एक कालखंड महान षड़यंत्र
सेनापति कैसे बना राजन्य
इतिहास में लिखित कानमंत्र
विरचित विजय ना कुछ अन्य
ढाई सौ सालो का राज्य
एक सच्चे राज्य का नाज
प्रफुल्लित थे राजाधिराज
सोचा राज्य को देंगे शाबाशी
बाँटी जाये प्रजा में ख़ुशी
साथ ही हो विरो का सन्मान
सेनापति को भी मिले मान
मगर,
मौका फिरस्त था सेनापति
मन में कपट ज्वाला भाती
सोचा राजा को है मुझ पे नाज
क्यों ना छीन लू मै सरताज
शुरू की अपनी चतुराई
हर फितूर को दी लुगाई
एक साथ सब गद्दार जमाये
राजवंश ने सालो में गवाए
धोका तो खून में था
सेनापति का वंश ही फितूर था
फिर,
वह उत्सव की घडी आई
राज्य में हरतरफ थी रोशनाई
राजाने दी प्रजा को बधाई
हर वीर को मिली अपनी शाई
सेनापति का मन बेचैन था
ग़द्दारों में वह अव्वल था
भरे उत्सव में उसने ठानी
होगा राजा आनंद में धनि
तब लिखूंगा मै अपनी कहानी
राज्य में छाएगी अनहोनी
सेनापति,
मन में ले कपट ऐसा झपटा
विष का नाग जैसे लिपटा
भरी सभा को उसने बाँटा
मन में बोया युद्ध का काटा
सभा को झूटी कहानी बताकर
अघटित को घटित समझाकर
अपने साथियों से मिलकर
झूठे दुश्मनो की कहानी रचकर
चतुराई से की अपनी मनमानी
राजासे करवादी एक नादानी
राजा युद्ध को तैयार न था
उसको थोड़ा अंदेशा था
यह कोई सोची समझी चाल है
अपनाही पहना गद्दारी की खाल है
लेकिन,
अब ना कोई रास्ता था
प्रजा की सुरक्षा का वास्ता था
विवश होकर सेना को
दिया युद्ध का आदेश
प्राणो से प्रिय थी राजा को
अपनी प्रजा और स्वदेश
सेनापति मन ही मन ललचाया
अपनी साजिश का अंत युद्धमे पाया
उत्सव की सभा बनी युद्ध की ललकार
सेनापति ने बुलंद की अपनी तलवार
पर नाम उसपर दुश्मन का ना था
राजा का अंत बस जहन में था
अंतत:
अनचाहे युद्ध का आगाज हुआ
राजा संग सेना का तिलक हुआ
निकल पड़े मैदान में
झूठे दुश्मनों की खोज में
फसते गए शिकारी के जाल में
पड गई अमावस्या की काली छाया
असत्य ने डाली अपनी काया
आगे मनघडन दुश्मन था
साथ फितूर सेनापति का राज था
दुश्मनों का वार सहने से पहले
युद्ध का आगाज होने से पहले
गिधड बैठा आँख लगाकर
सही समय पर तीर चढ़ाकर
कर दिया अपनेही राजा पे वार
सेनापति था वह फितूर गद्दार
अपनेही राजा के पीठ में खंजीर चलाया
युद्ध में मारा गया प्रजा को जताया
स्वयम को सम्राट घोषित किया
अब वही मालिक सबको समझाया
राजवंश का पूर्ण नाश हो
बस उसकी ही जयजयकार हो
इसकदर सबको धमकाया
एक अकेलाही नायक भाया
पश्चात्
वीरता की झूठी गाथा लिखकर
मनघडन साहित्य से बहुश्रुत होकर
प्रजा में जबरन नायक कहलाया
इतिहास के पन्नोंपर वो छाया
उसके राज्य में असत्य पनपता
हरतरफ गद्दरों का गुणगान होता
प्रजा समक्ष नितांत बलवान दिखाता
गद्दार सेनापति अब राजा कहलाता
आगे चलकर फितूर साहित्यकारोंने
उसे राज्य का भगवान बना दिया
इसी तरह विरचित विजय अजय हो गया
एक सच्चे राज्य का विध्वंस हो गया
- रानमोती / RANMOTI