
उसकी सीमा में रहकर असीम होना है
अपनी ज़िंदगी को नया मुक़ाम दिलाना है

इस नए सूरज के साथ आगे बढ़ना है
अपने ख़्वाबों का परचम लहराना है
- राणी अमोल मोरे

Tuesday, December 1, 2020

बादशाह का न्यौता



वैसे तो ख़ुद कभी लड़ते नहीं थे
सहने की आदत जो पड़ी थी
दिन रात पसीना बहाकर ख़ुदका
दुसरो की इबादत नसीब से जुड़ी थी

नजाने इसबार कैसे हिम्मत जुटाई
बादशाह को घेर चारो तरफ रोक लगाई
बीके हुए तोतों ने शुरू की बात गन्दी
आवाज़ दबाने निश्चित की नाकाबंदी

उम्मीद की न कोई किरण थी
इरादो में फिरयाद फिर भी शुरू थी
खुदका वजूद ढूंढ़ने की पहल हुई थी
अपनेही हक़ के ख़ातिर जंग छेडी थी

बादशाह अमीरों का ठेकेदार था
गरीबोंकी बर्बादी का असल दावेदार था
फिर भी प्रजा के सामने शानदार था
उसका झूठा चहरा बड़ा वजनदार था

धुप में तपे चेहरों से सच बयां हो रहे थे
फिर भी तोतों के मुंह झूठ परोस रहे थे
बादशाह कैसे कामयाब है बता रहे थे
अपने बोली की कीमत चूका रहे थे

सत्य की ज्वाला भड़कने से पहले
बादशाह की खुर्सी टूटने से पहले
अपनी झूटी प्रतिमा को बचाने खातिर
बादशाह ने चर्चा का न्यौता दिया आखिर

- रानमोती / Ranmoti
(इमेज सोर्स-अमर उजाला)

Tuesday, November 24, 2020

वर्गातला बंडू


गोष्ट आहे माझ्या वर्गातल्या बंडूची 
नवीन आलेल्या बाईची 
एक दिवस शाळेत 
झाली जरा घाई 
नवीन होत्या बाई 
नाव त्यांचे बापट 
बंडूला मारली चापट 
हातात होती छडी 
बंडूला वाटली बेडी 
डोळयातुन राग गाळत 
चष्मा सांभाळत 
बाई म्हणाल्या बंडूला 
ताठ उभा रहा 
फळयाकडे पहा 
नीट कर नाडा 
बंद कर राडा 
लवकर म्हण आता 
बे चा पाढा 
बंडू थोडा कापला 
उभ्यातच वाकला 
नजर त्याची भेरकी 
घेत होती गिरकी 
वहीत लिहीलेल्या पाढ्यावर 
स्थिरावला त्याचा डोळा 
घाई घाई त्याने 
पाढा केला गोळा 
आणि सुरु झाला 
बे एके बे 
बे दुणे चार 
तिसऱ्याच अंकावर 
बंडू झाला गार 
हे बघून सारं 
बाई झाल्या सुरु 
काय रे बंडू 
आहे नुसता झेंडू 
बंडू होता धीट 
उभा राहुन नीट 
विनंती करुन म्हणाला 
चुकलं माझ जरा 
आज माफ करा 
ठेऊन सारं भान 
अभ्यास करीन छान 
तेवढ्यात वाजली घंटा 
संपला होता तंटा 
दप्तर गुंडाळत 
थोडासा रेंगाळत 
बंडू गेला पळून 
मुले मात्र त्याला 
पाहत होती वळून



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