- रानमोती / Ranmoti
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Monday, April 7, 2025
Saturday, July 13, 2024
ईश्वर का संवाद, क्यों हम दुखी हैं |
एक दिन एक इंसान अकेले बैठकर रो रहा था। और ईश्वर को कोस रहा था।
उसने कहा, प्रभू मेरे पास बंगला, गाडी, बीबी बच्चे, दोस्त, रिश्तेदार,नौकर चाकर सब है। फिर भी मै दुखी हूँ। ऐसा क्या कारण है, जो मुझे सबकुछ होते हुए भी दुखी रखता हैं। उसकी बाते सुनकर, ईश्वर मन ही मन मुस्कुराये और उन्होंने ठान लिया की आज इसे ज्ञान का अमृत पिला ही देता हूँ।
और तभी इंन्सान ने कहा, प्रभु क्या आप मुझपर प्रसन्न हुए हो, जो मुस्कुरा रहे हो। तो प्रभु ने कहाँ प्रसन्नता ही मेरा स्वभाव है। और रही बात तुम्हारे दुःख की, तो उसका कारण भी आज मै तुम्हे बता देता हूँ। .
तुम्हारे दुःख का कारण है तुम्हारी समझ और उसमे पनपी तुम्हारी ना समझ वाली जिद्द है।
मनुष्य ने कहा प्रभू, विस्तार से कहिये। तब उसपर ईश्वर कहते है, मनुष्य को समझ और
ज्ञान न होने के कारण ओ उसी चीजो की जिद्द करता है, जिसकी उसको कोई समझ नही होती और
वो अपने जीद के कारण उसी चीज को पा लेता है। पर संभाल नही पाता ।
तुम्हे माली बनना नही आता, और बगीचे मांग लेते हो।
घर बसाना नही आता, और शहर माँग लेते हो।
प्रेम करना नहीं आता, और आत्मा माँग लेते हो।
राजा बनना नहीं आता, और सेवक माँग लेते हो।
रिश्ता बनाना नही आता, और रिश्तेदार माँग लेते हो।
दोस्ताना समझ नहीं आता, और दोस्त मांग लेते हो।
परवरीश करनी नही आती, और बच्चे माँग लेते हो।
किसीका दुःख समझ नहीं पाते, और सुख माँग लेते हो।
नारायण बन नहीं पाते, और धनलक्ष्मी माँग लेते हो।
जीवन के अर्थ से अंजान हो तुम, और एक नया जीवन माँग लेते हो।
राम के दुःख से भी लोगो को लगाव था, और रावण की सोने की लंका से घृणा।
तुम ऊपर से कितना भी जिद्दी बनकर चीजे बटोरते रहो, पर तुम्हारे अंदर जो बैठा है, उसे
तलाश राम की। इसीलिए तुम दुखी हो। मैं उन लोगो को भी वो सब दे देता हु, जो उसे संभाल नही पाते। उनकी जीद की वजह से वो मुझसे वो सब पा तो लेते है, लेकिन प् कर भी संभल नहीं पाते।
मै भी ईश्वर हूँ, ऐसे लोगो को मै ये सारी चीजे दे देता हू। और वो सब मुर्ख, इन्ही में उलझकर कर,
दुखी होते है। पर जो असली चीज है, जो जीवन का सच्चा अमृत है, वो मै उनके लिये रखता हूँ,
जो सारी चीजो के काबील हो कर भी, उन्ही चीजों को ऊपर उठाते है, जो कर्म मैंने उन्हे सोपें
है और वो अपने उसी कर्मो से अमरता पा लेते है। वो खुद एक नया जीवन बन जाते है।
#Ranmoti
Tuesday, March 28, 2023
ईश्वर
ईश्वर, आप हमेशा पहेली बनकर रहे हमारे बिच,
ताकि हमारे जीवन की उत्सुकता बरक़रार रहे
आप हमारे पास हवा बनकर लहराए हरपल,
ताकि हमारी नसों नसों में जीवन का राग भर सके
हम सोये तो आप ह्रदय की धड़कन बन जागे भीतर,
ताकि सुबह की पहली किरण हमें एहसास दे पाए
आप खुदको भुला देते हो हमारे जहन से,
ताकि हम मशगूल रहे जीवन की रंगीन यादों में
आपने अनंत उपकारों का हमपर लगा दिया घेरा,
और कभी कहा भी नहीं की नाम लो मेरा
आप हर वो रास्ता बनाने में व्यस्त रहते हो हरदम ,
जिसकी भी हमें तहे दिलसे से तलाश हो
हे प्रभु समंदर के बीचोबीच खड़ा जीवन है,
जहा से कोई किनारा दिखना असंभव है
हमें तो यह भी पता नहीं की हम जिस महासागर में है,
उसकी कोई सिमा या फिर कोई किनारा भी है
हमने इस विशाल जलाशय का तट सोचा नहीं,
पर कोई नौका सवार है जो रास्ता दिखा रहा है
उसने कहा यहाँ किनारे एक दो या तीन नहीं अनंत है,
तुम तैरते रहो किनारा खुदबखुद मिल ही जायेगा
हमें पता है शायद हम उस तक कभी पोहच ही न पाए,
पर उसकी आस से किसी एक दिशा में तैरना होगा
क्या पता ईश्वर मेहरबान हो और किनारा दिख जाये,
और समंदर का पानी पीछे हटकर किनारा समीप आ जाये
ताकि हमारे जीवन की उत्सुकता बरक़रार रहे
आप हमारे पास हवा बनकर लहराए हरपल,
ताकि हमारी नसों नसों में जीवन का राग भर सके
हम सोये तो आप ह्रदय की धड़कन बन जागे भीतर,
ताकि सुबह की पहली किरण हमें एहसास दे पाए
आप खुदको भुला देते हो हमारे जहन से,
ताकि हम मशगूल रहे जीवन की रंगीन यादों में
आपने अनंत उपकारों का हमपर लगा दिया घेरा,
और कभी कहा भी नहीं की नाम लो मेरा
आप हर वो रास्ता बनाने में व्यस्त रहते हो हरदम ,
जिसकी भी हमें तहे दिलसे से तलाश हो
हे प्रभु समंदर के बीचोबीच खड़ा जीवन है,
जहा से कोई किनारा दिखना असंभव है
हमें तो यह भी पता नहीं की हम जिस महासागर में है,
उसकी कोई सिमा या फिर कोई किनारा भी है
हमने इस विशाल जलाशय का तट सोचा नहीं,
पर कोई नौका सवार है जो रास्ता दिखा रहा है
उसने कहा यहाँ किनारे एक दो या तीन नहीं अनंत है,
तुम तैरते रहो किनारा खुदबखुद मिल ही जायेगा
हमें पता है शायद हम उस तक कभी पोहच ही न पाए,
पर उसकी आस से किसी एक दिशा में तैरना होगा
क्या पता ईश्वर मेहरबान हो और किनारा दिख जाये,
और समंदर का पानी पीछे हटकर किनारा समीप आ जाये
Thursday, January 5, 2023
नसीब

नसीब नसीब इतना विलाप क्यों
मांगनेवाला देनेवाले के खिलाप क्यों
जब तू निराशा से झुक जाता है
जहन में तेरे क्यों नसीब आता है
लिखनेवाले ने लिख दिया तुझे पीड़ा क्यों
हर हार और रोने का कारन नसीब क्यों
अभी लड़ना तुझमें बाकी है
इसीलिए तेरी मांगे उसने रोकी है
सोच में न पड़ चल निरंतर
धरती और आसमा का है अंतर
तू कलाकार के भाती अभिनय कर
भयभीत ना हो देनेवाला बैठा है ऊपर
नसीब नसीब इतना विलाप क्यों
मांगनेवाला देनेवाले के खिलाप क्यों
- रानमोती / Ranmoti
मांगनेवाला देनेवाले के खिलाप क्यों
जब तू निराशा से झुक जाता है
जहन में तेरे क्यों नसीब आता है
लिखनेवाले ने लिख दिया तुझे पीड़ा क्यों
हर हार और रोने का कारन नसीब क्यों
अभी लड़ना तुझमें बाकी है
इसीलिए तेरी मांगे उसने रोकी है
सोच में न पड़ चल निरंतर
धरती और आसमा का है अंतर
तू कलाकार के भाती अभिनय कर
भयभीत ना हो देनेवाला बैठा है ऊपर
नसीब नसीब इतना विलाप क्यों
मांगनेवाला देनेवाले के खिलाप क्यों
- रानमोती / Ranmoti
Wednesday, December 28, 2022
हे नदी माँ
नदी के अनोखे रूप देखकर
पूंछा मैंने कुछ इस कदर
हे नदी माँ
तुम इतनी निराली क्यों हो
जब खूब वर्षा होती है
सैलाब बन डराती हो
अकाल जब पड़ता है
बून्द बून्द को तरसाती हो
नदी बोली
मै कहाँ कुछ करती हूँ
दोनों भी प्रकृति के वरदान है
मै तो बस कर्त्तव्य निभाती हूँ
मेरा अस्तित्व नियति का खेल है
मै खुद से ना बढ़ा सकती हूँ
ना कभी घटा सकती हूँ
सब अपने आप होता है
मै बस एक आकार हूँ
हे नदी माँ
समुद्र से छोटी होकर भी
समुद्र को जल से भरती हो
बदले में कुछ कभी
लेती भी नहीं हो
जवाब दो माँ
बड़ी तुम या सागर
नदी बोली
सागर को मेरा देना
दिख जाता है
सबको विलीन करना
उसका छुप जाता है
सागर का तो गुप्तदान है
किसी एक को नहीं
सबको समाना नेक काम है
खुद किसी में घुलना
हर किसी को संभव है
सबको विलीन कर
खुद वैसे ही रहना अद्भुद है
सागर तो मेरा उद्देश्य है
राह में मिले उनको बाँटना
छोटासा मिला दायित्व है
हे नदी माँ
मै समझ गई इस बात को
आपके इस कर्तव्य को
निरंतर निभा रहे दायित्व को
आखिर होना कही विलीन है
दायित्व निभाना अनिवार्य है
- रानमोती / Ranmoti
बेवजह
कभी कभी ज्यादा ज्ञान
डर पैदा करता है
अज्ञानी का ज्ञान ही उसे
निडर दिखलाता है
शोर में हर कोई
चीखता चिल्लाता है
ख़ामोशी में चुप्पी साध
विनम्र दिखलाता है
वजह ढूंढ़कर कई
निर्णय जन्म लेते है
बेवजह तो हम यूँही
खुदको भूल जाते है
बेवजह मन में अगर
कोई विचार पनपता है
तो उसे घटने की संभावना
शत प्रतिशत होती है
कुछ पाने के लिए
सोच तो तभी पाएंगे
जब करने के लिए
कटिबद्ध हो जायेंगे
हमें ज्यादा की
जरुरत तो नहीं
पर जरूरतों से मुँह
फेरना भी नहीं
जिंदगी के अंत तक
कुछ ना कुछ अच्छा हो हमसे
जब हिसाब करने बैठे
बेवजह ना लगे जीवन खुदसे
Monday, December 26, 2022
त्रिलोक सुंदरी
त्रिलोक सुंदरी
मन मोहन पे हारी
जिद पे अड़ी
आई मिलन की घडी
लेके श्याम सी हँसी
ओठों पे रुख्मिणी
तू सज धज के चली
द्वारका आँगन की गली
भाव विभोर
ह्रदय व्याकुल तेरा
बसता संसार
तेरे श्याम में सारा
खनकार सुन पायल की
कान्हा आये प्रेमरथ लेकर
क्या खोया क्या पाया
तूने कुछ न जाना
एक ही लक्ष
कृष्ण अपना माना
लेके श्याम की हँसी
ओठों पे रुख्मिणी
तू सज धज के चली
द्वारका आँगन की गली
मोहन के संग
तू ऐसे चली
जैसे सरिता
सागर से मिली
सूरज की रौशनी
सफर तय कर
धरती को छूने चली
त्रिलोक सुंदरी
मन मोहन पे हारी
जिद पे अड़ी
आई मिलन की घडी
- रानमोती / Ranmoti
Sunday, December 4, 2022
कुपोषित आँखों से
कुपोषित आँखों से
जग देखने चला मै
कमजोर पैरों से
रेंगने चला मै
दबे कंधो से
लड़ने चला मै
भीगी आँखों से
रोने चला मै
भूख के दर्द से
बोलने चला मै
खाली थाली से
खाने चला मै
फैले हाँथो से
क्या मांगू मै
गिरने के डर से
कैसे उठु मै
सब गिर जाएगा
सँभालने से पहले
हौंसला टूट जायेगा
बढ़ने से पहले
चमकते तारो से
अक्सर शिकायत है
जो मेरी किस्मत से
मुझे चिढ़ाते है
भूख का काजल
झलकता आँखों में
सदियों की भूख
संचित मेरे हृदय में
कैसे लगेगी नज़र
माँ तेरे बछड़े को
जिंदगी खपा जिसपर
खुद तैयार हँसने को
कुपोषित आँखों से
जग देखने चला मै
कमजोर पैरों से
रेंगने चला मै
- रानमोती / Ranmoti
Friday, November 11, 2022
द्विप अंडमान
स्थलखंड का एक अंग
जल से घिरा चारो छोर
अलग-थलग मातृभूमि से
सागर में नर्तक मोर
शांति सुकून से संपन्न
क्रान्तिशूरों से भूमि पावन
गहरे वनों की गुफावों में
प्रकृती की आस राहों में
पेड, पौधे, पशु, पक्षी
आद्य सुंदरी कला नक्षी
जरावा, ओंगेस संग नेग्रि
नीलम तट और आग्नेयगिरि
गहरे पुष्प फल श्रीफल
प्रकृति की गोद निर्मल
सुंदरता की श्रेष्ठ पहल
अंडमान द्वीप एक चहल
जल से घिरा चारो छोर
अलग-थलग मातृभूमि से
सागर में नर्तक मोर
शांति सुकून से संपन्न
क्रान्तिशूरों से भूमि पावन
गहरे वनों की गुफावों में
प्रकृती की आस राहों में
पेड, पौधे, पशु, पक्षी
आद्य सुंदरी कला नक्षी
जरावा, ओंगेस संग नेग्रि
नीलम तट और आग्नेयगिरि
गहरे पुष्प फल श्रीफल
प्रकृति की गोद निर्मल
सुंदरता की श्रेष्ठ पहल
अंडमान द्वीप एक चहल
साक्षात्कार

पुराने नये साहित्य के कर्कट में खोजकर
सत्य से लथपथ मोतियों को चुनकर
नये साहित्य का प्रणयन कर
नई पिढी को नए मार्ग प्रदान कर
जो अनुभवो का साक्षात्कार हुआँ
उन्हींको साथ लेकर बढ़ना है
साक्षात्कार के विपरीत चलने से
कलियुग की अनुभुती निश्चित है
समय पुराना या नया नही होगा
सत्य पुराना या नया नहीं होगा
विद्युत का विपरीत प्रवाह होगा
बस गौर से परखना होगा
जीना जिवन है अगर पुरा जिया जाये
मृत्यू आनंद है अगर जीना छोड़ा जाये
मूढ़ ही है ज्ञानी जो आत्मघात कर लेता है
श्रेष्ठ है जड़ जो यन्तणा सह जी जाता है
- रानमोती / Ranmoti
जीवन संगिनी

रचके तुलसी चरणों में तेरे
हो गई पावन मै तो सांवरे
सुगंध ऐसा चढ़ा सांवरे को
जग भूल गया मनमोहन
मै ना राधा दिवानी
मै ना मीरा दिवानी
मै तू हूँ रुख्मिणी
तेरी जीवन संगिनी
तुलसी से तेरा संजोग दिन का
मीरा तो स्वर है अकेले मन का
प्रीत में राधा जैसे बजती पायल
सोच के मन मेरा होवे घायल
मै ना राधा दिवानी
मै ना मीरा दिवानी
मै तू हूँ रुख्मिणी
तेरी जीवन संगिनी
राधा तो तेरी बतिया कान्हा
मीरा भये पानी से नैना
सुख में राधा दुःख में राधा
मोहन जो धन तेरा अब हो रहा मेरा
मै ना राधा दिवानी
मै ना मीरा दिवानी
मै तू हूँ रुख्मिणी
तेरी जीवन संगिनी
- रानमोती / Ranmoti
कारीगिरी

तुम बस अपनी कारीगिरी पर ध्यान लगाना
तुम्हे अपना हुनर है आजमाना
भूल जाना दिन है या रात
डूब जाना अपने लक्ष के साथ
शिल्प कौशल की कला
हाथों में लेकर तू निकला
करुणा के साथ उतर जाना
नई धरोहर का परचम लहराना
हे कारागीर
तुम बस अपनी कारीगिरी पर ध्यान लगाना
तुम्हे अपना हुनर है आजमाना
प्रेम इतना भरना
की पत्थर भी जीवित हो उठे
खाकर तेरे अनगिनत घाव
सदा तुझ संग रहे डटे
अपनी चेतना को बनाकर हथियार
तू शिल्प पे उतार दे अनेक भाव
वो पत्थर सुन्दर मूरत बनकर जब सजे
रंगो से भरना उनमे प्राण
समर्पण तेरा इतना हो
उस मूरत में भी तेरी सूरत हो
तेरे हाथो के रक्त की एक एक बून्द
विभिन्न रंगो में समावेशित हो
रंग ऐसा चढ़ जाये उसपर
हर तरफ बस तेरी ही पुकार हो
हे कारागीर,
तेरी कारीगिरी अमर हो ऐसा जोर लगाना
तुम बस अपनी कारीगिरी पर ध्यान लगाना
तुम्हे अपना हुनर है आजमाना
मधुर वचना
करुणा से भरके खिले
दो कमल नयन
प्रेम की नदियों से छलके
दो मधुर वचन
वो कमल नयना
वो मधुर वचना
तू सुख का कारन
हर कष्ट निवारण
चंदा की रोशनी
है तेरी परछाइयाँ
गुलाबोंसी रंगीन
लाबों की पंखुड़ियाँ
वो कमल नयना
वो मधुर वचना
तू सुख का कारन
हर कष्ट निवारण
दुःख की झीलों में
खिलता चला
हाथो की रेखावों में
तारो सा सजता चला
अहोभाग्य का तू शिखर प्रभु
मैं नमन तेरे चरणों में देखु
वो कमल नयना
वो मधुर वचना
तू सुख का कारन
हर कष्ट निवारण
- रानमोती / Ranmoti
Thursday, September 1, 2022
शिउली
मानों मै शिउली का
रम्य प्रसन्न तटस्थ तरु
रचनाये मेरी उसके पुष्प
सुगंधित प्रभात करे शुरू
वो खिलकर मुझसे
लुढ़कते है जमींपर
सुन्दर मधुर सुरभि
महकाते है सृष्टिपर
कोई समेट हाथो में
सौरभ से भर जाता
तो कोई कुचल पैरोंतले
अनभिज्ञ अग्र निकल जाता
रचनाये फूल है मेरी
कभी ना करती भेद
हर किसी को महकाती
जैसे जीवन में वेद
उठाने वाले कुचलने वाले
दोनों को एहसास दिलाती
उनकी रास्तों में सजकर
मोतियों भाँति उन्हें सजती
सीधी साधी हलकी फुलकी
शिउली बन हुनर आजमाती
हंसती मुस्कुराती रचनाये मेरी
किसी-न-किसी मन को भाती
- रानमोती / Ranmoti
Wednesday, August 31, 2022
आँगन
सज़ा दूँ मै तेरा आँगन कितना
धरती का आसमाँ से नाता जितना
फ़ुल खिलेंगे शनैः-शनैः बातें करेंगे
रंग फ़िज़ावो में उमदा मौज भरेंगे
तोता भी आयेगा कोयल भी गायेगी
चिड़ियों की मधुर पाठशाला भी होगी
पंछियों की अपनी ही दुनिया सजेगी
छोटे छोटे गमलों से उनकी प्यास बुझेगी
रंगबिरंगी पोशाखो में तितलियाँ आयेंगी
जीवन गीत रंगो का पंक्तियाँ सुनायेंगी
अष्ट दिशाओं में सुनहरी धूप परछाईं होगी
विभिन्न फल और पुष्पों की नुमाइश होगी
तिनका तिनका जिंदगी बढ़ती जाएगी
पैरो तले शान से खुशियाँ मंडराएगी
सज़ा दूँ मै तेरा आँगन कितना
धरती का आसमाँ से नाता जितना
- रानमोती / Ranmoti
Monday, August 29, 2022
तरह
दिन बरसते बारिशों की तरह
एक तरंग ख़ुशबू फूलों की तरह
धूप छाँव लहराती परदों की तरह
प्रकाश से सजी धरती नदियों की तरह
चेतना सरसराये पत्तों की तरह
मन महकाये ऋतुओं की तरह
चेहरा खिलखिलाये चाँद की तरह
जीवन झिलमिलाये सूरज की तरह
साल निकलते लमहों की तरह
याद रह जाये कहानी की तरह
पहल करायें नई साँसों की तरह
जीना सिखलाये अजनबी की तरह
दिन बरसते बारिशों की तरह
एक तरंग ख़ुशबू फूलों की तरह
धूप छाँव लहराती परदों की तरह
प्रकाश से सजी धरती नदियों की तरह
चेतना सरसराये पत्तों की तरह
मन महकाये ऋतुओं की तरह
चेहरा खिलखिलाये चाँद की तरह
जीवन झिलमिलाये सूरज की तरह
साल निकलते लमहों की तरह
याद रह जाये कहानी की तरह
पहल करायें नई साँसों की तरह
जीना सिखलाये अजनबी की तरह
दिन बरसते बारिशों की तरह
- रानमोती / Ranmoti
Saturday, August 27, 2022
विज्ञान के गुरुवर्य
हे विज्ञान के गुरुवर्य
तू आग के पंख लगाकर
विज्ञान का सेहरा सजाकर
उड़ गया जिस मंज़िल तक
उस मंजिल तक हमें भी पहुंचा दे
हे विज्ञान के गुरुवर्य
हमें भी कलाम बना दे
हे विज्ञान के गुरुवर्य
जो रहे तुम्हारे अधूरे ख़्वाब
पूरा करेंगे उन्हें सब नन्हे नवाब
तू बस उनका पता बताकर
इस जंगल में आग लगा दे
हे विज्ञान के गुरुवर्य
हमें भी रमन बना दे
हे विज्ञान के गुरुवर्य
ये देश बने आविष्कारों की भूमि
हर देशवासी रहेगा तुम्हारा ऋणी
उन आविष्कारों की भनक लगाकर
तू बस सोच की तिल्ली जला दे
हे विज्ञान के गुरुवर्य
हमें भी सत्येन्द्र बना दे
हे विज्ञान के गुरुवर्य
देना हमें उन रास्तों का नक्शा
जिनकी बदौलत हो देश की रक्षा
भारत की आँखों में उम्मीद जगाकर
तू हर खोजी को आशीष दिला दे
हे विज्ञान के गुरुवर्य
हमें भी भाभा बना दे
- रानमोती / Ranmoti
Friday, August 19, 2022
विरचित विजय
एक कालखंड महान षड़यंत्र
सेनापति कैसे बना राजन्य
इतिहास में लिखित कानमंत्र
विरचित विजय ना कुछ अन्य
ढाई सौ सालो का राज्य
एक सच्चे राज्य का नाज
प्रफुल्लित थे राजाधिराज
सोचा राज्य को देंगे शाबाशी
बाँटी जाये प्रजा में ख़ुशी
साथ ही हो विरो का सन्मान
सेनापति को भी मिले मान
मगर,
मौका फिरस्त था सेनापति
मन में कपट ज्वाला भाती
सोचा राजा को है मुझ पे नाज
क्यों ना छीन लू मै सरताज
शुरू की अपनी चतुराई
हर फितूर को दी लुगाई
एक साथ सब गद्दार जमाये
राजवंश ने सालो में गवाए
धोका तो खून में था
सेनापति का वंश ही फितूर था
फिर,
वह उत्सव की घडी आई
राज्य में हरतरफ थी रोशनाई
राजाने दी प्रजा को बधाई
हर वीर को मिली अपनी शाई
सेनापति का मन बेचैन था
ग़द्दारों में वह अव्वल था
भरे उत्सव में उसने ठानी
होगा राजा आनंद में धनि
तब लिखूंगा मै अपनी कहानी
राज्य में छाएगी अनहोनी
सेनापति,
मन में ले कपट ऐसा झपटा
विष का नाग जैसे लिपटा
भरी सभा को उसने बाँटा
मन में बोया युद्ध का काटा
सभा को झूटी कहानी बताकर
अघटित को घटित समझाकर
अपने साथियों से मिलकर
झूठे दुश्मनो की कहानी रचकर
चतुराई से की अपनी मनमानी
राजासे करवादी एक नादानी
राजा युद्ध को तैयार न था
उसको थोड़ा अंदेशा था
यह कोई सोची समझी चाल है
अपनाही पहना गद्दारी की खाल है
लेकिन,
अब ना कोई रास्ता था
प्रजा की सुरक्षा का वास्ता था
विवश होकर सेना को
दिया युद्ध का आदेश
प्राणो से प्रिय थी राजा को
अपनी प्रजा और स्वदेश
सेनापति मन ही मन ललचाया
अपनी साजिश का अंत युद्धमे पाया
उत्सव की सभा बनी युद्ध की ललकार
सेनापति ने बुलंद की अपनी तलवार
पर नाम उसपर दुश्मन का ना था
राजा का अंत बस जहन में था
अंतत:
अनचाहे युद्ध का आगाज हुआ
राजा संग सेना का तिलक हुआ
निकल पड़े मैदान में
झूठे दुश्मनों की खोज में
फसते गए शिकारी के जाल में
पड गई अमावस्या की काली छाया
असत्य ने डाली अपनी काया
आगे मनघडन दुश्मन था
साथ फितूर सेनापति का राज था
दुश्मनों का वार सहने से पहले
युद्ध का आगाज होने से पहले
गिधड बैठा आँख लगाकर
सही समय पर तीर चढ़ाकर
कर दिया अपनेही राजा पे वार
सेनापति था वह फितूर गद्दार
अपनेही राजा के पीठ में खंजीर चलाया
युद्ध में मारा गया प्रजा को जताया
स्वयम को सम्राट घोषित किया
अब वही मालिक सबको समझाया
राजवंश का पूर्ण नाश हो
बस उसकी ही जयजयकार हो
इसकदर सबको धमकाया
एक अकेलाही नायक भाया
पश्चात्
वीरता की झूठी गाथा लिखकर
मनघडन साहित्य से बहुश्रुत होकर
प्रजा में जबरन नायक कहलाया
इतिहास के पन्नोंपर वो छाया
उसके राज्य में असत्य पनपता
हरतरफ गद्दरों का गुणगान होता
प्रजा समक्ष नितांत बलवान दिखाता
गद्दार सेनापति अब राजा कहलाता
आगे चलकर फितूर साहित्यकारोंने
उसे राज्य का भगवान बना दिया
इसी तरह विरचित विजय अजय हो गया
एक सच्चे राज्य का विध्वंस हो गया
- रानमोती / RANMOTI
एक दिन की समस्या

दूर दराज़ जंगल के पार
बस्ती थी मेरी और परिवार
सुन्दर नदी पेड़ों की मुस्कान
बाढ़ का साया हरसाल तूफान
एक टुटाफूटा घर मानो छाले पड़े
जीवन पनपता उसमे जैसे वृक्ष खड़े
हर दिन नया सवेरा जीने की आस थी
एक डरावने दिन और रात की बस बात थी
माँ की सांसो को हर पल हृदय नाप रहा था
नौ महीनो से सृष्टि की चाहत में तरस रहा था
शायद वह आखरी दिन था माँ की कोख में रहने का
उसकी भी चाह थी मै बाहर आऊँ आनंद लू जीवन का
माँ तड़प रही थी दर्द से मदद मांगती किसी मर्द से
शायद वह मेरा बाप था जो व्याकुल था मेरी उम्मीद से
उस टूटीफूटी झोपडी में बारिश गंगा रूप बरस रही थी
बाढ़ और तूफान से बस वही एक सबका सहारा थी
बड़ी कठनाई संग माँ की कोख छोड़ पैदा हुआ
पहिली बार किसी अनछुये स्पर्श का एहसास हुआ
आँखे खोलू की ना खोलू समझ में ना आया
दुनिया में दिन पहला था या आखरी जान ना पाया
एक माई आकर बोलने लगी यह बचेगा नहीं
यहाँ का माहौल इसे इसकदर जचेगा नहीं
चलो ले चलो इसे अस्पताल नदी पार कही
जहा मिले इसे सुविधा डाक्टर और इलाज सही
आँखे खोलने ही वाला था पर मै घबरा गया
सोचा खोल के भी क्या करू जब वक्त निकल गया
एक दिन की दुनिया की मोहब्बत में पड़ जाऊँगा
जो पाया नहीं देखा नहीं उसे भी पल में खो जाऊँगा
इस कश्मकश में जीवन की एक घड़ी बीत गई
चाह थी रोशनाई की अंधियारे संग मिटती गई
अचानक दो चार बस्तीवाले जमा होकर पास आये
एक झोली में डाल मुझे अपने साथ ले गये
शायद उन्हें नदी पार कर मुझे ले जाना था
बाढ़ तो मानो धरती पर निरंतर झरना था
लड़खड़ाते पाँव ले गये आखिर किनारे तक
दूसरी घड़ी भी बीत गई इंतजार में तब तक
मौत मंडराती रही जिंदगी घुटने टेक रही थी
आरोग्यसेवा ठप्प थी दरबदर सन्नाटे की गंध थी
सब छाती पिट हताश हो बस्ती को कोस रहे थे
कहानी ये उन सबकी हरसाल बस सोच रहे थे
आशा निराशा में बदल गई जब तीसरी घड़ी आई
हर किसी की उम्मीदों पर मातम की परछाई
ठण्ड से रोम रोम मेरा कांप सिकुड़ रहा था
भूख के मारे पेट ज्वाला बन तड़प रहा था
रोने का मन किया सोचा इन्हे बोल दूँ
अपनी मासूम सी भूख अब खोल दूँ
फिर मन ही मन मुस्कुराया और
खुदसे ही बोला सुन ज़रा रुक
एक दिन की तो समस्या है
बस एक दिन की समस्या
-रानमोती / RANMOTI
Monday, August 15, 2022
धरती
बिन बादल तरसे रे
मोती मोती बरसे रे
धरती तो जुडी हुई
अंबर संग मिली हुई
उसकी तो नियति रे
अंधियारे को क्षति रे
बिन सूरज नहीं रे
उजियाले की ख्याति रे
प्रकृति से खिली हुई
जीवन को फुलाती गई
उसकी तो नाव है
जीवन हुआ सवार है
यात्री वो इंसान है
जीना जिसका काम है
कर्मो को बांधो गले रे
ख़ुशी ख़ुशी चलो रे
- रानमोती / Ranmoti
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