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Monday, December 5, 2022
सभ्यता
वो पौधा कल खिला था
कुछ दिन प्रकृति से लढा था
फिर एक दिन हार गया
शायद किसीने कुचल दिया
वो वृक्ष भी गहरा होता पीपल तक
अगर किसीने सींचा होता जड़ोंतक
उसकी रगो में भी हौंसला भरा होता
उसका सामर्थ्य अगर पहचाना होता
न जाने देश के कितने घरों में
मुरझा गये वो कोमल फूल
जो अनदेखे रहे इस जहाँ में
किसीकी नजर के इंतजार में
वो भी बन जाते देश की शान
अगर किसीकी एक आवाज
पोहचती उनकी जड़ोंतक
कहती उठो पोहचो मंजिल तक
इस नोटंकी भरे जीवन में
देश की पीढ़ी कभी ना फसती
अगर पुरातन सभ्यता बताई जाती
शान से हरतरफ लहराई जाती
अगर हम समझकर पोहचते
भारतीय सभ्यता की जड़ोंतक
हर जीवन खिलता पनपता
किसी के अन्याय से कभी ना डरता
- रानमोती / Ranmoti
Sunday, December 4, 2022
कुपोषित आँखों से
कुपोषित आँखों से
जग देखने चला मै
कमजोर पैरों से
रेंगने चला मै
दबे कंधो से
लड़ने चला मै
भीगी आँखों से
रोने चला मै
भूख के दर्द से
बोलने चला मै
खाली थाली से
खाने चला मै
फैले हाँथो से
क्या मांगू मै
गिरने के डर से
कैसे उठु मै
सब गिर जाएगा
सँभालने से पहले
हौंसला टूट जायेगा
बढ़ने से पहले
चमकते तारो से
अक्सर शिकायत है
जो मेरी किस्मत से
मुझे चिढ़ाते है
भूख का काजल
झलकता आँखों में
सदियों की भूख
संचित मेरे हृदय में
कैसे लगेगी नज़र
माँ तेरे बछड़े को
जिंदगी खपा जिसपर
खुद तैयार हँसने को
कुपोषित आँखों से
जग देखने चला मै
कमजोर पैरों से
रेंगने चला मै
- रानमोती / Ranmoti
Thursday, November 17, 2022
स्वयंवर
जीत और हार दो सिरा पर
खड़ी थी वरमाला संग
स्वयंवर रचाया पिता कर्त्तव्य ने
देखे सबके गुणों के रंग
अधिकार था दोनो को
चुने अपना वर
अनिवार्य था कर्म उसमें
हो सबसे ऊपर
जीत के मन को भाता
वही वर हौसलों के गीत गाता
इच्छा जिसकी प्रबल हो
कर्म विजय से प्रभवित हो
बस वही मेरा वर हो
जीत की वरमालाये
पड़ेगी उसके गले में
जो दौड़े के स्वयं
मशगूल रहे मंजिलो में
हार का तो बस हा हा कार था
उसका ही स्वीकार सर्वोतोपरी था
जिसके हौसले थे टुटे
जिसकी आँखो में स्वप्न थे फूटे
मन ही जिसके कर्मो को लुटे
वही वर से हार का इंतजार मिटे
अब आप के प्रदर्शन पे निर्भर है
कोन बनेगा हार का मीत
कोन बनेगा जीत का मीत
जीत और हार का चुनाव ही
है हर इंसान के जीवन की रीत
- रानमोती / Ranmoti
Friday, November 11, 2022
द्विप अंडमान
स्थलखंड का एक अंग
जल से घिरा चारो छोर
अलग-थलग मातृभूमि से
सागर में नर्तक मोर
शांति सुकून से संपन्न
क्रान्तिशूरों से भूमि पावन
गहरे वनों की गुफावों में
प्रकृती की आस राहों में
पेड, पौधे, पशु, पक्षी
आद्य सुंदरी कला नक्षी
जरावा, ओंगेस संग नेग्रि
नीलम तट और आग्नेयगिरि
गहरे पुष्प फल श्रीफल
प्रकृति की गोद निर्मल
सुंदरता की श्रेष्ठ पहल
अंडमान द्वीप एक चहल
जल से घिरा चारो छोर
अलग-थलग मातृभूमि से
सागर में नर्तक मोर
शांति सुकून से संपन्न
क्रान्तिशूरों से भूमि पावन
गहरे वनों की गुफावों में
प्रकृती की आस राहों में
पेड, पौधे, पशु, पक्षी
आद्य सुंदरी कला नक्षी
जरावा, ओंगेस संग नेग्रि
नीलम तट और आग्नेयगिरि
गहरे पुष्प फल श्रीफल
प्रकृति की गोद निर्मल
सुंदरता की श्रेष्ठ पहल
अंडमान द्वीप एक चहल
साक्षात्कार
पुराने नये साहित्य के कर्कट में खोजकर
सत्य से लथपथ मोतियों को चुनकर
नये साहित्य का प्रणयन कर
नई पिढी को नए मार्ग प्रदान कर
जो अनुभवो का साक्षात्कार हुआँ
उन्हींको साथ लेकर बढ़ना है
साक्षात्कार के विपरीत चलने से
कलियुग की अनुभुती निश्चित है
समय पुराना या नया नही होगा
सत्य पुराना या नया नहीं होगा
विद्युत का विपरीत प्रवाह होगा
बस गौर से परखना होगा
जीना जिवन है अगर पुरा जिया जाये
मृत्यू आनंद है अगर जीना छोड़ा जाये
मूढ़ ही है ज्ञानी जो आत्मघात कर लेता है
श्रेष्ठ है जड़ जो यन्तणा सह जी जाता है
- रानमोती / Ranmoti
जीवन संगिनी
रचके तुलसी चरणों में तेरे
हो गई पावन मै तो सांवरे
सुगंध ऐसा चढ़ा सांवरे को
जग भूल गया मनमोहन
मै ना राधा दिवानी
मै ना मीरा दिवानी
मै तू हूँ रुख्मिणी
तेरी जीवन संगिनी
तुलसी से तेरा संजोग दिन का
मीरा तो स्वर है अकेले मन का
प्रीत में राधा जैसे बजती पायल
सोच के मन मेरा होवे घायल
मै ना राधा दिवानी
मै ना मीरा दिवानी
मै तू हूँ रुख्मिणी
तेरी जीवन संगिनी
राधा तो तेरी बतिया कान्हा
मीरा भये पानी से नैना
सुख में राधा दुःख में राधा
मोहन जो धन तेरा अब हो रहा मेरा
मै ना राधा दिवानी
मै ना मीरा दिवानी
मै तू हूँ रुख्मिणी
तेरी जीवन संगिनी
- रानमोती / Ranmoti
कारीगिरी
तुम बस अपनी कारीगिरी पर ध्यान लगाना
तुम्हे अपना हुनर है आजमाना
भूल जाना दिन है या रात
डूब जाना अपने लक्ष के साथ
शिल्प कौशल की कला
हाथों में लेकर तू निकला
करुणा के साथ उतर जाना
नई धरोहर का परचम लहराना
हे कारागीर
तुम बस अपनी कारीगिरी पर ध्यान लगाना
तुम्हे अपना हुनर है आजमाना
प्रेम इतना भरना
की पत्थर भी जीवित हो उठे
खाकर तेरे अनगिनत घाव
सदा तुझ संग रहे डटे
अपनी चेतना को बनाकर हथियार
तू शिल्प पे उतार दे अनेक भाव
वो पत्थर सुन्दर मूरत बनकर जब सजे
रंगो से भरना उनमे प्राण
समर्पण तेरा इतना हो
उस मूरत में भी तेरी सूरत हो
तेरे हाथो के रक्त की एक एक बून्द
विभिन्न रंगो में समावेशित हो
रंग ऐसा चढ़ जाये उसपर
हर तरफ बस तेरी ही पुकार हो
हे कारागीर,
तेरी कारीगिरी अमर हो ऐसा जोर लगाना
तुम बस अपनी कारीगिरी पर ध्यान लगाना
तुम्हे अपना हुनर है आजमाना
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