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Monday, December 26, 2022

त्रिलोक सुंदरी

त्रिलोक सुंदरी
मन मोहन पे हारी
जिद पे अड़ी
आई मिलन की घडी
लेके श्याम सी हँसी
ओठों पे रुख्मिणी
तू सज धज के चली
द्वारका आँगन की गली
भाव विभोर
ह्रदय व्याकुल तेरा
बसता संसार
तेरे श्याम में सारा

खनकार सुन पायल की
कान्हा आये प्रेमरथ लेकर
क्या खोया क्या पाया
तूने कुछ न जाना
एक ही लक्ष
कृष्ण अपना माना
लेके श्याम की हँसी
ओठों पे रुख्मिणी
तू सज धज के चली
द्वारका आँगन की गली

मोहन के संग
तू ऐसे चली
जैसे सरिता
सागर से मिली
सूरज की रौशनी
सफर तय कर
धरती को छूने चली
त्रिलोक सुंदरी
मन मोहन पे हारी
जिद पे अड़ी
आई मिलन की घडी

- रानमोती / Ranmoti

Monday, December 5, 2022

सभ्यता


वो पौधा कल खिला था
कुछ दिन प्रकृति से लढा था
फिर एक दिन हार गया
शायद किसीने कुचल दिया

वो वृक्ष भी गहरा होता पीपल तक
अगर किसीने सींचा होता जड़ोंतक
उसकी रगो में भी हौंसला भरा होता
उसका सामर्थ्य अगर पहचाना होता

न जाने देश के कितने घरों में
मुरझा गये वो कोमल फूल
जो अनदेखे रहे इस जहाँ में
किसीकी नजर के इंतजार में

वो भी बन जाते देश की शान
अगर किसीकी एक आवाज
पोहचती उनकी जड़ोंतक
कहती उठो पोहचो मंजिल तक

इस नोटंकी भरे जीवन में
देश की पीढ़ी कभी ना फसती
अगर पुरातन सभ्यता बताई जाती
शान से हरतरफ लहराई जाती

अगर हम समझकर पोहचते
भारतीय सभ्यता की जड़ोंतक
हर जीवन खिलता पनपता
किसी के अन्याय से कभी ना डरता

- रानमोती / Ranmoti

Sunday, December 4, 2022

कुपोषित आँखों से


कुपोषित आँखों से
जग देखने चला मै
कमजोर पैरों से
रेंगने चला मै

दबे कंधो से
लड़ने चला मै
भीगी आँखों से
रोने चला मै

भूख के दर्द से
बोलने चला मै
खाली थाली से
खाने चला मै

फैले हाँथो से
क्या मांगू मै
गिरने के डर से
कैसे उठु मै

सब गिर जाएगा
सँभालने से पहले
हौंसला टूट जायेगा
बढ़ने से पहले

चमकते तारो से
अक्सर शिकायत है
जो मेरी किस्मत से
मुझे चिढ़ाते है

भूख का काजल
झलकता आँखों में
सदियों की भूख
संचित मेरे हृदय में

कैसे लगेगी नज़र
माँ तेरे बछड़े को
जिंदगी खपा जिसपर
खुद तैयार हँसने को

कुपोषित आँखों से
जग देखने चला मै
कमजोर पैरों से
रेंगने चला मै

- रानमोती / Ranmoti

Thursday, November 17, 2022

स्वयंवर



जीत और हार दो सिरा पर
खड़ी थी वरमाला संग
स्वयंवर रचाया पिता कर्त्तव्य ने
देखे सबके गुणों के रंग
अधिकार था दोनो को
चुने अपना वर
अनिवार्य था कर्म उसमें
हो सबसे ऊपर
जीत के मन को भाता
वही वर हौसलों के गीत गाता
इच्छा जिसकी प्रबल हो
कर्म विजय से प्रभवित हो
बस वही मेरा वर हो
जीत की वरमालाये
पड़ेगी उसके गले में
जो दौड़े के स्वयं
मशगूल रहे मंजिलो में
हार का तो बस हा हा कार था
उसका ही स्वीकार सर्वोतोपरी था
जिसके हौसले थे टुटे
जिसकी आँखो में स्वप्न थे फूटे
मन ही जिसके कर्मो को लुटे
वही वर से हार का इंतजार मिटे
अब आप के प्रदर्शन पे निर्भर है
कोन बनेगा हार का मीत
कोन बनेगा जीत का मीत
जीत और हार का चुनाव ही
है हर इंसान के जीवन की रीत

- रानमोती / Ranmoti

Friday, November 11, 2022

द्विप अंडमान

स्थलखंड का एक अंग
जल से घिरा चारो छोर
अलग-थलग मातृभूमि से
सागर में नर्तक मोर

शांति सुकून से संपन्न
क्रान्तिशूरों से भूमि पावन
गहरे वनों की गुफावों में
प्रकृती की आस राहों में

पेड, पौधे, पशु, पक्षी
आद्य सुंदरी कला नक्षी
जरावा, ओंगेस संग नेग्रि
नीलम तट और आग्नेयगिरि

गहरे पुष्प फल श्रीफल
प्रकृति की गोद निर्मल
सुंदरता की श्रेष्ठ पहल
अंडमान द्वीप एक चहल
- रानमोती / Ranmoti

साक्षात्कार



पुराने नये साहित्य के कर्कट में खोजकर
सत्य से लथपथ मोतियों को चुनकर
नये साहित्य का प्रणयन कर
नई पिढी को नए मार्ग प्रदान कर

जो अनुभवो का साक्षात्कार हुआँ
उन्हींको साथ लेकर बढ़ना है
साक्षात्कार के विपरीत चलने से
कलियुग की अनुभुती निश्चित है

समय पुराना या नया नही होगा
सत्य पुराना या नया नहीं होगा
विद्युत का विपरीत प्रवाह होगा
बस गौर से परखना होगा

जीना जिवन है अगर पुरा जिया जाये
मृत्यू आनंद है अगर जीना छोड़ा जाये
मूढ़ ही है ज्ञानी जो आत्मघात कर लेता है
श्रेष्ठ है जड़ जो यन्तणा सह जी जाता है

- रानमोती / Ranmoti

जीवन संगिनी



रचके तुलसी चरणों में तेरे
हो गई पावन मै तो सांवरे
सुगंध ऐसा चढ़ा सांवरे को
जग भूल गया मनमोहन
मै ना राधा दिवानी
मै ना मीरा दिवानी
मै तू हूँ रुख्मिणी
तेरी जीवन संगिनी

तुलसी से तेरा संजोग दिन का
मीरा तो स्वर है अकेले मन का
प्रीत में राधा जैसे बजती पायल
सोच के मन मेरा होवे घायल
मै ना राधा दिवानी
मै ना मीरा दिवानी
मै तू हूँ रुख्मिणी
तेरी जीवन संगिनी

राधा तो तेरी बतिया कान्हा
मीरा भये पानी से नैना
सुख में राधा दुःख में राधा
मोहन जो धन तेरा अब हो रहा मेरा
मै ना राधा दिवानी
मै ना मीरा दिवानी
मै तू हूँ रुख्मिणी
तेरी जीवन संगिनी

- रानमोती / Ranmoti

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