Search This Blog
Friday, August 19, 2022
एक दिन की समस्या
दूर दराज़ जंगल के पार
बस्ती थी मेरी और परिवार
सुन्दर नदी पेड़ों की मुस्कान
बाढ़ का साया हरसाल तूफान
एक टुटाफूटा घर मानो छाले पड़े
जीवन पनपता उसमे जैसे वृक्ष खड़े
हर दिन नया सवेरा जीने की आस थी
एक डरावने दिन और रात की बस बात थी
माँ की सांसो को हर पल हृदय नाप रहा था
नौ महीनो से सृष्टि की चाहत में तरस रहा था
शायद वह आखरी दिन था माँ की कोख में रहने का
उसकी भी चाह थी मै बाहर आऊँ आनंद लू जीवन का
माँ तड़प रही थी दर्द से मदद मांगती किसी मर्द से
शायद वह मेरा बाप था जो व्याकुल था मेरी उम्मीद से
उस टूटीफूटी झोपडी में बारिश गंगा रूप बरस रही थी
बाढ़ और तूफान से बस वही एक सबका सहारा थी
बड़ी कठनाई संग माँ की कोख छोड़ पैदा हुआ
पहिली बार किसी अनछुये स्पर्श का एहसास हुआ
आँखे खोलू की ना खोलू समझ में ना आया
दुनिया में दिन पहला था या आखरी जान ना पाया
एक माई आकर बोलने लगी यह बचेगा नहीं
यहाँ का माहौल इसे इसकदर जचेगा नहीं
चलो ले चलो इसे अस्पताल नदी पार कही
जहा मिले इसे सुविधा डाक्टर और इलाज सही
आँखे खोलने ही वाला था पर मै घबरा गया
सोचा खोल के भी क्या करू जब वक्त निकल गया
एक दिन की दुनिया की मोहब्बत में पड़ जाऊँगा
जो पाया नहीं देखा नहीं उसे भी पल में खो जाऊँगा
इस कश्मकश में जीवन की एक घड़ी बीत गई
चाह थी रोशनाई की अंधियारे संग मिटती गई
अचानक दो चार बस्तीवाले जमा होकर पास आये
एक झोली में डाल मुझे अपने साथ ले गये
शायद उन्हें नदी पार कर मुझे ले जाना था
बाढ़ तो मानो धरती पर निरंतर झरना था
लड़खड़ाते पाँव ले गये आखिर किनारे तक
दूसरी घड़ी भी बीत गई इंतजार में तब तक
मौत मंडराती रही जिंदगी घुटने टेक रही थी
आरोग्यसेवा ठप्प थी दरबदर सन्नाटे की गंध थी
सब छाती पिट हताश हो बस्ती को कोस रहे थे
कहानी ये उन सबकी हरसाल बस सोच रहे थे
आशा निराशा में बदल गई जब तीसरी घड़ी आई
हर किसी की उम्मीदों पर मातम की परछाई
ठण्ड से रोम रोम मेरा कांप सिकुड़ रहा था
भूख के मारे पेट ज्वाला बन तड़प रहा था
रोने का मन किया सोचा इन्हे बोल दूँ
अपनी मासूम सी भूख अब खोल दूँ
फिर मन ही मन मुस्कुराया और
खुदसे ही बोला सुन ज़रा रुक
एक दिन की तो समस्या है
बस एक दिन की समस्या
-रानमोती / RANMOTI
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
Recent Posts
तू राजा मी सेवक (Vol-2)
- रानमोती / Ranmoti
Most Popular Posts
-
“तुच सृजन, तुच नवनिर्माण, तुच अंत, तुच अनंत”. काहींना महिला हा विषय मुळात गंमतीशीर वाटत असेल तर कृपया मला माफ करा. कारण माझ्याकडून अशा अपेक्...
-
सध्या परिस्थितीचा विचार लक्षात घेता असे दिसून येते की मानसाला भविष्यामध्ये स्वत:ला माणूस म्हणून टिकून राहण्यापेक्षा स्वत:च्या जाती धर्मांची ...
-
दूर दराज़ जंगल के पार बस्ती थी मेरी और परिवार सुन्दर नदी पेड़ों की मुस्कान बाढ़ का साया हरसाल तूफान एक टुटाफूटा घर मानो छाले पड़े जीवन पनपता उसम...
-
बहीण बघते भावाची वाट ओवाळणी कराया सजले ताट बहरून आली श्रावण पौर्णिमा दिसता बहीण सुखी झाला चंद्रमा सुरेख राखीला रेशीम धागे भाऊ उभा बहिणीच्या...
-
सांजवेळी पाखरे विसाव्या सांजावली रिमझिम रविकिरणे क्षितिजात मावळली चांदणी शुक्रासह पुन्हा नभी उगवली येशील तू परतुनी आस मना लागली स्मितफुलांची...
-
“ विज कर्मचाऱ्यांना ” अंधारात ठेऊन चालणार नाही ... कोरोना काळात आपण सर्वं अतिदक्षता विभागातील कर्मचाऱ्यांचे नेहमीच आभार ...
-
दोस्त एंटरटेनमेंट है आपके तनाव का दोस्त एक्सपीरियंस है आपके साथ का दोस्त डिटेक्टर है आपकी बुराई का दोस्त पैरामीटर हे आपके बर्ताव का दोस्त प्...
-
सागर से मोती चुन के लाएँगे हे मातृभूमि हम फिर से तुम्हें सजाएँगे आए आँधी फ़िकर कहाँ है आए तूफ़ान फ़िकर कहाँ है तेरे प्यार में जीते जो यहाँ ह...
-
ग्राम पंचायती आणि सरकारी शाळांच्या भिंतीवर सुविचारांची रंगोटी झाली हे सारं पाहून आम्हाला वाटलं देश सुसंस्कृत आणि सुशिक्षित झाला वकिलीच्या अन...
-
म्या होईन सरपंच माणूस रोकठोक सांगतो तुम्हाले आज बोलून छातीठोक माह्या संग हायेत जमाना भराचे लोक आसंन कुणात दम तर लावा मले रोक कालच म्या देल्ल...
अत्यंत मार्मिक, भवनिक लिखान.. 👍
ReplyDeleteAfter 75 years of independence this situation in Tribal area shows unequal development. It should be address on priority.
ReplyDelete