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Monday, July 25, 2022

अनुपम

तू हाथ उठा दे अनुपम
वनराज के भाती
नजर भिडादे अनुपम
वनराज के भाती
अगर हो
अहन पर आघात
खड्ग उठाके
तू कर प्रहार
तू हाथ उठा दे अनुपम
वनराज के भाती

तेरे वित्त की ना हो चोरी
कल की भोर भी हो तेरी
अवनि जित ना ले बैरी
यज्ञांगी मोहित और सुनहरी
उससे पहले
तू हाथ उठा दे अनुपम
वनराज के भाती

भवसागर विजय लिखित
मस्तिष्क दिव्य तेरा
घन से घना
कष्ट में उजियारा
विजयपथ की
एकमात्र अभिलाषा
ना कल हो
दिवाकर की निराशा
उससे पहले
तू हाथ उठा दे अनुपम
वनराज के भाती
नजर भिडादे अनुपम
वनराज के भाती

- रानमोती / Ranmoti




Saturday, July 23, 2022

बुद्धि को ग्रहण या आच्छादन


हिंदी भाषा में ग्रहण शब्द का अर्थ होता है धारण करना, स्वीकार करना या फिर किसी चीज को खा जाना। अगर यह अर्थ सही है, तो सूर्य ग्रहण या चंद्र ग्रहण का मतलब सूर्य या चंद्र को खा जाना या धारण करना इस तरह निकाला जा सकता है। सदियों पहले जब मनुष्य को सूर्य और चंद्र ग्रहण के वैज्ञानिक कारन पता नहीं थे, तबतक यह कहना ठीक था की सूर्य या चंद्र को सृष्टि की कोई और चीज निगल लेती है फिर खा जाती है। लेकिन अब जब इंसान को वैज्ञानिक सफलताओ के चलते, यह पूरी तरह पता है की सूर्य और चंद्र ग्रहण एक प्राकृतिक घटना है, और यह घटना पृथ्वी और चंद्र के एक दूसरे के बिच में आ जाने से उत्पन्न होती है। संक्षिप्त में हम इसे आच्छादन कह सकते है। ग्रहण शब्द का यहाँ पर कोई भी अर्थ या मतलब न होकर आच्छादन यह अर्थपूर्ण शब्द कहा जा सकता है।

पुराने कालखंड के अनुसार ग्रहण यह शब्द कुछ बनावटी कहानियों के चलते 'नकारात्मकता' से उभरा हुआ प्रतीत होता है । लेकिन वास्तविकता में ग्रहण यह शब्द एक स्वीकृति दर्शाकर 'सकारात्मकता' प्रस्तुत करता है। हम आज भी बोलते समय किसी नकारात्मक चीज को दर्शाने के लिए 'ग्रहण लग गया' इस उपमा का इस्तेमाल कर लेते है। जबकि इसका सही अर्थ या मतलब 'किसीको स्वीकृति लगना' होता है। इसी भाषा या उपमा को समझकर बोले तो हम यह कह सकते है की मनुष्य की 'बुद्धि को ग्रहण' लग गया, की वे आजतक बिना मतलब ग्रहण शब्द का इस्तेमाल किये जा रहा है। मेरी समझ से कहूँ तो 'मनुष्य बुद्धिपर आच्छादन है' जैसे की 'चंद्र आच्छादन', 'सूर्य आच्छादन' होते है।

- रानमोती / Ranmoti

लापता

तू समन्दरसा खिलखिलाता है 
फिर भी अनदेखा सा कही 
मै तुझमे समाई हूँ पूरी 
तू लापता है मुझमें कही 

- रानमोती / Ranmoti

Friday, July 22, 2022

हे मातृभूमि

सागर से मोती चुन के लाएँगे
हे मातृभूमि
हम फिर से तुम्हें सजाएँगे

आए आँधी फ़िकर कहाँ है
आए तूफ़ान फ़िकर कहाँ है
तेरे प्यार में जीते जो यहाँ है
सैलाब से भी लड़के आएँगे
हे मातृभूमि
हम फिर से तुम्हें सजाएँगे

फ़क़ीर होने की पर्वा नही है
मरमिटने की पर्वा नही है
तेरे नाम के नारे लगाते जो यहाँ है
देशभक्ति से अमिर हो जाएँगे
हे मातृभूमि
हम फिर से तुम्हें सजाएँगे

नंदनवन हो तेरी ज़मीन
सारे जहाँ को हो तुझपे यक़ीन
तेरे मिट्टी से तिलक लगाता जो यहाँ है
उस तिलक की कसम सबको जगाएँगे
हे मातृभूमि
हम फिर से तुम्हें सजाएँगे

सुंदर तेरी मूरत सजे
तू नई नवेली दुल्हन लगे
तेरे आँचल से बंधे जो यहाँ है
मिलके विश्व मे तिरंगा लहराएँगे
हे मातृभूमि
हम फिर से तुम्हें सजाएँगे
सागर से मोती चुन के लाएँगे
- रानमोती / Ranmoti

Wednesday, July 20, 2022

भेस


शायरी और गझल के भेस में हम आते नही
जहा सब पाए जाते है वहा हम होते नही
- रानमोती / Ranmoti

रंगीनियत


मेरे चेहरे की रंगीनियत से पूछो 
जिक्र से तेरे रंगीन हो जाती है 
वजह बस तेरे साथ होने की है 
वो और भी बेहतरीन हो जाती है
- रानमोती / Ranmoti

Tuesday, July 19, 2022

बेहोशी

कोण है जो तुझे इतना चढ़ा रहा है
चढ़ना ही है तो खुदके दम पर चढ़ 
किसी और के आवाजों की बेहोशी 
तुझपर ज्यादा देर तक नहीं रहेगी
- रानमोती / Ranmoti

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- रानमोती / Ranmoti

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