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Sunday, August 7, 2022

साहित्य


मेरी क़लम ही
मेरी चूड़ियाँ खनकती
उच्च विचार श्रवणीय
बालियाँ झूलती
अमृत वर्षा करनेवाले
मधुर मेरे शब्द
लाली का रूप लेकर
लबोंको सजाते है
बदलाव क्रांतिवाला
मेरा पोशाक
तन पर चढ़ते ही
अपना रंग जमाता है
हाँ मै वही
दिव्य नारी का रूप हूँ
जिसे समझने को
हर कोई बेताब है
कोई इतना आमिर कहाँ
मेरे शृंगार को समझ ले
कोई इतना दिव्य कहाँ
मेरे गुणों को परख ले
ना ये बाज़ार के
चौराहे पर बिकते है
ना ये साधारण
नज़रिए से दिखते है
अनन्य दृष्टी से
अंकुरित साहित्य है
समझ के परे
अंजन अपेक्षित है

- रानमोती / Ranmoti

मेरे सपने

आस के आरजू पर बुने हुए फूल
बहते हुए झरने की धाराएं कुल
रेशमी खुशियों के दामन वो गुल
इन्द्रधनु के सप्तरंग कहलाते
मेरे सपने

मधुर संगीत की तरह राहत भर जाते
निराशा के गुब्बारे तोड़ हवासे लहराते
नई उमंग नई शुरवात अंकित कर जाते
मै जहाँ भी रहूँ उस जहाँ ले जाते
मेरे सपने

कुसुम की सुगंध से नित्य महकते
नन्हे पाँव जमीं पर ऐसे थिरकते
कहानी को अंजाम तक ले जाते
पल में भंग कर रंग जमाते
मेरे सपने

मंजिल तक पहुँचाती सिढीयोंसे खरे
इच्छापूर्ति की अनुभूति से परे
राजमहलों की कहानी से घिरे
बिन प्याले मदिरा की नशा चढ़ाते
मेरे सपने

ना स्वस्त ना परास्त है पुकार
ना स्वार्थ ना द्वेष है हितकार
ना आकार ना उकार है निराकार
ना अंत ना आरंभ हो अनंत साकार
मेरे सपने
- रानमोती / Ranmoti

Thursday, August 4, 2022

कल्प कल्प

तू कल्प कल्प स्थित संगम है
तेरे सिवा जीवन वर्जित है
तोड़ के बंधन आना यही है
तेरे नाम परे संसार नहीं है

बन के मूरत ऐसे सजू रे
पैरो में पायल ऐसे गुंजू रे
नैनों में काजल ऐसे मलू रे
याद में तेरी पल पल गिनू रे

दर्पण का ना काम हो कान्हा
आँखों में देखू रूप सुहाना
तुझ संग जीवन मैंने माना
पधारों अब वक्त ना बिगोना

तू कल्प कल्प स्थित संगम है
तेरे सिवा जीवन वर्जित है

- रानमोती / Ranmoti

Sunday, July 31, 2022

अंबर का तारा

अंबर का तारा
अँधेरे के द्वार खड़ा 
अँधेरे ने पूछा 
क्योँ मेरे ही पीछे पड़ा
मेरा जीवन जैसे 
काली रात का घड़ा
सुनकर मासूम तारा
मन ही मन मुस्कुरा पड़ा 
जवाब में उसने 
अपना खाता खोला 
प्रकृति के खेल में 
बना मैं चमकीला 
नहीं काम का मेरे 
सूर्य का उजियाला 
अँधेरा ही बना देता मुझे
जहाँ में सबसे निराला
जिसकी आँखों ने देखा 
खेल तेरा अँधियारा 
वही देख पाता है 
यह अंबर का तारा 

- रानमोती / Ranmoti

Saturday, July 30, 2022

मनमौजी


मनमौजी चाहता है कुछ खोजा जाये
चाँद के उस पार जमीं के गर्भतक
परंपरा को तोड़कर नए रहस्य जोड़कर
कबीर के दोहो में सिद्धार्थ के मार्गपर
मीरा की सरगम में मोहन को सोचा जाये
मनमौजी चाहता है कुछ खोजा जाये

समंदर की लहरें चाहती है कुछ कहना
पेड़ों पत्थरों को कुछ अपना है जताना
लहरों की प्रलेखपर उनकी जुबाँ लिखी जाये
वसुधा की क़ोख छोड़ समंदर में घोला जाये
मनमौजी चाहता है कुछ खोजा जाये

आशा निराशा मान अपमान गठरी में बांधकर
कुछ नासमझी सी मंजिलों को लाँधकर
सीमाओं को असीमित रूप से स्वीकारकर
अघटित को यथार्थ का मौका दिया जाये
मनमौजी चाहता है कुछ खोजा जाये

जीवन नया है हम भी नये हो
ज्ञान का विनिमय गुरु शिष्य से परे हो
रहस्यों का छलावा बस पारदर्शी हो जाये
जीवन को जीने का नया मौका दिया जाये
मनमौजी चाहता है कुछ खोजा जाये

- रानमोती / Ranmoti

Thursday, July 28, 2022

अपरिहार्य

नित्य, नैमित्य, निष्काम संचित
रूपों में विभाजित हूँ मै कर्म
प्रारब्ध में अवतरित होकर
अंततः संस्थापित हूँ मै कर्म

मर्त्य की पराकाष्ठा उद्यम कर
नतीजतन निष्कर्ष हूँ मै कर्म
अभ्युदय: निःश्रेय प्राप्ति का
स्वयंरचित योग हूँ मै कर्म

भुत भविष्य वर्तमान का
सृजन मिलाप हूँ मै कर्म
गीता से सयंभु प्रकट
समूचा तात्पर्य हूँ मै कर्म

धर्म से भी बड़ा ईश्वरीय
अपरिहार्य पथ हूँ मै कर्म
सुख दुःख प्राप्ति का संयोग
मनुष्य को अपरिहार्य हूँ मै कर्म
- रानमोती / Ranmoti


Monday, July 25, 2022

अनुपम

तू हाथ उठा दे अनुपम
वनराज के भाती
नजर भिडादे अनुपम
वनराज के भाती
अगर हो
अहन पर आघात
खड्ग उठाके
तू कर प्रहार
तू हाथ उठा दे अनुपम
वनराज के भाती

तेरे वित्त की ना हो चोरी
कल की भोर भी हो तेरी
अवनि जित ना ले बैरी
यज्ञांगी मोहित और सुनहरी
उससे पहले
तू हाथ उठा दे अनुपम
वनराज के भाती

भवसागर विजय लिखित
मस्तिष्क दिव्य तेरा
घन से घना
कष्ट में उजियारा
विजयपथ की
एकमात्र अभिलाषा
ना कल हो
दिवाकर की निराशा
उससे पहले
तू हाथ उठा दे अनुपम
वनराज के भाती
नजर भिडादे अनुपम
वनराज के भाती

- रानमोती / Ranmoti




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- रानमोती / Ranmoti

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