बारिश बूंदों में बरस जाती है
हमारा ध्यान भी नहीं होता
वो मिट जाते है दूसरों के लिये
हमें पता भी नहीं होता
जब हम थे गहरी नींद में
वो दिये जला के चले गये
लाख कोशिश की बदलने की
पर हम जैसे के वैसे रह गये
रास्तें में कंटक मिलेंगे
उन्हें भी शायद पता था
बिछानेवाले अपने ही होंगे
यह शायद सोचा नही था
उनकी हँसी के अंगारे ऐसे चलें
की अपने ही पराये बन गये
उनको सजदा करे दुनिया सारी
हम तो मानों बेगाने बन गये
वक्त हमने वहाँ बिताया
जहाँ हमारा कोई काम नही था
झूठो का डंका खूब बजाया
पर जुँबा पर सच्चों का नाम नही था
- राणी अमोल मोरे
Nice
ReplyDeleteSahi hai..
ReplyDeleteYes we forgot those who devoted their life for development of people..
ReplyDelete