हाँफते, काँपते खबरी को देख बोले
क्या खबर है पृथ्वी वासियों की ?
बहुत दिनोसे आवाज नहीं सुनी घंटियों की
प्रभु, पृथ्वी पर फैली है कोई महामारी
'दूतावासों' में आपके प्रतिबन्ध है जारी
आपस में दूरियों की उन्होंने है ठानी
कोई नही करता अब वहाँ मनमानी
प्रचलित हो गया 'मास्क' नाम का कपडा
और हाथ धोते रहने का बहुत बड़ा लफड़ा
'सॅनिटायझर' नामक द्रव का जोरोंसे है व्यापार
खरीददारी में उसके इंसान हो रहा है लाचार
छोटे छोटे बालक अब घर में ही रहते है
'पाठशाला' की परेशानी से बचे हुए दिखते है
सब वही खाते है जो माँ ने घर में है पकाया
समझदार है उन्होंने थोड़ा कम ही है सताया
सारे विश्व में 'आर्थिक मंदी' जोर पकड़ रही है
मानव जाती को हर तरफ से जकड रही है
किसीको भूखमारी तो किसीको मरने का डर
फिर भी इंसान लढ रहा एक साथ होकर
इंसानो को ही 'भगवान' अब समझ रहा इंसान
अस्पतालों और रास्तों में हो रही उनकी पहचान
ये सुनकर सारे भगवान एक साथ बोले
क्या मानव ने इस समस्या के राज है खोले
हाँ प्रभु, पृथ्वी पर मिले थे कुछ विद्वान्
बोले हमारा 'विज्ञान' बहुत है बलवान
उपरवालों से कहना आप ना करना एहसान
हम ही ढूंढ लेंगे हमारी समस्या का समाधान
बहोत ही सुंदर काव्य रचना है..
ReplyDeleteमस्त। वाचून छान वाटलं
ReplyDeleteखूप सुंदर ताई
ReplyDeleteअप्रतिम ताईसाहेब
ReplyDeleteइंसानो को ही 'भगवान' अब समझ रहा इंसान
ReplyDeleteअस्पतालों और रास्तों में हो रही उनकी पहचान