अनचाहें रास्तें पर चले जा रहे थे
दुनियाँ की बातों में फसे जा रहे थे
लोगों की तारीफों में बहे जा रहे थे
न जाने कौन से गुरुर में जिये जा रहे थे
सच्चाई से मुँह मोड़ भागे जा रहे थे
इंसानियत की दिवार तोड़ चले जा रहे थे
स्वार्थ की चादर ओढ़ सोये जा रहे थे
न जाने कौन से धर्म को जिये जा रहे थे
प्रकृति ने खेल खेला तो रोये जा रहे थे
अपनेही कर्मों की सजा भुगतें जा रहे थे
घर में बैठ जीवन की आस लगाए जा रहे थे
न जाने कौन से अधर्मों की कृपा जिये जा रहे थे
दुनियाँ की बातों में फसे जा रहे थे
लोगों की तारीफों में बहे जा रहे थे
न जाने कौन से गुरुर में जिये जा रहे थे
सच्चाई से मुँह मोड़ भागे जा रहे थे
इंसानियत की दिवार तोड़ चले जा रहे थे
स्वार्थ की चादर ओढ़ सोये जा रहे थे
न जाने कौन से धर्म को जिये जा रहे थे
प्रकृति ने खेल खेला तो रोये जा रहे थे
अपनेही कर्मों की सजा भुगतें जा रहे थे
घर में बैठ जीवन की आस लगाए जा रहे थे
न जाने कौन से अधर्मों की कृपा जिये जा रहे थे
✍ रानमोती
©Rani Amol More
हम तो जिये जा रहे थे, कोरोना आगया और ब्रेक लग गया ।
ReplyDeleteVery nice ��
ReplyDeleteVery nice
ReplyDeleteVery nice
ReplyDeleteसही कहा✔️
ReplyDeleteToday's condition
ReplyDeleteस्वार्थ की चादर ओढ़ सोये जा रहे थे