अंबर का तारा
अँधेरे के द्वार खड़ा
अँधेरे ने पूछा
क्योँ मेरे ही पीछे पड़ा
मेरा जीवन जैसे
काली रात का घड़ा
सुनकर मासूम तारा
मन ही मन मुस्कुरा पड़ा
जवाब में उसने
अपना खाता खोला
प्रकृति के खेल में
बना मैं चमकीला
नहीं काम का मेरे
सूर्य का उजियाला
अँधेरा ही बना देता मुझे
जहाँ में सबसे निराला
जिसकी आँखों ने देखा
खेल तेरा अँधियारा
वही देख पाता है
यह अंबर का तारा
- रानमोती / Ranmoti