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Monday, June 15, 2020

कहाँ छुपाऊँ...

कहाँ छुपाऊँ मै अपनी झोपडी
इन ऊँची ऊँची मंजिलो में
कहाँ छुपाऊँ मै अपनी गरीबी
इन अमीरो की बस्ती में

ना ढंग का कपडा है
ना भूँख मिटे उतनी रोटी
किस्मत तो अमीरों की है
गरीबों की तो बस है फूटी

मैं सुकुड़ के बन गया हूँ
जैसे बापू की लाठी
तस्वीर वाली नोट तो
बस धनवानों में बाँटी

जब सड़को से लोग गुजरते है
उन्हें देखकर हम मन ही मन सोचते है
शायद हम जैसे लोग इन्हे
इस दुनियाँ के लगते नहीं है

पहले तो इंसान एकसाथ रहते थे
जानवरो से बचने के लिए
लेकिन आज जानवर पाला करते है
इंसानो से बचने के लिए

गन्दगी करने वालो ने कभी
हाथ में झाडू नहीं लिया
साफ करने वालो ने कभी
हुकुम नहीं जताया

इन इंसानो के बिच हम वो जीवन है
जो देख कर भी अनदेखा है
हमने खुदको कभी बेचा नहीं है
पर उनके कुत्तोंकी कीमत हमसे ज्यादा है

मानव सभ्यता का विकास हुआ है
निर्धन का फटा कपडा गरीबी दिखाता है
धनवानों का फटा कपडा भी
शान से चलन बन सराहा जाता है

वो इतने आगे निकल गए
की हम उन तक पहुँच नहीं सकते
और हम इतने पीछे छूट गए
की वो हमारे लिए रुक नहीं सकते

इन अमीरों की बस्ती में
मै कही दब सा जाता हूँ
कोई और क्या याद रखेगा मुझे
मै खुदही ख़ुदको भूल जाता हूँ

- रानमोती / Ranmoti

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