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Thursday, January 5, 2023

नसीब



नसीब नसीब इतना विलाप क्यों
मांगनेवाला देनेवाले के खिलाप क्यों
जब तू निराशा से झुक जाता है
जहन में तेरे क्यों नसीब आता है
लिखनेवाले ने लिख दिया तुझे पीड़ा क्यों
हर हार और रोने का कारन नसीब क्यों

अभी लड़ना तुझमें बाकी है
इसीलिए तेरी मांगे उसने रोकी है
सोच में न पड़ चल निरंतर
धरती और आसमा का है अंतर
तू कलाकार के भाती अभिनय कर
भयभीत ना हो देनेवाला बैठा है ऊपर
नसीब नसीब इतना विलाप क्यों
मांगनेवाला देनेवाले के खिलाप क्यों

- रानमोती / Ranmoti

Wednesday, January 4, 2023

जनसंख्या


दादीअम्मा नानीअम्मा मान जावो ना
बंद कर दो पोता पोती रट लगाना
नई नई हुई है उनकी शादी
बच्चा मांग के ना करो बर्बादी

रास्तों की भीड़ जरा देखो अपने चश्मे से
कितनी उलझोगी पुराने रीती रस्मों से
भड़क गया है जनसंख्या का हाहाकार
फिर न कहना पोता पोती रह गये बेकार

विरासत का टुकड़ा बट गया चारो में
भाईचारा रह ना जाये बस विचारो में
जनसंख्या वृद्धि समाज की है बीमारी
विकास की कितनी गाथाये है अधूरी

दादीअम्मा नानीअम्मा को है गुजारिश
पोता पोती ना करो बच्चो से सिफारिश
एक ही काफी है वंश चलाने को
देश सराहेंगा आपके इस निर्णय को

- रानमोती / Ranmoti

Monday, January 2, 2023

विरासत



एक युग में देश था मेरा सोने की चिड़िया
दूसरे युग में कोहिनूर ले गई गोरी गुड़िया
कहा गया वो सोना और कहा गया वो नूर
एक था देश का धन तो दूसरा था दस्तूर
बस करो ऐ लुटेरों गुस्ताखी हमें नहीं मंजूर

राजाओं की मालाये सजती थी हिरे मोती से
गुरुओं की वाणी गूंजती सत्य वचनो से
कहा गए वो गुरु और कहा गए वो हीर
एक था देश का निर्माण दूसरा था जेवर
भाड़ोत्री शिक्षा प्रणाली अब क्यों है स्वीकार

विरो की गाथाये सुन खिलते थे फूल शान से
वचनबद्ध रहते थे लोग जीते थे अभिमान से
कहा गए वो वीर और कहा गए वो लोग
एक थे देश की रक्षा तो दूसरे थे नक्शा
क्यों लुटेरों को हमने नादानी में बक्शा

परोसती थी माँ भोजन जैसे अमृत की धारा``
अन्न ही परब्रम्ह यहाँ लगता था नारा
कहा गए वो नारे और कहा गया भोजन
एक अर्थ था संस्कार तो दूसरा था जीवन
क्यों चित्र विचित्र पिज़्ज़ा बर्गर का बना चलन

- रानमोती / Ranmoti

Wednesday, December 28, 2022

हे नदी माँ



नदी के अनोखे रूप देखकर
पूंछा मैंने कुछ इस कदर

हे नदी माँ
तुम इतनी निराली क्यों हो
जब खूब वर्षा होती है
सैलाब बन डराती हो
अकाल जब पड़ता है
बून्द बून्द को तरसाती हो

नदी बोली
मै कहाँ कुछ करती हूँ
दोनों भी प्रकृति के वरदान है
मै तो बस कर्त्तव्य निभाती हूँ
मेरा अस्तित्व नियति का खेल है
मै खुद से ना बढ़ा सकती हूँ
ना कभी घटा सकती हूँ
सब अपने आप होता है
मै बस एक आकार हूँ

हे नदी माँ
समुद्र से छोटी होकर भी
समुद्र को जल से भरती हो
बदले में कुछ कभी
लेती भी नहीं हो
जवाब दो माँ
बड़ी तुम या सागर

नदी बोली
सागर को मेरा देना
दिख जाता है
सबको विलीन करना
उसका छुप जाता है
सागर का तो गुप्तदान है
किसी एक को नहीं
सबको समाना नेक काम है
खुद किसी में घुलना
हर किसी को संभव है
सबको विलीन कर
खुद वैसे ही रहना अद्भुद है
सागर तो मेरा उद्देश्य है
राह में मिले उनको बाँटना
छोटासा मिला दायित्व है

हे नदी माँ
मै समझ गई इस बात को
आपके इस कर्तव्य को
निरंतर निभा रहे दायित्व को
आखिर होना कही विलीन है
दायित्व निभाना अनिवार्य है
-  रानमोती / Ranmoti

बेवजह


कभी कभी ज्यादा ज्ञान
डर पैदा करता है
अज्ञानी का ज्ञान ही उसे
निडर दिखलाता है

शोर में हर कोई
चीखता चिल्लाता है
ख़ामोशी में चुप्पी साध
विनम्र दिखलाता है

वजह ढूंढ़कर कई
निर्णय जन्म लेते है
बेवजह तो हम यूँही
खुदको भूल जाते है

बेवजह मन में अगर
कोई विचार पनपता है
तो उसे घटने की संभावना
शत प्रतिशत होती है

कुछ पाने के लिए
सोच तो तभी पाएंगे
जब करने के लिए
कटिबद्ध हो जायेंगे

हमें ज्यादा की
जरुरत तो नहीं
पर जरूरतों से मुँह
फेरना भी नहीं

जिंदगी के अंत तक
कुछ ना कुछ अच्छा हो हमसे
जब हिसाब करने बैठे
बेवजह ना लगे जीवन खुदसे

Monday, December 26, 2022

त्रिलोक सुंदरी

त्रिलोक सुंदरी
मन मोहन पे हारी
जिद पे अड़ी
आई मिलन की घडी
लेके श्याम सी हँसी
ओठों पे रुख्मिणी
तू सज धज के चली
द्वारका आँगन की गली
भाव विभोर
ह्रदय व्याकुल तेरा
बसता संसार
तेरे श्याम में सारा

खनकार सुन पायल की
कान्हा आये प्रेमरथ लेकर
क्या खोया क्या पाया
तूने कुछ न जाना
एक ही लक्ष
कृष्ण अपना माना
लेके श्याम की हँसी
ओठों पे रुख्मिणी
तू सज धज के चली
द्वारका आँगन की गली

मोहन के संग
तू ऐसे चली
जैसे सरिता
सागर से मिली
सूरज की रौशनी
सफर तय कर
धरती को छूने चली
त्रिलोक सुंदरी
मन मोहन पे हारी
जिद पे अड़ी
आई मिलन की घडी

- रानमोती / Ranmoti

Monday, December 5, 2022

सभ्यता


वो पौधा कल खिला था
कुछ दिन प्रकृति से लढा था
फिर एक दिन हार गया
शायद किसीने कुचल दिया

वो वृक्ष भी गहरा होता पीपल तक
अगर किसीने सींचा होता जड़ोंतक
उसकी रगो में भी हौंसला भरा होता
उसका सामर्थ्य अगर पहचाना होता

न जाने देश के कितने घरों में
मुरझा गये वो कोमल फूल
जो अनदेखे रहे इस जहाँ में
किसीकी नजर के इंतजार में

वो भी बन जाते देश की शान
अगर किसीकी एक आवाज
पोहचती उनकी जड़ोंतक
कहती उठो पोहचो मंजिल तक

इस नोटंकी भरे जीवन में
देश की पीढ़ी कभी ना फसती
अगर पुरातन सभ्यता बताई जाती
शान से हरतरफ लहराई जाती

अगर हम समझकर पोहचते
भारतीय सभ्यता की जड़ोंतक
हर जीवन खिलता पनपता
किसी के अन्याय से कभी ना डरता

- रानमोती / Ranmoti

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