खुले है दरवाजे फिर से आज
लेकिन बाहर जाने का मन नही
मिले है लोग अरसे बाद
लेकिन हात मिलाने का मन नहीं
खिली है ताजी हवा बहुत दिनों बाद
लेकिन खुलकर साँस लेने का मन नहीं
त्यौहार तो इस साल भी आ रहे है
लेकिन खुशियाँ संजोने का मन नहीं
जीने से ज्यादा सफाई में वक्त जा रहा है
लेकिन अनदेखा करने का मन नहीं
बाहर की सफाई तो बहोत कर ली
लेकिन अंदर की सफाई का मन नहीं
प्रकृति बदलाव सीखा के गई
लेकिन बदलने का मन नहीं
प्रकोप तो सबके लिए एक है
लेकिन समझने का मन नहीं
- रानमोती / Ranmoti
लेकिन बाहर जाने का मन नही
मिले है लोग अरसे बाद
लेकिन हात मिलाने का मन नहीं
खिली है ताजी हवा बहुत दिनों बाद
लेकिन खुलकर साँस लेने का मन नहीं
त्यौहार तो इस साल भी आ रहे है
लेकिन खुशियाँ संजोने का मन नहीं
जीने से ज्यादा सफाई में वक्त जा रहा है
लेकिन अनदेखा करने का मन नहीं
बाहर की सफाई तो बहोत कर ली
लेकिन अंदर की सफाई का मन नहीं
प्रकृति बदलाव सीखा के गई
लेकिन बदलने का मन नहीं
प्रकोप तो सबके लिए एक है
लेकिन समझने का मन नहीं
- रानमोती / Ranmoti
संच है..
ReplyDeleteBehatarin 👌👌👌👍👍👍
ReplyDeleteNice poem nice discription of today's life
ReplyDeleteNice. These are fact due to present situation
ReplyDeleteVery true...🙏
ReplyDeleteExcellent
ReplyDeleteVery trued relevant for today
ReplyDeleteमन तो है बहोत कुछ करने का , पर समा ऐसा के धीरज नहीं; वक्त ले रहा है कुछ ऐसा इम्तिहान, कारवा ऐसा के घने बादल ही है, सूरज नाही
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