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Saturday, June 13, 2020

...सिख़ लिया है

हमने तो बहुत सोच समझकर
बात करना सिख़ लिया है
किसीसे रिश्ता टूटेगा
किसीका मन रूठेगा
बनता काम बिगड़ेगा
कोई और क्या सोचेगा
इस डर के बोझ से
हमने सच को छोड़
झूटी बात करना सिख़ लिया है
हमने तो बहुत सोच समझकर
बात करना सिख़ लिया है

बातों बातों का ही बाज़ार है
जो बेच सके वही होशियार है
मन की बातों में उलझाएगा
उसीका जय जय कार है
हमें सब पता है
हर तरफ गरीबोंकी लूटमार है
बेवजह की बातों में
भले मनुष्य ने क्यों पड़ना
ये सोच कर हमने
चुप रहना सिख़ लिया है
हमने तो बहुत सोच समझकर
बात करना सिख़ लिया है

बहुत से लोग
खुद को होशियार
और महान बताते हैं
अंदर ही अंदर मानो
किसी शैतान को छुपाते है
ना चाहते हुए भी हम
उन्हेही अपना भगवान बनाते है
कोई बाहर से आएगा
हमें मार कर जायेगा
इस डर से हमने
खुदको ही मारना सिख़ लिया है
हमने तो बहुत सोच समझकर
बात करना सिख़ लिया है

हम सब को
बहुत बड़ा बनना है
स्टेटस के चक्कर में
रेस का कीड़ा बनना है
ज्ञान की बात तो
हर कोई करता है
असल जिंदगी में तो
उसका कबाड़ बनना है
कोई हमें पीछे छोड़ देगा,
इस चक्कर में हमने
खुदसे ही हारना सिख़ लिया है
हमने तो बहुत सोच समझकर
बात करना सिख़ लिया है

झूठी जिन्दगी मानो
लत बन जाती है
किसीकी सच्ची कड़वी बात
दवाई बन जाती है
किसीकी मीठी झूठी बात
बीमारी बन जाती है
अपनेही पतन का
कारण बन जाती है,
ये जानते हुये भी हमने
खुद को ही फ़साना सिख़ लिया है
हमने तो बहुत सोच समझकर
बात करना सिख़ लिया है

- राणी अमोल मोरे

6 comments:

  1. Too Good. Insan ke jine ka tarika bus isi haal mein badal gaya.. log badalte rahe.. hum ne bhi badalna sikh liya..

    ReplyDelete
  2. Replies
    1. खूप छान कविता खरंच आज विचार करण्याची आवश्यकता आहे

      Delete
  3. खूपच छान...! खूप दिवसांनी शुद्ध हिंदीतली कविता वाचायला मिळाली.भाषा व आशय दोन्ही उत्तम आहेत. कविता विचार करण्यास प्रवृत्त करते.

    वाजपेयींच्या कविता मी आवर्जून वाचत असतो.
    सौ. राणी मोरे यांना मनःपूर्वक शुभेच्छा...!

    या निमित्याने अटलजींची एक कविता आठवली. आशय साधारण सारखाच आहे. ती देत आहे-
    पहली अनुभूति: गीत नहीं गाता हूँ

    बेनकाब चेहरे हैं,दाग बड़े गहरे हैं 
    टूटता तिलिस्म आज सच से भय खाता हूँ
    गीत नहीं गाता हूँ

    लगी कुछ ऐसी नज़र बिखरा शीशे सा शहर
    अपनों के मेले में मीत नहीं पाता हूँ
    गीत नहीं गाता हूँ

    पीठ मे छुरी सा चाँद, राहू गया रेखा फांद
    मुक्ति के क्षणों में बार बार बँध जाता हूँ
    गीत नहीं गाता हूँ

    - अभिजित कुलकर्णी

    ReplyDelete
    Replies
    1. Very true..
      Salute to the great Ex. Hon. PM Atalji..

      Delete
  4. True, very good Raniji, keep it up. Congratulations.

    ReplyDelete

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