चाँद के उस पार जमीं के गर्भतक
परंपरा को तोड़कर नए रहस्य जोड़कर
कबीर के दोहो में सिद्धार्थ के मार्गपर
मीरा की सरगम में मोहन को सोचा जाये
मनमौजी चाहता है कुछ खोजा जाये
समंदर की लहरें चाहती है कुछ कहना
पेड़ों पत्थरों को कुछ अपना है जताना
लहरों की प्रलेखपर उनकी जुबाँ लिखी जाये
वसुधा की क़ोख छोड़ समंदर में घोला जाये
मनमौजी चाहता है कुछ खोजा जाये
आशा निराशा मान अपमान गठरी में बांधकर
कुछ नासमझी सी मंजिलों को लाँधकर
सीमाओं को असीमित रूप से स्वीकारकर
अघटित को यथार्थ का मौका दिया जाये
मनमौजी चाहता है कुछ खोजा जाये
जीवन नया है हम भी नये हो
ज्ञान का विनिमय गुरु शिष्य से परे हो
रहस्यों का छलावा बस पारदर्शी हो जाये
जीवन को जीने का नया मौका दिया जाये
मनमौजी चाहता है कुछ खोजा जाये
- रानमोती / Ranmoti
Awesome poem
ReplyDeleteKhup chan👌👌
ReplyDeleteवाह, क्या बात है!
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