मानों मै शिउली का
रम्य प्रसन्न तटस्थ तरु
रचनाये मेरी उसके पुष्प
सुगंधित प्रभात करे शुरू
वो खिलकर मुझसे
लुढ़कते है जमींपर
सुन्दर मधुर सुरभि
महकाते है सृष्टिपर
कोई समेट हाथो में
सौरभ से भर जाता
तो कोई कुचल पैरोंतले
अनभिज्ञ अग्र निकल जाता
रचनाये फूल है मेरी
कभी ना करती भेद
हर किसी को महकाती
जैसे जीवन में वेद
उठाने वाले कुचलने वाले
दोनों को एहसास दिलाती
उनकी रास्तों में सजकर
मोतियों भाँति उन्हें सजती
सीधी साधी हलकी फुलकी
शिउली बन हुनर आजमाती
हंसती मुस्कुराती रचनाये मेरी
किसी-न-किसी मन को भाती
- रानमोती / Ranmoti
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