ऐ काफिलों,
तुम क्या जानो मोल मेरा
मै तो तुम्हारी दुनिया ठुकरा दू
ये धरती मेरी,ये आसमा मेरा
हवा सी लहराके चलु
प्रकाश को रंगसा सजाकर
मै काली रात का
सूरज बन जाऊ
ज्वाला सी उबलू
सागर का जल पीकर
खुद को चट्टान बना दूँ
फिरभी फूलो सी सुन्दर होकर
दुनिया को मेहका दू
खुदका स्वीकार ही धर्म मेरा
करना पहचान हासिल कर्म मेरा
मृत्यंजय हो स्वाभिमान मेरा
कदापि ना हो अपमान मेरा
मै काल के परे काली
आदि अनंत माया
लक्ष्मी की लेकर काया
धन का मै स्त्रोत बनु
चिर के अज्ञान की छाया
ज्ञान की मै तलवार बनु
भटका मुसाफिर जल मांगे
उड़ता पक्षी घर मांगे
जिसने पा लिया मुझे
वो मेरे सिवा कुछ ना मांगे
मै प्रकृति जगत जननी
जीवन का उगमस्थान कहलाती हूँ
हे नारायण तुम क्या वर दोगे
मै खुद ही एक वरदान हूँ
तुम क्या जानो मोल मेरा
मै तो तुम्हारी दुनिया ठुकरा दू
ये धरती मेरी,ये आसमा मेरा
हवा सी लहराके चलु
प्रकाश को रंगसा सजाकर
मै काली रात का
सूरज बन जाऊ
ज्वाला सी उबलू
सागर का जल पीकर
खुद को चट्टान बना दूँ
फिरभी फूलो सी सुन्दर होकर
दुनिया को मेहका दू
खुदका स्वीकार ही धर्म मेरा
करना पहचान हासिल कर्म मेरा
मृत्यंजय हो स्वाभिमान मेरा
कदापि ना हो अपमान मेरा
मै काल के परे काली
आदि अनंत माया
लक्ष्मी की लेकर काया
धन का मै स्त्रोत बनु
चिर के अज्ञान की छाया
ज्ञान की मै तलवार बनु
भटका मुसाफिर जल मांगे
उड़ता पक्षी घर मांगे
जिसने पा लिया मुझे
वो मेरे सिवा कुछ ना मांगे
मै प्रकृति जगत जननी
जीवन का उगमस्थान कहलाती हूँ
हे नारायण तुम क्या वर दोगे
मै खुद ही एक वरदान हूँ
प्रकृति, best poem ever
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