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Thursday, September 1, 2022

शिउली

मानों मै शिउली का
रम्य प्रसन्न तटस्थ तरु
रचनाये मेरी उसके पुष्प
सुगंधित प्रभात करे शुरू

वो खिलकर मुझसे
लुढ़कते है जमींपर
सुन्दर मधुर सुरभि
महकाते है सृष्टिपर

कोई समेट हाथो में
सौरभ से भर जाता
तो कोई कुचल पैरोंतले
अनभिज्ञ अग्र निकल जाता

रचनाये फूल है मेरी
कभी ना करती भेद
हर किसी को महकाती
जैसे जीवन में वेद

उठाने वाले कुचलने वाले
दोनों को एहसास दिलाती
उनकी रास्तों में सजकर
मोतियों भाँति उन्हें सजती

सीधी साधी हलकी फुलकी
शिउली बन हुनर आजमाती
हंसती मुस्कुराती रचनाये मेरी
किसी-न-किसी मन को भाती
- रानमोती / Ranmoti

Wednesday, August 31, 2022

आँगन

सज़ा दूँ मै तेरा आँगन कितना
धरती का आसमाँ से नाता जितना
फ़ुल खिलेंगे शनैः-शनैः बातें करेंगे
रंग फ़िज़ावो में उमदा मौज भरेंगे

तोता भी आयेगा कोयल भी गायेगी
चिड़ियों की मधुर पाठशाला भी होगी
पंछियों की अपनी ही दुनिया सजेगी
छोटे छोटे गमलों से उनकी प्यास बुझेगी

रंगबिरंगी पोशाखो में तितलियाँ आयेंगी
जीवन गीत रंगो का पंक्तियाँ सुनायेंगी
अष्ट दिशाओं में सुनहरी धूप परछाईं होगी
विभिन्न फल और पुष्पों की नुमाइश होगी

तिनका तिनका जिंदगी बढ़ती जाएगी
पैरो तले शान से खुशियाँ मंडराएगी
सज़ा दूँ मै तेरा आँगन कितना
धरती का आसमाँ से नाता जितना
- रानमोती / Ranmoti

Monday, August 29, 2022

तरह

दिन बरसते बारिशों की तरह
एक तरंग ख़ुशबू फूलों की तरह
धूप छाँव लहराती परदों की तरह
प्रकाश से सजी धरती नदियों की तरह

चेतना सरसराये पत्तों की तरह
मन महकाये ऋतुओं की तरह
चेहरा खिलखिलाये चाँद की तरह
जीवन झिलमिलाये सूरज की तरह

साल निकलते लमहों की तरह
याद रह जाये कहानी की तरह
पहल करायें नई साँसों की तरह
जीना सिखलाये अजनबी की तरह
दिन बरसते बारिशों की तरह
- रानमोती / Ranmoti

Saturday, August 27, 2022

विज्ञान के गुरुवर्य

हे विज्ञान के गुरुवर्य
तू आग के पंख लगाकर
विज्ञान का सेहरा सजाकर
उड़ गया जिस मंज़िल तक
उस मंजिल तक हमें भी पहुंचा दे
हे विज्ञान के गुरुवर्य
हमें भी कलाम बना दे

हे विज्ञान के गुरुवर्य
जो रहे तुम्हारे अधूरे ख़्वाब
पूरा करेंगे उन्हें सब नन्हे नवाब
तू बस उनका पता बताकर
इस जंगल में आग लगा दे
हे विज्ञान के गुरुवर्य
हमें भी रमन बना दे

हे विज्ञान के गुरुवर्य
ये देश बने आविष्कारों की भूमि
हर देशवासी रहेगा तुम्हारा ऋणी
उन आविष्कारों की भनक लगाकर
तू बस सोच की तिल्ली जला दे
हे विज्ञान के गुरुवर्य
हमें भी सत्येन्द्र बना दे

हे विज्ञान के गुरुवर्य
देना हमें उन रास्तों का नक्शा
जिनकी बदौलत हो देश की रक्षा
भारत की आँखों में उम्मीद जगाकर
तू हर खोजी को आशीष दिला दे
हे विज्ञान के गुरुवर्य
हमें भी भाभा बना दे
- रानमोती / Ranmoti

Wednesday, August 24, 2022

छलांग

तुझसे क्या छिपा है
जो तू पीछे है अबतक
अकथित जो मंत्र है
रूठेंगे तुझसे कबतक

जीवन के रहस्यों को
सुन उनकी शब्दों में
अनकहे किस्सों को
ढूँढ उनकी किताबों में

तेरी अतृप्त भूख तू
जल से मिटा मत देना
पंच-पकवान की आस तू
यूँ ही छोड़ मत देना

उसकी सुगंध सूंघकर
रास्ता ढूँढले अनजान
तेरा भी हक़ है उसपर
पेटभर चख ले अरमान

रास्तों पर कठनाईयाँ
सुनकर रुक मत जाना
ज़िद रख उन्हें लाँधकर
तुझे मंजिल को है पाना

तू भी अंश है प्रकृति का
बात यह सुनिश्चित कर
सबको कवच है नियति का
तू देख उठाके नजर

दुसरो की जय से पहले
अपनी विजय निश्चित कर
वक्त पर मार छलांग
अन्यथा पछतायेगा जिंदगीभर
- रानमोती / Ranmoti

Friday, August 19, 2022

विरचित विजय

एक कालखंड महान षड़यंत्र
सेनापति कैसे बना राजन्य
इतिहास में लिखित कानमंत्र
विरचित विजय ना कुछ अन्य
ढाई सौ सालो का राज्य
एक सच्चे राज्य का नाज
प्रफुल्लित थे राजाधिराज
सोचा राज्य को देंगे शाबाशी
बाँटी जाये प्रजा में ख़ुशी
साथ ही हो विरो का सन्मान
सेनापति को भी मिले मान

मगर,
मौका फिरस्त था सेनापति
मन में कपट ज्वाला भाती
सोचा राजा को है मुझ पे नाज
क्यों ना छीन लू मै सरताज
शुरू की अपनी चतुराई
हर फितूर को दी लुगाई
एक साथ सब गद्दार जमाये
राजवंश ने सालो में गवाए
धोका तो खून में था
सेनापति का वंश ही फितूर था

फिर,
वह उत्सव की घडी आई
राज्य में हरतरफ थी रोशनाई
राजाने दी प्रजा को बधाई
हर वीर को मिली अपनी शाई
सेनापति का मन बेचैन था
ग़द्दारों में वह अव्वल था
भरे उत्सव में उसने ठानी
होगा राजा आनंद में धनि
तब लिखूंगा मै अपनी कहानी
राज्य में छाएगी अनहोनी


सेनापति,
मन में ले कपट ऐसा झपटा
विष का नाग जैसे लिपटा
भरी सभा को उसने बाँटा
मन में बोया युद्ध का काटा
सभा को झूटी कहानी बताकर
अघटित को घटित समझाकर
अपने साथियों से मिलकर
झूठे दुश्मनो की कहानी रचकर
चतुराई से की अपनी मनमानी
राजासे करवादी एक नादानी
राजा युद्ध को तैयार न था
उसको थोड़ा अंदेशा था
यह कोई सोची समझी चाल है
अपनाही पहना गद्दारी की खाल है

लेकिन,
अब ना कोई रास्ता था
प्रजा की सुरक्षा का वास्ता था
विवश होकर सेना को
दिया युद्ध का आदेश
प्राणो से प्रिय थी राजा को
अपनी प्रजा और स्वदेश
सेनापति मन ही मन ललचाया
अपनी साजिश का अंत युद्धमे पाया
उत्सव की सभा बनी युद्ध की ललकार
सेनापति ने बुलंद की अपनी तलवार
पर नाम उसपर दुश्मन का ना था
राजा का अंत बस जहन में था

अंतत:
अनचाहे युद्ध का आगाज हुआ
राजा संग सेना का तिलक हुआ
निकल पड़े मैदान में
झूठे दुश्मनों की खोज में
फसते गए शिकारी के जाल में
पड गई अमावस्या की काली छाया
असत्य ने डाली अपनी काया
आगे मनघडन दुश्मन था
साथ फितूर सेनापति का राज था
दुश्मनों का वार सहने से पहले
युद्ध का आगाज होने से पहले
गिधड बैठा आँख लगाकर
सही समय पर तीर चढ़ाकर
कर दिया अपनेही राजा पे वार
सेनापति था वह फितूर गद्दार
अपनेही राजा के पीठ में खंजीर चलाया
युद्ध में मारा गया प्रजा को जताया
स्वयम को सम्राट घोषित किया
अब वही मालिक सबको समझाया
राजवंश का पूर्ण नाश हो
बस उसकी ही जयजयकार हो
इसकदर सबको धमकाया
एक अकेलाही नायक भाया

पश्चात्
वीरता की झूठी गाथा लिखकर
मनघडन साहित्य से बहुश्रुत होकर
प्रजा में जबरन नायक कहलाया
इतिहास के पन्नोंपर वो छाया
उसके राज्य में असत्य पनपता
हरतरफ गद्दरों का गुणगान होता
प्रजा समक्ष नितांत बलवान दिखाता
गद्दार सेनापति अब राजा कहलाता
आगे चलकर फितूर साहित्यकारोंने
उसे राज्य का भगवान बना दिया
इसी तरह विरचित विजय अजय हो गया
एक सच्चे राज्य का विध्वंस हो गया
- रानमोती / RANMOTI

एक दिन की समस्या


दूर दराज़ जंगल के पार
बस्ती थी मेरी और परिवार
सुन्दर नदी पेड़ों की मुस्कान
बाढ़ का साया हरसाल तूफान
एक टुटाफूटा घर मानो छाले पड़े
जीवन पनपता उसमे जैसे वृक्ष खड़े
हर दिन नया सवेरा जीने की आस थी
एक डरावने दिन और रात की बस बात थी

माँ की सांसो को हर पल हृदय नाप रहा था
नौ महीनो से सृष्टि की चाहत में तरस रहा था
शायद वह आखरी दिन था माँ की कोख में रहने का
उसकी भी चाह थी मै बाहर आऊँ आनंद लू जीवन का
माँ तड़प रही थी दर्द से मदद मांगती किसी मर्द से
शायद वह मेरा बाप था जो व्याकुल था मेरी उम्मीद से
उस टूटीफूटी झोपडी में बारिश गंगा रूप बरस रही थी
बाढ़ और तूफान से बस वही एक सबका सहारा थी

बड़ी कठनाई संग माँ की कोख छोड़ पैदा हुआ
पहिली बार किसी अनछुये स्पर्श का एहसास हुआ
आँखे खोलू की ना खोलू समझ में ना आया
दुनिया में दिन पहला था या आखरी जान ना पाया
एक माई आकर बोलने लगी यह बचेगा नहीं
यहाँ का माहौल इसे इसकदर जचेगा नहीं
चलो ले चलो इसे अस्पताल नदी पार कही
जहा मिले इसे सुविधा डाक्टर और इलाज सही

आँखे खोलने ही वाला था पर मै घबरा गया
सोचा खोल के भी क्या करू जब वक्त निकल गया
एक दिन की दुनिया की मोहब्बत में पड़ जाऊँगा
जो पाया नहीं देखा नहीं उसे भी पल में खो जाऊँगा
इस कश्मकश में जीवन की एक घड़ी बीत गई
चाह थी रोशनाई की अंधियारे संग मिटती गई
अचानक दो चार बस्तीवाले जमा होकर पास आये
एक झोली में डाल मुझे अपने साथ ले गये

शायद उन्हें नदी पार कर मुझे ले जाना था
बाढ़ तो मानो धरती पर निरंतर झरना था
लड़खड़ाते पाँव ले गये आखिर किनारे तक
दूसरी घड़ी भी बीत गई इंतजार में तब तक
मौत मंडराती रही जिंदगी घुटने टेक रही थी
आरोग्यसेवा ठप्प थी दरबदर सन्नाटे की गंध थी
सब छाती पिट हताश हो बस्ती को कोस रहे थे
कहानी ये उन सबकी हरसाल बस सोच रहे थे

आशा निराशा में बदल गई जब तीसरी घड़ी आई
हर किसी की उम्मीदों पर मातम की परछाई
ठण्ड से रोम रोम मेरा कांप सिकुड़ रहा था
भूख के मारे पेट ज्वाला बन तड़प रहा था
रोने का मन किया सोचा इन्हे बोल दूँ
अपनी मासूम सी भूख अब खोल दूँ
फिर मन ही मन मुस्कुराया और
खुदसे ही बोला सुन ज़रा रुक
एक दिन की तो समस्या है
बस एक दिन की समस्या

-रानमोती / RANMOTI
{महाराष्ट्र के पालघर जिले की बालमृत्यु घटना से प्रेरित}

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