अस्थिर मन हो गया स्थिर
भीतर पाया खुद ही स्वरुप
क्या पूरा क्या बचा आधा
कुछ ना मिला खुद से ज्यादा
पवित्र निर्मल शितल छाया
कुछ और शेष ना पाया
कणखर भी फूल बने
जब वो तुझे अपने लगे
बनकर तू मन का सारथी
आचरण में फूलों की सादगी
पूजा मै वक्त क्यों करू जाया
जब तू ही पूजनीय भाया
कठोर तप बन गया साधा
हाथ लगा जब सच का प्यादा
- रानमोती / Ranmoti