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Saturday, June 27, 2020
वारी - परंपरा तीच रस्ता नवा
Friday, June 26, 2020
अनछुई
यूँही नजर पडी अनजाने में
टुट टुट के चूर हुयी थी
न जाने कितनी मजबूर हुयी थी
कबसे सारी अनछुई थी
अंदर ही अंदर कही गुम थी
कतरा कतरा घर का सजा था
बस वही कोना अनजाना सा था
पहेली ये सदियों पुरानी थी
बस बाते अब रुमानी थी
कोई सुलझाएगा यही आस थी
किसी के छूने की तलाश थी
जब सँवारने निकले कुछ हाथ
उन्हें भी बना दिया अनाथ
हालात से जुझते हैं जोशवाले
कोई नहीं समझता उन्हें होशवाले
Thursday, June 25, 2020
डीपी
Wednesday, June 24, 2020
बचपन के मिट्टी के..
फटी जेब से नानाजी के गिरते थे सिक्के
चोरीसे छुपकर हम उठा लेते थे एक एक
जानकर भी वो कहते मेरे पोता पोती बड़े नेक
वो पल सुनहरे और दिन थे अच्छे
हम बड़े चतुर पर नादान थे बच्चे
सिक्को को मुट्ठी में हलकासा दबाकर
हाथों को थोड़ा इधर उधर घुमाकर
ले जाते थे उन्हें सबसे बचाकर
दौड के सब पहुंचते थे दुकान में
खट्टी मीठी गोली खाते थे जुकाम में
घर लौटने पर माँ निहारती थी गौर से
फिर वो डाटकर चीखटी थी बड़े जोर से
हम नाटक करते थे फुटफुट के रोने का
तब एहसास होता था नानीजी के होने का
वो प्यार से समझाकर हम सब को बुलाती
थोड़ा पेड़ से लटके झूले पर झूला झुलाती
और माँ के बचपन के किस्से सुनाती
हम भी फिर हस देते थे खिलखिलाकर
ऐसे ही दिन गुजर जाते थे झिलमिलाकर
बचपन के मिट्टी के वो पुराने किस्से..
Tuesday, June 23, 2020
तूच ठरव..
दुसऱ्यावर नाही तुझी मालकी
कुठल्या भ्रमात आहेस वेड्या
क्षणभर जीवन विकत घेण्याची
तूच ठरव आहे का तुझी लायकी ?
दुर्गुणांनी वेढलास किती
डोक्यावर अहंकाराचा केवढा भारा
जीवनाच्या व्याख्या असतील कितीक
खरे जीवन आहे तरी काय
नुसता आत बाहेर सोडलेला वारा
चेहऱ्यावर स्मित फुलण्यासाठी
दुसऱ्यांची गरज तुला भासते
डोळ्यातले अश्रू गाळण्यासाठी
इतरांची भिती का वाटते
तूच ठरव कसा तू स्वावलंबी
तेला विना वात जळणार नाही
संवेदनेशिवाय सुख-दु:ख कळणार नाही
तूच ठरव कसे जगायचे
जीवन आनंद अमृत प्राशायाचे
की शिक्षा मिळाल्यागत भोगायचे
अध्यात्म ही किती वाचून झाले
अनेक महात्मे सांगून गेले
जोवर अंतराला जाणणार नाही
तोवर जीवन आनंद गवसणार नाही
तूच ठरव कसे शोधायचे
Monday, June 22, 2020
कितना बोया..
तेरे कर्म देते है जीवन के सूत्र
सदियों से हल चलाके तूने
भूकों का हल है निकाला
मेहनत करने की तूने
न जाने कौनसी सीखी पाठशाला
मुट्ठीभर बीज बो कर तूने
हरतरफ हरयाली है लायी
दिन रात की मेहनत से तेरे
देश में समृद्धी है आयी
तू क्यूँ सोचे फांसी का फंदा
रब का तू बड़ा ही नेक बंदा
कितना बोया कितना कटाया
बदले में तूने कुछ नही पाया
तू कर ख़ुदको ही सलाम
नही तू किसी समस्या का गुलाम
खड़े रहना हमेशा तान सिना
बहाया तूने अपना खून पसीना
- राणी अमोल मोरे
Sunday, June 21, 2020
भक्ता ! काय ते भले
विटेवरच्या विठ्ठलाला भक्त कधी बोलला नाही
पंढरपुरी वारी करण्या मात्र कधी डगमगला नाही
वरवरचा जप सोडता 'सत्य' कधी समजलाच नाही
चंद्रभागेत डुबक्या मारून पाणी करतो घाण
विठ्ठलाची पंढरी भक्ता सांग कशी दिसेल छान
मागच्या वर्षी पाच लाख यावर्षी दहा लाख
सोडून जातात फक्त प्रदूषणाची सडकी राख
गर्वाने सांगतो आपण यात्रेला परदेशीही आले
त्यांचही मनं दुखते जेव्हा दिसतात सुंदर नदीचे नाले
लाईव्ह दाखवतात चॅनलवाले सारी ती गर्दी
घरी परतल्यावर अर्ध्यांना झाली असते सर्दी
घंटा वाजवून, टाळ बडवून तो जागा होत नाही
विठ्ठलाचं देवपण आम्हाला कधी कळलंच नाही
पंढरीच्या यात्रेला सांगा अर्थ कसा उरेल काही
खुळ्या भक्तांना पाहून विठ्ठल होत असेल दंग
विटेवरून खाली न उतरण्याचा त्यानेही बांधला चंग
परंपरा सांगते पंढरीच्या यात्रेला एकदा तरी जावं
अंतर्मनाच्या शुद्धतेसाठी सर करावं पंढरपूर गावं
अज्ञानाच्या गर्दीत भक्ता सांग तू कुठे हरवलास
संतांच्या विचारांचा खडू तू का नाही गिरवलास
लोक कल्याणासाठी त्यांनी जीवन अर्पण केले
तरी तुला कळलेच नाही तुझ्यासाठी 'काय ते भले'
- रानमोती
Friday, June 19, 2020
..इस वतन से
घर वापस आ ना सके
बहुत समझ ली दुनियादारी
उनका समर्पण समझ ना सके
ज़मीन की लालच में
दुश्मन हरपल डाले डेरा
सुरक्षित रहेगा देश हमारा
जब तक है जवानों का घेरा
विश्व में वर्चस्व के
लग रहे है नारे
आज लड़ रहे है चिनी
तो कल लड़ते थे गोरे
पूँछ लो एक दफ़ा
खुदही अपने दिल से
क्या सच में हमें
प्यार है इस वतन से
तो भूल जाओ सब
आपस का लढ़ना
शुरू करो मिलके
एक साथ जुड़ना
साथ रहेंगे हम उनके
जो सोचे इस देश का
मिटा देंगे हम उनको
जो साथ दे गद्दारों का
दिखा देंगे दुनियाँ को
ज़ोर करोडो भारतीयों का
ताकि उठ ना सके सिर
फिर कभी दुश्मनों का
- राणी अमोल मोरे
सून काय सासू काय - दोघी सेम सेम
Thursday, June 18, 2020
अंतरी
घामाचे मोती
...कश्या फुलतील वेली ?
जलतत्त्व
नावामागे तुझ्या..
..आपण कसे खायायचे
Wednesday, June 17, 2020
आज तिचा चेहरा..
..नकोस
Tuesday, June 16, 2020
..समझ रहा इंसान
हाँफते, काँपते खबरी को देख बोले
क्या खबर है पृथ्वी वासियों की ?
बहुत दिनोसे आवाज नहीं सुनी घंटियों की
प्रभु, पृथ्वी पर फैली है कोई महामारी
'दूतावासों' में आपके प्रतिबन्ध है जारी
आपस में दूरियों की उन्होंने है ठानी
कोई नही करता अब वहाँ मनमानी
प्रचलित हो गया 'मास्क' नाम का कपडा
और हाथ धोते रहने का बहुत बड़ा लफड़ा
'सॅनिटायझर' नामक द्रव का जोरोंसे है व्यापार
खरीददारी में उसके इंसान हो रहा है लाचार
छोटे छोटे बालक अब घर में ही रहते है
'पाठशाला' की परेशानी से बचे हुए दिखते है
सब वही खाते है जो माँ ने घर में है पकाया
समझदार है उन्होंने थोड़ा कम ही है सताया
सारे विश्व में 'आर्थिक मंदी' जोर पकड़ रही है
मानव जाती को हर तरफ से जकड रही है
किसीको भूखमारी तो किसीको मरने का डर
फिर भी इंसान लढ रहा एक साथ होकर
इंसानो को ही 'भगवान' अब समझ रहा इंसान
अस्पतालों और रास्तों में हो रही उनकी पहचान
ये सुनकर सारे भगवान एक साथ बोले
क्या मानव ने इस समस्या के राज है खोले
हाँ प्रभु, पृथ्वी पर मिले थे कुछ विद्वान्
बोले हमारा 'विज्ञान' बहुत है बलवान
उपरवालों से कहना आप ना करना एहसान
हम ही ढूंढ लेंगे हमारी समस्या का समाधान
बोल तो मै कुछ..
नई चीजों को अनुभवोंसे सिखती भी हूँ
हाँ मै एक छोटीसी कलम हूँ
जो बोल तो मै कुछ सकती नहीं
बस थोडा लिख देती हूँ
किसी बुद्धिमान इंसान ने कहा है
मै तलवारो से भी तेज हूँ
वो तो बस काट सकती है
मै तो काट और जोड़ भी सकती हूँ
हाँ ये एक अलिखित सच है
जो बोल तो मै कुछ सकती नहीं
बस थोडा लिख देती हूँ
कुछ लोगो को शायद मेरी जरुरत ना लगे
पर मेरे सिवा परिवर्तन नहीं हो सकता
अगर सदियों से मै न चलती
तो इतिहास की कोई कहानी नहीं होती
ये मेरे जीवन की वो दाँस्ता है
जो बोल तो मै कुछ सकती नहीं
बस थोडा लिख देती हूँ
लिखने वाले हजारो हाथ आते है
वक्त की सिमा से वो तो मिट जातें है
लेकिन मेरी लिखावट से उनके विचार
सदियों तक दुनिया में अमर हो जाते है
समय के परे मेरी हैसियत है
जो बोल तो मै कुछ सकती नहीं
बस थोडा लिख देती हूँ
अगर मै चलु तो क्रांति होती है
अगर मै चलु तो जीवन में ज्ञान है
अगर मै रुकू तो अंधकार होता है
अगर मै थम जाऊ तो जीवन थम जाता है
बस यही मेरी कीमत है
जो बोल तो मै कुछ सकती नहीं
बस थोडा लिख देती हूँ
जो बोल तो मै कुछ सकती नहीं, बस थोडा लिख देती हूँ.. |
Monday, June 15, 2020
बाकी है..
अंधेरा होना बाकी था
कुछ था उस दिशा में
जो सुकून दे रहा था
उपर बेरंग आसमा
रंग जमा रहा था
ऊँचे ऊँचे पेडोके नए नए पत्तोने
बस खिलना शुरू किया था
पन्छियो ने थोड़ा खेलकर
रास्ता घर का पकडा था
शायद उन्हे आहट थी
कूछ प्रकृती के उपहार की
हाँ वो बात थी
बारिश के पहले मोसम की
कभी कभी जीवन जुड़ जाता है
प्रकृती के कुछ रंगो से
तब हमे अनुभूती होती है
जीवन के होने की
हमे अपने जीवन से लगाव है
और हमेशा चाहते है
जीवन अमर रहे
खुशी शांती मे है
और शांती की अनुभूती
शोर के बाद होती है
प्रकृती का गीत मधुर है
अगर सूनना है तो
उससे जुड़े रहना होता है
कुछ पाने की तलाश में
हमेशा कुछ ना कुछ
खोजा जाता है
जब पास होता है
तो उसे ही ठुकराया जाता है
ये तो बस मन की
रंगिन कहानी होती है
हर जिंदगी यादों की
अनकही फिरयादों की
बस सूनवाई होती है
अगर हमें मिटना ही है
तो गुरुर किस बात का
जाना अकेले ही है
तो किसी का साथ छुटेगा
ये डर किस बात का ?
कुछ एहसास है
तो उसे मेहसुस करो
कोई लेकर आयेगा खुशिया
ये सोचकर जीवन बरबाद ना करो
जी लो जिंदगी जब तक सांस चालू है
क्या पता अब और कितनी
हिस्से मे अपने बाकी है...
- राणी अमोल मोरे
कहाँ छुपाऊँ...
इन ऊँची ऊँची मंजिलो में
कहाँ छुपाऊँ मै अपनी गरीबी
इन अमीरो की बस्ती में
ना ढंग का कपडा है
ना भूँख मिटे उतनी रोटी
किस्मत तो अमीरों की है
गरीबों की तो बस है फूटी
मैं सुकुड़ के बन गया हूँ
जैसे बापू की लाठी
तस्वीर वाली नोट तो
बस धनवानों में बाँटी
जब सड़को से लोग गुजरते है
उन्हें देखकर हम मन ही मन सोचते है
शायद हम जैसे लोग इन्हे
इस दुनियाँ के लगते नहीं है
पहले तो इंसान एकसाथ रहते थे
जानवरो से बचने के लिए
लेकिन आज जानवर पाला करते है
इंसानो से बचने के लिए
गन्दगी करने वालो ने कभी
हाथ में झाडू नहीं लिया
साफ करने वालो ने कभी
हुकुम नहीं जताया
इन इंसानो के बिच हम वो जीवन है
जो देख कर भी अनदेखा है
हमने खुदको कभी बेचा नहीं है
पर उनके कुत्तोंकी कीमत हमसे ज्यादा है
मानव सभ्यता का विकास हुआ है
निर्धन का फटा कपडा गरीबी दिखाता है
धनवानों का फटा कपडा भी
शान से चलन बन सराहा जाता है
वो इतने आगे निकल गए
की हम उन तक पहुँच नहीं सकते
और हम इतने पीछे छूट गए
की वो हमारे लिए रुक नहीं सकते
इन अमीरों की बस्ती में
मै कही दब सा जाता हूँ
कोई और क्या याद रखेगा मुझे
मै खुदही ख़ुदको भूल जाता हूँ
Sunday, June 14, 2020
कोविड - १९ / कोरोनाशी लढाण्यासाठी उच्च रोग प्रतिकारक लस संशोधन एक पर्याय
High-Density Immune Vaccine (HDIV) to be explored for fighting COVID-19
(A research article published in IJARIIT Journal dtd. 01-April-2020)
COVID-19 is an infectious disease caused by a newly discovered coronavirus and it spread across geographies, genders and occupations. It appears to plague people ubiquitously including children who, despite hopeful early reports, do not seem more immune to the virus. At present there are many ongoing clinical trials evaluating potential treatments against COVID-19 but there is no specific vaccination to restrict. However, a common statement from all researcher that high immunity patient can fight with it and get recovered. Therefore, needs to develop high-density immune vaccine or medicine to treat COVID-19. Some possible ways to move research forward to create immune vaccine or medicine are proposed herein.
Saturday, June 13, 2020
...सिख़ लिया है
बात करना सिख़ लिया है
किसीसे रिश्ता टूटेगा
किसीका मन रूठेगा
बनता काम बिगड़ेगा
कोई और क्या सोचेगा
इस डर के बोझ से
हमने सच को छोड़
झूटी बात करना सिख़ लिया है
हमने तो बहुत सोच समझकर
बात करना सिख़ लिया है
बातों बातों का ही बाज़ार है
जो बेच सके वही होशियार है
मन की बातों में उलझाएगा
उसीका जय जय कार है
हमें सब पता है
हर तरफ गरीबोंकी लूटमार है
बेवजह की बातों में
भले मनुष्य ने क्यों पड़ना
ये सोच कर हमने
चुप रहना सिख़ लिया है
हमने तो बहुत सोच समझकर
बात करना सिख़ लिया है
बहुत से लोग
खुद को होशियार
और महान बताते हैं
अंदर ही अंदर मानो
किसी शैतान को छुपाते है
ना चाहते हुए भी हम
उन्हेही अपना भगवान बनाते है
कोई बाहर से आएगा
हमें मार कर जायेगा
इस डर से हमने
खुदको ही मारना सिख़ लिया है
हमने तो बहुत सोच समझकर
बात करना सिख़ लिया है
हम सब को
बहुत बड़ा बनना है
स्टेटस के चक्कर में
रेस का कीड़ा बनना है
ज्ञान की बात तो
हर कोई करता है
असल जिंदगी में तो
उसका कबाड़ बनना है
कोई हमें पीछे छोड़ देगा,
इस चक्कर में हमने
खुदसे ही हारना सिख़ लिया है
हमने तो बहुत सोच समझकर
बात करना सिख़ लिया है
झूठी जिन्दगी मानो
लत बन जाती है
किसीकी सच्ची कड़वी बात
दवाई बन जाती है
किसीकी मीठी झूठी बात
बीमारी बन जाती है
अपनेही पतन का
कारण बन जाती है,
ये जानते हुये भी हमने
खुद को ही फ़साना सिख़ लिया है
हमने तो बहुत सोच समझकर
बात करना सिख़ लिया है
- राणी अमोल मोरे
Friday, June 12, 2020
शिक्षणाच्या बाजारातील आर्थिक व मानसिक त्रासातून मुक्ततेसाठी..
शिक्षणाच्या बाजारातील आर्थिक व मानसिक त्रासातून मुक्ततेसाठी..
शिक्षण हा आज घडीला जीवनाचा मुलभूत घटक समजला
जातो. बऱ्याच पालकांना आपल्या मुलांच्या शिक्षणाची चिंता सतत भेडसावत असते. आपल्या
मुलांच्या शिक्षणाच्या काळजीचा फायदा घेऊन आजपर्यंत बऱ्याच नामांकित खाजगी शिक्षण संस्थांनी
आपल्याला खूप लुटले आहे आणि लुटत आहेत. खरे पाहता या खाजगी शिक्षण संस्थामधून बाहेर
पडणारा विद्यार्थी शासकीय शाळेतून बाहेर पडणाऱ्या विघ्यार्थ्यापेक्षा फार काय तर थोड्या
चांगल्या प्रमाणात इंग्रजी बोलू शकतो आणि थोडाबहुत नीट नेटका राहून अधिकचे
इम्प्रेशन झाडू शकतो.
मला इथे असे सांगावेसे वाटते जर पालक
कुठल्याही ग्वाही शिवाय या खाजगी शिक्षण संस्थांनी आकारलेली अवाढव्य फीज भरून
आपल्या पाल्यांना शाळांमध्ये दाखल करण्यास तयार होत असतील तर मग त्यांनी हीच
मानसिकता सरकारी शाळेबाबत दाखवायला काय गैर आहे. म्हणजे उदा. महाराष्ट्र राज्याचे
शिक्षण खाते आग्रह धरत असेल की शासनाच्या शाळेत मुलांना शिकवा तर काय हरकत आहे. तुम्ही
म्हणाल शासनाच्या शाळेत शिक्षण हे विनामूल्य असते इथपर्यंत ठीक आहे परंतु तेथे
शिक्षणाचा आणि सुविधांचा दर्जा म्हणावा तेवढा जोपासलेला नसतो. मान्य ! परंतु यावर
एक चांगला उपाय आपण पालक आणि शासन मिळून राबवू शकतो. तो म्हणजे शासनाने उच्च दर्ज्याच्या
पुरेश्या प्रमाणात शासकीय शिक्षणसंस्था उभाराव्यात. तसेच शिक्षणाचा दर्जा उंचवायचा असेल तर, आर्थिक बाजू अधिक
भक्कम असावी लागते हे आपण पालकांनी देखील समजून घेऊन थोड्या प्रमाणात फीज च्या
स्वरुपात शासनाला मदत केली पाहिजे.
आपल्याला शिक्षणाचे खाजगीकरण फार महाग पडत
आहे. आयुष्यभराची सर्वं कमाई पालक फक्त आपल्या मुलांच्या शिक्षणावर खर्च करत आहेत.
त्यामुळे फक्त खाजगी शिक्षण संस्थांचे मालक अधिक धनाड्य बनत चालले आहेत.
महाराष्ट्र राज्याच्या शिक्षण विभागाने परिवर्तन करण्याची नितांत गरज आहे. मोठ्या
मोठ्या शहरामध्ये तर खाजगी शाळांच्या फीज भरून भरून बरेच पालक अघोषित आर्थिक आणीबाणी
उपभोगत आहेत. आपल्याला राज्याचा कायापालट करायचा असेल तर शिक्षणाचे वाढते खाजगीकरण
त्वरित थांबविले पाहिजे. परिस्थिती हाताबाहेर जात असतांना शासनाला फक्त मराठी
शाळांचा किंवा विषयाचा आग्रह धरून चालणार नाही तर काळाबरोबर बदलावे देखील लागेल.
खाजगी शिक्षण संस्थांच्या वरच्या दर्ज्याच्या मुबलक शाळा जागो जागी उभाराव्या
लागतील आणि ज्या जिल्हा परिषदेच्या शाळा आहेत त्यांचा देखील कायापालट करावा लागेल.
शिक्षण क्षेत्रात अत्यंत महत्वाचा घटक शिक्षक
असतो म्हणून शासनाने त्यांची निवड करतांना कडक शैक्षणिक पात्रतेसह बौद्धिक आणि
मानसिक निकस लावणे देखील तितकेच गरजेचे आहे हे समजले पाहिजे. एक शिक्षक फक्त
बारावी पास करून डिप्लोमा केलेला नसावा तर तो उच्च विद्याविभूषित व मुलांच्या भवितव्याचा
आत्मीयतेने विचार करणारा असावा. त्याच्या मध्ये शिकविण्याची कला अत्यंत प्रभावी व
प्रगत असावी आणि शासनाने वेळोवेळी त्याच्या शिकवण्याच्या पद्धतीचे अवलोकन करून आवश्यक
ते बदल करून घेतले पाहिजे.
महाराष्ट्र शासनाने मनावर घेतले आणि माझ्या
महाराष्ट्रातील सर्वं पालकांनी शासनाच्या पाठीशी उभे राहून आपल्या पाल्यांना शासकीय
शाळेत दाखल करण्याचे धाडस दाखविले पाहिजे, जेणेकरून लुटमार करणाऱ्या धनाड्य शिक्षण संस्थांना चांगली
चपराक बसेल. तसेच यातून आणखी एक महत्वाची गोष्ट देखील साध्य होईल ती म्हणजे शासनाच्या
नौकरयामध्ये कमालीची वाढ.
उच्च दर्जाचे शिक्षक, सर्वं सुख सुविधांनी
सज्ज शासकीय शिक्षण संस्था, अघ्यावत अभ्यासक्रम, अत्याधुनिक उपकरणे आणि अभ्यासा व्यतिरिक्त
खेळ, व्यायाम व सर्वांगीण विकास यावर भर देणारी शिक्षण पद्धती ही महाराष्ट्राच्या
उज्ज्वल भविष्याचे गणिक ठरू शकते. सोबतच हे सर्वं साध्य होत असतांना पालकवर्ग
कुठल्याही मानसिक दडपणाखाली येणार नाही याची पुरेपूर दखल घेणारा शिक्षण विभाग व मंत्री
लाभणे देखील महत्वाचे. शासन, पालक व शिक्षक यांच्या प्रयत्नातून आपण शिक्षणाचे
खाजगीकरण व त्यातून निर्माण झालेले बाजारीकरण थांबवू शकतो आणि ते थांबविलेच पाहिजे
जेणेकरून येणाऱ्या पिढ्या शिक्षणाच्या
बाजारातील आर्थिक व मानसिक त्रासातून मुक्तता होऊन दडपण विरहित, समानतेची शिक्षण
पद्धती निर्माण होईल.
जय महाराष्ट्र..!
-
राणी अमोल मोरे
Friday, June 5, 2020
अनुवांशिकता आणि परिवर्तन
अनुवांशिकता आणि परिवर्तन
मनुष्यामध्ये शारिरीक आणि मानसिक गुणदोष काही प्रमाणात अनुवांशिकतेमुळे मागच्या पिढीतून पुढच्या पिढीत स्थलांतरित होत असतात. शारीरिक गुणदोषांचा विचार करता लांब केस आईकडून मुलीकडे, कानावर लांब केस वडिलांकडून मुलांमध्ये तसेच काही शारिरीक आजार जसे की मधुमेह, दमा इत्यादी. आणि मानसीक गुणदोषांमध्ये भावना, बाणेदारपणा, चटकन राग येणे, हुशारी, समजुतदारपणा, समाजाबद्दल आदर या गोष्टींचा अंतरभाव करता येईल.
एखाद्या कुटुंबातील सर्वं व्यक्तींच्या गुणदोषांचा विचार करता त्या कुटुंबाची पिढ्यानपिढ्या चालत आलेली अनुवांशिकता सहज समजता येते. परंतु, शारिरीक दृष्ट्या सोडलं तर मानसीक दृष्टया अशा प्रकारची अनुवांशिकता पिढयानपिढया स्थलांतरीत करण्याचे काम काही समाज घटक देखील करीत असतात. जसे की शाळा, महाविद्यालय, शैक्षणिक संस्था, समाजिक संस्था, प्रत्येक समाज, धर्म संप्रदाय, गावे, शहरे, तालुका, जिल्हा, राज्य विभाग¸ प्रांत देश इत्यादी. मनुष्याच्या अवती-भवती असलेल्या सर्व बाबी मानसीक अनुवांशिकतेला कारणीभूत ठरतात. कळत न कळत मनुष्याच्या मनाची मानसीकता या सर्व बाबींवर अवलंबून असते. हे सर्व कशाप्रकारे प्रभाव टाकते याचा आपण अभ्यास केला तर हे लक्षात येते की, जर एखादी शिक्षण संस्था (शाळा, महाविद्यालय) वर्षानुवर्षे एकाच पध्दतीने शिक्षण पिढयांनपिढ्यांना पूरवत असेल तर त्या शिक्षण संस्थेतून बाहेर पडणा-या ब-याच विध्यार्थ्यांमध्ये त्या संस्थेच्या शिक्षणाच्या पध्दतीचे ठसे उमटलेले दिसतात. ते असे की ती शिक्षण संस्था विद्यार्थ्यांच्या सर्वांगिक विकासासाठी झटत असेल तर तेथील बरेच विद्यार्थी सर्वांगाने विकसीत झालेले आपल्याला पाहायला मिळतात. याउलट जर एखाद्या शिक्षण संस्थेत शिक्षणाचा अपूरेपणा असेल तर तेथील विद्यार्थी पुढे जाऊन स्वत:च हे सिध्द करतात. अशा प्रकारे ह्या शिक्षण संस्था कशा आहेत याचे विश्लेषण आपण तेथील विद्यार्थ्याच्या गुणदोषावरुन करु शकतो. थोडक्यात हे जर वर्षानुवर्षे अन पिढयानपिढया असंच चालत राहिलं तर त्या संस्थेची तेथील शिक्षणाची अनुवांशिकता त्या विद्यार्थीमध्ये आलेली असते. हे झाले शिक्षणाच्या बाबतीत,
आता सामाजिक संस्था, सामाजिक संघटना, समाज त्या त्या समाजातील धर्म आणि संप्रदाय पाळण्याच्या पध्दती या सर्व गोष्टींचा विचार केला तर ह्या देखील शिक्षण संस्थे सारख्याच जबाबदार आहेत. जर एखादा समाज पिढ्यानपिढया शिक्षणाला, स्त्री-पुरुष समानतेला, नवनवीन गोष्टींचा शोध घेण्याला मान्यता देत असेल तर हीच अनुवांशिक मानसिकता पिढयानपुढ्या त्या समाजातील लोकांमध्ये उतरत जाते व कालांतराने त्या समाजाची प्रगती होत राहते. या उलट, जर एखादा समाज हा धार्मिक रूढी, परंपरा व जुन्या बुरसटलेल्या गोष्टीला अंधश्रध्देला थारा देत असेल तर येणा-या पिढ्यांमध्येही तीच अनुवांशिकता दिसुन येईल व त्या समाजाची अधोगती होण्यास कारणीभूत ठरेल.
गाव, शहर, प्रांत, तालुका, जिल्हा राज्य आणि देश अशाच प्रकारची अनुवांशिकता दर्शवित असतात. जर एखादे छोटेशे गाव हे स्वच्छतेला आग्रही धरुन विकास करत असेल तर ती अनुवांशिकता तेथील लोकांमध्ये दिसुन येते. एखाद्या शहरामध्ये रहदारीचे नियम योग्य प्रकारे पाळण्याची अनुवांशिकता असेल तर त्या शहरातील नागरिक इतर शहरात गेल्यावरही आपली रहदारीची अनुवांशिकता दर्शवतात. त्याचप्रकारे एखादे राज्य, प्रांत नवनवीन तंत्र ज्ञानाला उद्योग–धंद्याला पुढाकार देत असतील तर तेथील जनसंख्या आपल्या या अनुवांशिकतेने आपला वेगळा ठसा उमटवतात. संपुर्ण देशाचा विचार करता भारतीय लोक हे जर गणित या विषयामध्ये प्रावीण्य मिळविलेले किंवा संशोधनात नवनवीन गोष्टी निर्माण करण्याची क्षमता सीध्द करत असतील तर ते देखील भारत देशाची अनुवांशिकताच इतर देशात गेल्यावर प्रभावीपणे दर्शवीतात. जर भरतीय लोक विना कारण बडबड करण्यात वेळ वाया घालवत असतील, तर ती देखील देशाची अनुवांशिकताच म्हणावी लागेल.
यावरुन हे सिध्द होते की, कुठल्याही कुटुंबाची, समाजाची, शिक्षण संस्थेची, धर्म संप्रदायाची, गाव, शहर, प्रांत, राज्य आणि देशाची माहीती ही तेथील मनुष्याने पिढयानपिढया दर्शविलेल्या गुणदोषावरुन मिळविता येते. शारीरिक अनुवांशिकता वगळता मानसिक अनुवांशिकता बदलने कठीन जरी असले तरी अशक्य नाही. गरज आहे ती फक्त परीवर्तनाची, पिढयानपिढ्या चालत आलेल्या दोषांना बाजूला सारुन मानव विकासासाठी, प्रगतीसाठी आणि उज्वल भवितव्यासाठी आवश्यक असलेल्या गुणांचे अवलोकन करुन ते स्वत:मध्ये रुजवून वेळोवेळी त्यात योग्य तसा बदल घडवून आणण्याची व टिकवून ठेवण्याची. सोबतच अनावश्यक अ-प्रगतीकारक गोष्टीला बाजूला सारून मुळासगट उच्चाटन करण्याची. म्हणजे त्या वाईट गोष्टी अनुवांशिकतेने पुढच्या पिढीत स्थलांतरीत होणार नाहीत व फक्त योग्य गोष्टीच वाढत जाऊन अनुवांशिकतेणे परिवर्तन येऊन मानव जातीचा पर्यायाने समाजाचा सर्वांगीण विकास साधता येईल. परिवर्तन हा सृष्टीचा नियम जरी असला तरी अनुवांशिकतेने परिवर्तन हा देखील एक नियम होऊ शकतो.
- - राणी अमोल मोरे
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