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Friday, June 26, 2020

अनछुई



बिखरी थी चीजें कोने में
यूँही नजर पडी अनजाने में
टुट टुट के चूर हुयी थी
न जाने कितनी मजबूर हुयी थी

कबसे सारी अनछुई थी
अंदर ही अंदर कही गुम थी
कतरा कतरा घर का सजा था
बस वही कोना अनजाना सा था

पहेली ये सदियों पुरानी थी
बस बाते अब रुमानी थी
कोई सुलझाएगा यही आस थी
किसी के छूने की तलाश थी

जब सँवारने निकले कुछ हाथ
उन्हें भी बना दिया अनाथ
हालात से जुझते हैं जोशवाले
कोई नहीं समझता उन्हें होशवाले

- राणी अमोल मोरे

1 comment:

  1. बहुत गहरा विचार | लिखते रहिए...✍🏽

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